विज्ञापन के दावे की सच्चाई नहीं जांची तो हस्ती पर लगेगा जुर्माना | बाअदब | | सोमशेखर सुंदरेशन / August 03, 2020 | | | | |
कोविड महामारी की वजह से एक मशहूर शख्सियत की मौत की चाह रखने वाले लोगों की घिनौनी सोच को जवाब मिला। बीमारी की हालत में थोड़े आक्रोशित हो बैठे अमिताभ बच्चन ने कहा कि उनके 9 करोड़ फॉलोअर एक 'विनाशक परिवार' में तब्दील होकर सोशल मीडिया ट्रोल का सफाया कर देंगे।
वैसे इस लेख का मुद्दा सोशल मीडिया पर इस्तेमाल हो रही अभद्र भाषा नहीं है। मुद्दा वह नया कानून है जो विभिन्न उत्पादों एवं सेवाओं का समर्थन करने वाली मशहूर हस्तियों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए लाया गया है। जुलाई महीने में अधिसूचित किए गए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 ने इस नए बदलाव को रेखांकित किया है।
नए कानून में 'अनुमोदन' (एंडोर्समेंट) को इस तरह परिभाषित किया गया है कि किसी हस्ती के किसी भी संदेश, जबानी बयान या नाम, हस्ताक्षर, पसंद के प्रदर्शन से उपभोक्ता को यह लगे कि वह किसी उत्पाद या सेवा के बारे में कोई राय या अनुभव व्यक्त कर रहा है। वहीं विज्ञापन को अनुमोदन के दायरे में ही रखा गया है। इसका मतलब है कि जब कोई व्यक्ति किसी उत्पाद या सेवा का अनुमोदन करता है तो वह उसका विज्ञापन भी कर रहा होता है।
अगर नए कानून के तहत गठित नई संस्था केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण जांच के बाद संतुष्ट हो जाती है कि कोई विज्ञापन गलत या भ्रामक है और किसी उपभोक्ता के हितों के विरुद्ध है तो वह न केवल उस उत्पाद या सेवा के कारोबारी या विनिर्माता बल्कि अनुमोदक को भी ऐसे विज्ञापन को हटाने या उसमें बदलाव करने के लिए निर्देश दे सकती है।
अगर केंद्रीय प्राधिकरण को यह लगता है कि अमुक मामले में जुर्माना लगाना भी जरूरी है तो वह विनिर्माता या अनुमोदक पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगा सकता है। अगर अनुमोदक यही गलती बार-बार करता है तो फिर जुर्माने की रकम 50 लाख रुपये तक जा सकती है।
अगर आपको यह लगता है कि जुर्माने की यह कम राशि इस बात का लाइसेंस देती है कि उपभोक्ता हितों को सस्ते में ही चोट पहुंचाई जा सकती है तो इस कानून में यह प्रावधान भी है कि एक गलत या भ्रामक विज्ञापन का अनुमोदन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक के लिए किसी भी उत्पाद या सेवा के अनुमोदन से प्रतिबंधित किया जा सकता है। अगर यह काम दोहराया जाता है तो फिर प्रतिबंध की अवधि तीन साल तक भी हो सकती है।
स्पष्ट तौर पर जुर्माने की राशि तय करते समय केंद्रीय प्राधिकरण को विज्ञापन से प्रभावित हुई आबादी एवं क्षेत्रफल को भी ध्यान में रखना चाहिए, आखिर अधिक समर्थकों के होने पर आपकी जिम्मेदारी भी अधिक होती है। इसके अलावा यह भी देखना होगा कि उस विज्ञापन की अवधि कितनी है और उसे कितनी बार दिखाया गया है। हालांकि बड़ी हस्ती के शामिल होने पर इसकी पूरी संभावना रहती है कि विज्ञापन को बार-बार दिखाया जाए। केंद्रीय प्राधिकरण को इस बात पर भी गौर करना होगा कि विज्ञापन के जरिये समाज के जिन समूहों को लक्षित किया गया है उन पर इसका प्रतिकूल असर पडऩे की कितनी आशंका है। विज्ञापन से बिक्री पर पड़े असर और सकल राजस्व में वृद्धि जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा।
अनुमोदक के लिए बचाव का उपाय यही है कि अगर उसने विज्ञापन में किए गए दावों की सत्यता की पुष्टि के लिए सम्यक सजगता दिखाई है तो फिर उस पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा। संक्षेप में कहें तो जिन लोगों को यह जानकारी एवं विश्वास है कि उनके समर्थकों को पल भर में भीड़ के रूप में तब्दील किया जा सकता है, उन्हें इस बात का भी संज्ञान होना चाहिए कि उनके अनुमोदन का दर्शकों की नजर में काफी मायने रहता है। किसी भी स्थिति में बाजार से उन्हें यह अहसास हो ही जाएगी। आखिर अनुमोदन के एवज में मिलने वाली फीस संभावित ग्राहकों पर उस हस्ती के असर के अनुपात में ही निर्धारित होती है। लेकिन नए कानून में अब विज्ञापन करने के पहले मशहूर हस्ती द्वारा उसमें किए जा रहे दावों की सच्चाई को परखने की कवायद जरूरी हो गई है।
हालांकि नए कानून का उपभोक्ताओं के हितों से जुड़े दूसरे कानूनों से कुछ जगहों पर टकराव होगा और वह उनका अतिव्यापन भी करेगा। लेकिन यह भविष्य की कानूनी कार्यवाही का विषय होगा। ऐसे मुकदमों की कल्पना की जा सकती है जिसमें यह सवाल खड़ा हो कि क्या किसी आर्थिक क्षेत्र के नियामक को पहले उस मुद्दे पर अपना निष्कर्ष निकाल लेना चाहिए और फिर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण उसके आधार पर कदम उठाए? प्रतिस्पद्र्धा कानून में ऐसे ही अवरोध व्याप्त हैं। इसकी वजह यह है कि तमाम नियामकों के फैसलों में उपभोक्ताओं के हितों को ही आधार बनाया जाता है। वित्तीय क्षेत्र में ऐसे विरोधाभास पहले से ही देखे जा सकते हैं- फिल्मी सितारे किसी बैंक का विज्ञापन तो कर सकते हैं लेकिन स्टॉक एक्सचेंजों ने ब्रोकिंग सेवाओं के विज्ञापन में किसी मॉडल के मुस्कराते हुए चेहरे के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई हुई है।
वैसे कुछ समय बाद स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी लेकिन उपभोक्ताओं के हितों के लिए लाए गए इस कानून से एक ऐसा तूफान खड़ा होगा जो चर्चित शख्सियतों को लोगों को प्रभावित कर सकने की अपनी क्षमता को देखते हुए एहतियात बरतने के लिए बाध्य करेगा। अब ये हस्तियां इस बात को लेकर जरूर सजग हो जाएंगी कि वे किस चीज का और किस तरह से विज्ञापन कर रहे हैं?
(लेखक अधिवक्ता एवं स्वतंत्र परामर्शदाता हैं)
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