रक्षा मंत्रालय ने बीते दिनों नई रक्षा खरीद नीति (डीएपी-2020) और नई रक्षा उत्पादन एवं निर्यात संवद्र्धन नीति (डीपीईपीपी) के मसौदे जारी किए हैं। दोनों नीतियों का लक्ष्य स्वदेशी हथियारों के डिजाइन, उन्हें विकसित करने और निर्माण को बढ़ावा देना है। ऐसा इसलिए ताकि सेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों में स्वदेशी हथियारों की तादाद बढ़े और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देकर घरेलू रक्षा उत्पादकों को कारोबारी अवसर उपलब्ध कराए जा सकें। डीपीईपीपी-2020 का लक्ष्य सन 2025 तक विमानन और रक्षा क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को 1,75,000 करोड़ रुपये तक करने का है। इसमें 35,000 करोड़ रुपये के उपकरणों का निर्यात किया जाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में लखनऊ में डिफेंस एक्सपो में यह बात कह चुके हैं। फिलहाल देश का रक्षा उत्पादन करीब 70,000 करोड़ रुपये का है, ऐसे में डीपीईपीपी-2020 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश के विमानन और रक्षा उद्योग को आने वाले पांच वर्षों में घरेलू बिक्री को दोगुना करना होगा तथा निर्यात को मौजूदा 11,000 करोड़ रुपये से तीन गुना करना होगा। हालांकि ये लक्ष्य काफी बड़े हैं लेकिन वर्ष 2018 की नीति से कमतर लक्ष्य तय करना काबिले तारीफ है। उस नीति में कहा गया था कि भारत को सन 2025 तक दुनिया के शीर्ष पांच रक्षा उत्पादकों में शामिल होना होगा और उस समय तक लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, युद्धपोतों, टैंक, मिसाइल प्रणाली, तोपों, छोटे हथियारों आदि के निर्माण में पूरी तरह आत्मनिर्भर होना होगा। इसके बजाय प्रस्तावित नीति में ऐसे हथियारों और प्लेटफॉर्म की सूची तैयार करने की बात कही गई है जिनका आयात एक तयशुदा वर्ष से बंद किया जा सके। बहरहाल नीति का एक हिस्सा ऐसा भी है जो सेना को यह गुंजाइश मुहैया कराता है कि वह आवश्यक हथियारों का आयात जारी रखे। इन घरेलू उत्पादन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सेना को उत्कृष्ट किंतु आयातित हथियारों पर जोर देना बंद करना होगा। इसके बजाय घरेलू उद्योगों के साथ साझेदारी करके घरेलू विकल्प तैयार करने होंगे। तेजस लड़ाकू विमान, अर्जुन टैंक, एडवांस टोड आर्टिलरी गन, पिनाका रॉकेट लॉन्चर और नाग, अस्त्र और आकाश मिसाइल के रूप में स्वदेशी हथियार मौजूद हैं। अग्नि जैसी बैलिस्टिक मिसाइल बनाकर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान ने अपनी क्षमता पहले ही जाहिर कर दी है। तीनों सेवाओं को घरेलू हथियारों को अपनाना चाहिए और उसके बाद उद्योग जगत के साथ मिलकर इन्हें विश्वस्तरीय बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। चूंकि मौजूदा रक्षा बजट केवल 1,18,534 करोड़ रुपये का है और इसमें खास इजाफा संभव नहीं है इसलिए निर्यात में इजाफा करके ही हम 1,75,000 करोड़ रुपये के उत्पादन लक्ष्य तक पहुंच सकेंगे। सरकार कुछ कदम उठा चुकी है। मसलन: भारतीय दूतावासों में पदस्थ रक्षा विशेषज्ञों को निर्यात के अवसर तलाशने को कहा गया है। रक्षा निर्यात के लिए माहौल को उदार बनाया गया है। इसके लिए चार वैश्विक निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में से तीन में भारत का प्रवेश सुनिश्चित किया गया है: मिसाइल टेक्रालजी कंट्रोल व्यवस्था, वासेनार अरेंजमेंट और ऑस्ट्रेलिया समूह। चौथे समूह- परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भी जल्दी प्रवेश मिल सकता है। मित्र राष्ट्रों मसलन म्यांमार, मालदीव और श्रीलंका को भारतीय रक्षा उपकरण खरीदने के लिए ऋण की पेशकश की गई है। दुनिया भर के संभावित ग्राहकों को जानकारी देने के लिए गत वर्ष स्वदेशी रक्षा उपकरण निर्यात महासंघ के रूप में नोडल एजेंसी गठित की गई। आखिर में रक्षा उत्पादन बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि हम उच्च मूल्य वाले उपकरण मसलन विमान, हेलीकॉप्टर, टैंक, हवाई रक्षा प्रणाली और युद्ध पोत तैयार करें। इससे न केवल घरेलू रक्षा उत्पादन का मूल्य बढ़ेगा बल्कि सेना की स्वीकृति इनके लिए संभावित विदेशी ग्राहकों को भी प्रोत्साहित करेगी।
