राजकोषीय घाटे की वास्तविक स्थिति | ए के भट्टाचार्य / August 03, 2020 | | | | |
क्या वाकई में राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2020-21 के बजट अनुमानों के 83 फीसदी स्तर पर अप्रैल-जून तिमाही में ही पहुंच गया है? नहीं, असल में ऐसा नहीं है।
गत शुक्रवार को लेखा महानियंत्रक (सीजीए) की तरफ से पेश आंकड़ों में वर्ष 2020-21 के बजट अनुमानों की तुलना पहली तिमाही केआंकड़ों से की गई है। इसमें बताया गया है कि समूचे वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के बजट अनुमानों का 83 फीसदी पहली तिमाही में ही पहुंचा जा चुका है। यह आंकड़ा खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करता है।
लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि मौजूदा समय असाधारण स्थिति वाला है और बजट निर्माण भी बेहद असामान्य हो चुका है। मसलन, फरवरी की शुरुआत में बजट पेश किए जाने के तीन महीने बाद सरकार ने कोविड-19 महामारी की आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए 4.1 लाख करोड़ रुपये की उधारी और जुटाने की घोषणा की। इस फैसले के बाद इस वित्त वर्ष में उधारी जुटाने यानी राजकोषीय घाटे की कुल सीमा बढ़कर करीब 12 लाख करोड़ रुपये हो गई।
ऐसी स्थिति में पूरे साल के राजकोषीय घाटे के बारे में सही समझ का आधार फरवरी में बजट में घोषित उधारी स्तर नहीं हो सकता है। आदर्श रूप में यह पैमाना मई में उधारी स्तर में वृद्धि की घोषणा ही होनी चाहिए।
अगर आपने 2020-21 में कुल राजकोषीय घाटे के 12 लाख करोड़ रुपये रहने का पैमाना रखा है तो अप्रैल-जून तिमाही में 6.62 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य का करीब 55 फीसदी ही है। हालांकि अब भी यह बड़ा अंश है और चिंता की वजह है लेकिन 83 फीसदी घाटे जितना बड़ा नहीं है।
मौजूदा असाधारण स्थिति की मांग है कि जिस पिछले साल से इसकी तुलना की जा रही है, उसके आंकड़ों को भी नए सिरे से देखा जाए। वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में राजकोषीय घाटा 4.32 लाख करोड़ रुपये था जो उस साल के 7.04 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक बजट अनुमान का 61 फीसदी था। लेकिन वर्ष 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे का वास्तविक आंकड़ा इससे बहुत अधिक 9.36 लाख करोड़ रुपये था। लिहाजा पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के अंत में वास्तविक राजकोषीय घाटा पूरे साल के घाटे का महज 46 फीसदी ही रहा था।
इसका मतलब है कि केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे के स्तर में गिरावट है। लेकिन यह कहना कहीं बेहतर होगा कि 2020-21 की पहली तिमाही में राजकोषीय घाटा समूचे वित्त वर्ष का 55 फीसदी था जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 46 फीसदी था। यानी सरकार को राजस्व बढ़ाकर या खर्चों में कटौती कर राजकोषीय घाटे में गिरावट को थामने के लिए थोड़ा अधिक वक्त मिल जाएगा, अगर वाकई में यह आंकड़ा 83 फीसदी होता तो फिर उसके पास बहुत कम गुंजाइश बचती।
अप्रैल-जून 2020 के दौरान सरकारी वित्त के बारे में घोषित आंकड़ों से पांच अन्य अहम निष्कर्ष भी निकलते हैं।
पहला, सरकार ने पहली तिमाही में पूंजीगत व्यय को 40 फीसदी बढ़ाकर 88,273 करोड़ रुपये कर दिया। इस साल के बजट में समूचे वित्त वर्ष में पूंजीगत व्यय 22 फीसदी वृद्धि के साथ 4.12 लाख करोड़ रुपये रहने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन महामारी काल में सड़कों एवं अन्य ढांचागत क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत को देखते हुए सरकार ने वित्त वर्ष के लक्ष्य का 21 फीसदी पहले तीन महीनों में ही इस्तेमाल कर लिया है। ऐसे में बाकी महीनों में अधिक पूंजीगत व्यय की उम्मीद न करें। दूसरा, सरकार का राजस्व व्यय भी पहली तिमाही में बढ़ा है लेकिन यह 10.5 फीसदी के कम मार्जिन से बढ़कर 7.28 लाख करोड़ रुपये रहा है। पूरे साल के लिए राजस्व व्यय वृद्धि के करीब 12 फीसदी रहने के अनुमानों को देखते हुए सरकार ने पहली तिमाही में निश्चित रूप से व्यय कम किया है। कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण विकास जैसे मदों में खर्च बढऩे के बावजूद सरकार ने यह संयम दिखाया है। इससे पता चलता है कि सरकार ने कर्मचारियों के महंगाई भत्ते पर व्यय एवं अन्य गैर-बाध्यकारी खर्चों में कटौती की है।
तेल कीमतों के कम होने से भी सरकार को अपना राजस्व व्यय कम रखने में मदद मिली है। अर्थव्यवस्था के दूसरे उपायों के साथ मिलकर इस स्थिति ने अप्रैल-जून 2020 में खाद्य, उर्वरक एवं तेल पर सब्सिडी व्यय को 48 फीसदी घटाकर 79,000 करोड़ रुपये पर ला दिया जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 1.52 लाख करोड़ रुपये था। यह एक बड़ी बचत है और राजस्व व्यय में वृद्धि को सीमित रखने में इससे खासी मदद मिली।
तीसरा, सरकार का कुल व्यय 2020-21 की पहली तिमाही में 13 फीसदी की बढ़त के साथ 8.16 लाख करोड़ रुपये पर रहा है। यह वृद्धि काफी हद तक फरवरी में घोषित बजट पूर्वानुमानों के अनुरूप है जिसमें पूरे साल के लिए 13.25 फीसदी वृद्धि दर का उल्लेेख था। इस तरह सरकार ने अपने व्यय को फरवरी में घोषित समग्र अनुमानों के मुताबिक ही रखा है। उसी के साथ सरकार ने पूंजी व्यय बढ़ाकर और राजस्व व्यय को सीमित रखते हुए अपना व्यय पुनर्समायोजित किया है।
चौथा, अनुमान के ही मुताबिक पहली तिमाही में असली चुनौती राजस्व के मोर्चे से ही आती दिख रही है। सरकार का कुल शुद्ध राजस्व अप्रैल-जून 2019 की तुलना में 47 फीसदी तक गिर गया है। ध्यान रखें कि बजट में सरकार के शुद्ध राजस्व में 20 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था। इस गिरावट का बड़ा कारण शुद्ध कर राजस्व में आई 46 फीसदी की बड़ी गिरावट है। सरकार का गैर-कर राजस्व भी गिरा है लेकिन वह कर राजस्व में आई गिरावट जैसा नहीं है। आने वाले महीनों में विनिवेश प्रक्रिया की रफ्तार ही यह तय करेगी कि गैर-कर राजस्व का लक्ष्य हासिल होता है या समग्र राजस्व ह्रास में योगदान देता है।
कुल मिलाकर, सरकार के लिए यह काम आने वाले महीनों में बेहद कष्टदायी होगा। अगर शुद्ध राजस्व में आई 47 फीसदी की कमी की भरपाई नहीं हो पाती है या फिर उसे कम नहीं किया जाता है तो फिर खर्च बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने की गुंजाइश भी बहुत सीमित हो जाएगी।
आखिर में, अपने राजकोषीय घाटे के लिए वित्त जुटाने में बाहरी स्रोतों पर सरकार की निर्भरता का बढऩा भी चिंता का विषय है। पहली तिमाही में बाह्य वित्तपोषण चार गुना से भी अधिक बढ़कर 29,500 करोड़ रुपये रहा है। यह 2019-20 के समूचे वित्त वर्ष में बाहरी स्रोतों से जुटाई गई उधारी के तिगुने के करीब है। आने वाले महीनों में इस प्रवृत्ति पर करीबी निगाह रहेगी।
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