राममंदिर की परिकल्पना के वास्तुकार | विनय उमरजी / August 04, 2020 | | | | |
चंद्रकांत सोमपुरा इन दिनों काफी उत्साहित हैं और राहत भी महसूस कर रहे हैं। अब उनकी उम्र 77 साल है। आखिरकार अयोध्या राम मंदिर के वास्तुकार सोमपुरा का तीन दशक लंबा इंतजार खत्म हो गया है और अब इस बहुचर्चित परियोजना का बुधवार को भूमिपूजन होने जा रहा है। वह खुद को 'मंदिर वास्तुकार' के रूप में पहचाना जाना पसंद करते हैं। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'मुझे विशेष रूप से गर्व है कि मेरे दादा ने सोमनाथ मंदिर का डिजाइन तैयार किया था और पुनर्निर्माण के कार्य की देेखरेख की थी और अब एक दूसरे प्रतिष्ठित मंदिर परियोजना का संबंध भी सोमपुरा परिवार के साथ जुड़ गया है।'
इस साल जून में मंदिर के ढांचे के लिए संशोधित डिजाइन जमा कराया जा चुका है जिसका निर्माण मशहूर कंपनी एलऐंडटी करेगी। सोमपुरा का कहना है कि अब वह अपनी मेहनत का फ ल पा रहे हैं और उनके बेटे निखिल और आशिष तथा 28 साल का पोता इस काम की निगरानी करेंगे। हालांकि डिजाइन के कार्यान्वयन में सोमपुरा परिवार के मुखिया चंद्रकांत के ही आदेश को अंतिम मुहर माना जाएगा।
1990 के दशक में तैयार किए गए राम मंदिर के डिजाइनों के पहले सेट में पिछले साल उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद कई बदलाव आए हैं। मिसाल के तौर पर, दो गुंबदों के बजाय मंदिर के गर्भगृह के ऊपर एक 'शीर्ष शिखर' के साथ पांच गुंबद होंगे। मंदिर की ऊंचाई और क्षेत्रफ ल भी क्रमश: 141 वर्ग फु ट और लगभग 15000 वर्ग फु ट से बढ़ाकर 161 वर्ग फुट और 30000 वर्ग फुट कर दिया गया है। हिंदू परंपरा के आधार पर मंदिर निर्माण किया जाना है जिसके मुताबिक राम मंदिर के निर्माण में किसी धातु का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए इस मंदिर परियोजना में राजस्थान के बांसी पहाड़पुर से खनन किए गए गुलाबी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल होगा। इसी पत्थर का इस्तेमाल अक्षरधाम मंदिर में भी किया गया है। यह मंदिर नागर शैली में बनाई जा रही है जो अन्य जगहों के साथ-साथ गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में प्रचलित है।
हालांकि आशिष सोमपुरा कहते हैं कि माप में संशोधन के अलावा मंदिर के समग्र डिजाइन में कोई फेरबदल नहीं किया गया है। वह कहते हैं, 'इतने वर्षों में इस डिजाइन को इतना प्रचारित किया गया है कि यह अब लोगों के मन में बैठ गया है ऐसे में हम भी इसे बदलना नहीं चाहते हैं। अब हर किसी के दिमाग में यह विचार है कि मंदिर कैसा दिखेगा और हम चाहते हैं कि यह परिकल्पना ऐसे ही बनी रहे।' हालांकि, मंदिर के निर्माण में पहले 200,000 घन फुट बलुआ पत्थर की जरूरत थी लेकिन अब डिजाइन में विस्तार की वजह से राम मंदिर निर्माण में अब 350,000 घन फुट बलुआ पत्थर का इस्तेमाल होने की उम्मीद है।
सोमपुरा के बेटे आशिष ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'जब नवंबर 2019 में शीर्ष अदालत के फैसले ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया तब हमने उस डिजाइन पर काम करना शुरू किया जिसे पिछले 30 वर्षों से पहले से तैयार था। लेकिन अब कई दशकों के विवाद के बाद इस मंदिर पर सबकी निगाहें हैं ऐसे में इस मंदिर में ज्यादा भक्तों के आने की संभावना है क्योंकि इसको लेकर लोगों में ज्यादा आकर्षण होगा। निश्चित तौर पर हमें इस परियोजना के डिजाइन पर दोबारा काम करना होगा और परियोजना में विस्तार कर इसे लगभग दोगुना करना होगा।'
चंद्र्रकांत सोमपुरा ने आधुनिक वास्तुकला में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है लेकिन उन्हें इस बात का गर्व है कि उन्हें वास्तुकला की पारंपरिक भारतीय प्रणाली 'वास्तु शास्त्र' के मुताबिक मूर्तिकला और मंदिर निर्माण करने की जानकारी है। वह अपने दादा जी के साथ बिताए गए दिनों को याद करते हैं जिन्होंने 1940 के दशक में सोमनाथ मंदिर का डिजाइन तैयार किया था जिसके बाद इसका पुनर्निर्माण हुआ था। वह कहते हैं, 'मैं जो कुछ भी जानता हूं, वह मेरे दादा जी ने सिखाया है।' अब तक सोमपुरा ने भारत और विदेश में 100 से अधिक मंदिरों की योजना बनाई है, उनका डिजाइन तैयार किया है और उनका निर्माण/जीर्णोद्धार किया है जिनमें बनासकांठा में मशहूर अंबाजी मंदिर, गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर और लंदन में स्वामीनारायण मंदिर भी शामिल हैं। लंदन के इस मंदिर को नीसडेन मंदिर के रूप में भी जाना जाता है जो दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है।
हालांकि, 1989 में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के तत्कालीन प्रमुख अशोक सिंघल ने सोमपुरा से संपर्क किया था ताकि अयोध्या में हिंदू भगवान की जन्मस्थली की मान्यता वाली जगह पर 'राम लला' (शिशु राम) के लिए एक मंदिर का डिजाइन तैयार करने पर काम किया जा सके। मंदिर को ठीक उसी जगह पर बनाना था जहां तत्कालीन बाबरी मस्जिद मौजूद थी।
उनके डिजाइन के अनुसार, राम मंदिर दो मंजिला होगा और नए डिजाइन के मुताबिक यहां एक लाख भक्तों के आने पर भी कोई समस्या नहीं होगी जबकि पिछले डिजाइन में केवल 30,000-40,000 श्रद्धालुओं को ही अनुमति मिल सकती थी। एक हिंदू मंदिर की सभी विशिष्टताओं को इस मंदिर में शामिल किया गया है जिनमें चौकी, (बरामदा), नृत्यमंडप, गुढ़ मंडप और गर्भ गृह भी डिजाइन का हिस्सा हैं। प्रत्येक स्तंभ पर नक्काशीदार प्रतिमाएं होंगी और गर्भ गृह में संगमरमर की मूर्ति होगी।
सोमपुरा का कहना है कि निर्माण कार्य में करीब तीन साल का समय लगने की संभावना है और इस दौरान या उसके बाद मंदिर प्रांगण पर भी काम शुरू हो सकता है। मंदिर परिसर की एक खासियत इसका दक्षिणी द्वार है और इस परिसर में चार द्वार होंगे। वह कहते हैं, 'उत्तर और पश्चिम भारत में मंदिरों को नागर शैली के अनुसार बनाया गया है जहां 'गर्भ गृह' के ऊपर एक ऊंचा गुंबद बनाने पर जोर दिया जाता है। वहीं दक्षिण भारत में मंदिर द्रविड़ शैली में बनाई जाती है जिसमें मंदिरों के प्रवेश द्वार पर जोर दिया जाता है। इसलिए आप दक्षिण भारत के मंदिरों के प्रवेश द्वार पर 'गोपुरम' या ऊंचाई वाला डिजाइन देखते हैं। दोनों शैलियों की एकता को दर्शाने के लिए राममंदिर परिसर में दक्षिणी द्वार को गोपुरम के रूप में डिजाइन किया गया है।'
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