अनुच्छेद 370 के बाद | संपादकीय / August 04, 2020 | | | | |
एक वर्ष पहले गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में अनुच्छेद 370 और 35ए के साथ जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे के समापन की घोषणा की थी। भाजपा सांसदों की हर्षध्वनि के बीच उन्होंने इसके लिए तीन कारण गिनाए थे। शाह ने कहा था कि 72 वर्ष पुराने विशेष दर्जे के समापन के बाद राज्य शेष भारत के साथ अधिक एकीकृत हो सकेगा, इस कदम से क्षेत्र का और अधिक 'विकास' होगा तथा आतंकवाद और असंतोष के मामलों में कमी आएगी। एक वर्ष बाद मोदी सरकार के लिए यह दावा कर पाना मुश्किल होगा कि उसने ये लक्ष्य हासिल कर लिए हैं। यकीनन औपचारिक ढांचागत एकीकरण हुआ है क्योंकि दोनों केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख सीधे केंद्र सरकार के अधीन हैं। सरकार यह दावा भी कर सकती है कि कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरी है। साल 2020 के शुरुआती सात महीनों में वहां अपराध में 74 फीसदी की कमी आई जबकि आतंकी हिंसा में 36 फीसदी की कमी दर्ज की गई।
इन तथ्यों के साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि अगस्त 2019 के बाद से इस क्षेत्र पर किस बेरहमी से कड़ी कार्रवाई की गई है। इस दौरान लंबे अंतराल के लिए कफ्र्यू लगाए गए, इंटरनेट और मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाया गया, राज्य के प्रमुख नेताओं को घरों में नजरबंद किया गया और तमाम असंतुष्टों को जेल मेंं बंद किया गया जो आगे चलकर कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन से और लंबा खिंच गया। दर्जे में बदलाव के बाद उच्च न्यायालय के सामने रिकॉर्ड तादाद में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं लगाई गईं और राज्य के जन सुरक्षा अधिनियम के तहत लोगों को बंदी बनाए जाने को चुनौती दी गई। इनमें से कई मामले महीनोंं तक चले जिससे कानून की मूल भावना को ही क्षति पहुंची। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 800 से 1,000 लोगों को सावधानी बरतते हुए बंदी बनाया गया। सरकार के मुताबिक उसने राज्य का दर्जा जनता के भले के लिए बदला था, ऐसे में यह आंकड़ा बहुत अधिक था।
सरकार को अभी भी दो अहम वादे पूरे करने हैं। कहा गया था कि जम्मू कश्मीर मेंं रोजगार और भूमि सभी भारतीयों के लिए उपलब्ध रहेगी। मार्च में राज्य में सरकारी नौकरियोंं में भर्ती के लिए आवश्यक स्थायी निवासी संबंधी नियमों में बदलाव किया गया। पुराने नियम के मुताबिक 15 वर्ष तक राज्य में रह चुका या सात वर्ष तक वहां पढ़ाई कर चुका तथा राज्य के किसी शैक्षणिक संस्थान से कक्षा 10-12 की परीक्षा में शामिल हुआ व्यक्ति इसके लिए पात्र था। नई नीति में पश्चिमी पाकिस्तान के पूर्व निवासियों को भी शामिल कर लिया गया। अब इन सभी श्रेणियों के लोगों को निवास प्रमाणपत्र पेश करना होगा। यानी अब उस परिभाषा का थोड़ा और विस्तार हो गया है जिसका विभिन्न पक्षों द्वारा विभिन्न कारणों से विरोध किया जा रहा था। यह किसी भी दृष्टि से सभी भारतीयों के लिए समान अवसर नहीं है। नया नियम इसलिए भी अहम है क्योंकि प्रदेश में सरकार ही इकलौती औपचारिक रोजगार प्रदाता है।
अगस्त 2019 के बाद से सुरक्षा की स्थिति खराब हुई और सरकार को अक्टूबर में प्रस्तावित निवेशक सम्मेलन टालना पड़ा। फरवरी में बड़े शहरों में अफसरशाहों के रोड शो के माध्यम से इसकी खानापूरी की गई। एक महत्त्वपूर्ण कदम मेंं 2016 की औद्योगिक नीति को 2026 तक बढ़ा दिया गया। इसके तहत बाहरी निवेशक केंद्रशासित प्रदेश में जमीन केवल पट्टे पर ले सकते हैं। आतंकवाद का विशेष दर्जे से कोई लेनादेना नहीं था लेकिन पाकिस्तान और चीन के साथ हमारे रिश्ते निहायत खराब हैं। यानी अनुच्छेद 370/35ए के अंत के बाद इस क्षेत्र के भविष्य की असली परीक्षा महामारी के बाद ही होगी।
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