खरीद योजना में बदलाव से चावल निर्यात को होगा लाभ | संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली August 03, 2020 | | | | |
एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की खरीद रणनीति में बदलाव की सिफारिश की है, जिससे अतिरिक्त चावल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके और भारत से गैर बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा मिले।
पंद्रहवें वित्त आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति ने राज्यों को प्रदर्शन पर आधारित प्रोत्साहन देने का सुझाव दिया है, जिससे कि कृषि निर्यात और फसलों को बढ़ावा मिले जिससे आयात का विकल्प तैयार हो सकता है।
समिति ने कहा है कि एफसीआई घरेलू बाजार में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए चावल का सबसे बड़ा खरीदार है, जो सालाना 4 करोड़ टन खरीद करता है। हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य बढऩे से निर्यात के लिए अधिशेष कम बचता है और भारत के गैर बासमती चावल के लिए अंतराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से कीमतें अप्रतिस्पर्धी हो जाती हैं।
यह एक प्रमुख वजह है, जिसके कारण कई साल से उत्पादन और निर्यात स्थिर है, जबकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक है।
समिति ने कहा है कि एफसीआई की अतिरिक्त खरीद और एमएसपी बढऩा भारत के चावल निर्यात में बड़ा व्यवधान है, जिसका समाधान उचित सरकारी नीतियों के माध्यम से किया जाना चाहिए, जिसमें भावांतर भुगतान योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं।
यह सिफारिश ऐसे समय में आई है, जब भारत के सबसे बड़े मोटे अनाज के उत्पादक पंजाब के किसानों का एक वर्ग एमएसपी खरीद कम किए जाने के किसी कदम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है। समिति ने कहा है कि चावल भारत का सबसे बड़ा जिंस है, जिसमें 7.3 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है, इसके बाद झींगा (4.6 अरब डॉलर) भैंसे का गोश्त (3.6 अरब डॉलर) का स्थान है।
भारत में चावल का अनुमानित उत्पादन 11.5 करोड़ टन है, जिसमेंं 60 से 70 लाख टन बासमती चावल का उत्पादन होता है।
समिति ने फसल मूल्य शृंखलाओं को चिह्नित किया है, जिसमें 340 कृषि एवं जिंस उत्पादों की सूची है। समिति के मुताबिक इन्हें विकसित किए जाने की जरूरत है, जिससे भारत कृषि निर्यात बढ़ाने में सम हो सके और निर्यात मौजूदा 40 अरब डॉलर से बढ़कर अगले कुछ साल मेंं 70 अरब डॉलर तक हो सके।
इस प्रोत्साहन के लिए करीब 8 से 10 अरब डॉलर के इनपुट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्रॉसेसिंग व अन्य चीजों मेंं निवेश की जरूरत है, जिससे 70 लाख से एक करोड़ तक अतिरिक्त नौकरियों के सृजन का अनुमान है। इस तरह से निर्यात को बढ़ावा दिए जने से कृषि की उत्पादकता के साथ किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी होगी।
मूल्य शृंखला विकसित करने के लिए चिह्नित अन्य जिंसों में झींगा, भैंसे का मांस, कच्ची कपास, अंगूर, दलहन, आम, केला, आलू और शहद आदि शामिल हैं।
समिति ने राज्य केंद्रित निर्यात योजना बनाने की भी सिफारिश की है, जिसमें निजी क्षेत्र की अहम भूमिका हो। इसमें कहा गया है कि निजी क्षेत्र के कारोबारी मांग की ओर केंद्रित होने और मूल्यवर्धन में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
'कर्ज की कम मांग और ज्यादा ब्याज से दिक्कत'
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इस साल फरवरी से नीतिगत ब्याज दर में कुल मिलाकर प्रतिशत 1.35 अंक और बैकों की कर्ज की मानक दरों में इसी दौरान प्रतिशत 1.05 अंक की कमी के बावजूद कारोबारियों के लिए कर्ज की वास्तविक वास्तविक ब्याज दर में 0.44 प्रतिशत की वृद्धि ही हुई है। बैंक आफ अमेरिका (बोफा) सिक्योरिटीज इंडिया के अर्थशास्त्री के अनुसार कर्ज की वास्तविक ब्याज दर ही ऋण प्रवाह में तेजी से आती गिरावट का मुख्य कारण है। यह कोरोना वायरस महामारी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ी गिरावट की तरफ भी इशारा करता है। उसके मुताबिक मध्य मई में पहली बार लॉकडाउन उठने के बाद से अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह में 1.06 प्रतिशत की गिरावट रही है। निम्न ऋण मांग और ऊंची वास्तविक ब्याज दर ही अर्थव्यवस्था में सुधार के आड़े आ रही है। ब्रोकरेज कंपनी के मुताबिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार की वृद्धि से यह गुंजाइश बनी है कि कर्ज की ब्याज दरों को मार्च से पहले जहां थी उससे एक प्रतिशत अधिक कटौती की जाए। बोफा अर्थशास्त्री के मुताबिक ऊंची ऋण दरों को मूल थोक मूल्य सूचकांक के साथ समायोजन के बाद भी अर्थव्यवस्था में सुधार को महामारी के प्रभाव से पहले की स्थिति में जाने से रोक रही है। भाषा
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