बैंक में सीईओ का कार्यकाल तय! | रघु मोहन / मुंबई August 03, 2020 | | | | |
निजी क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) का अधिकतम कार्यकाल 15 साल किया जा सकता है। इसके दायरे में प्रवर्तक या पेशेवर सभी तरह के मुख्य कार्याधिकारी आएंगे। यह नियम केंद्रीय बैंक के संशोधित संचालन संहिता मसौदे का हिस्सा हो सकता है। इस मसौदे पर बैंकों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। इसके अलावा मुख्य कार्याधिकारी को जोखिम प्रबंधन समिति (आरएमसी) का हिस्सा बनाने और लेखा समिति की बैठकों में आमंत्रित सदस्य के तौर पर शामिल करने के लिए नियम में बदलाव किए जाएंगे। चेयरमैन विशेषज्ञता के आधार पर प्रमुख समितियों का गठन करेंगे।
मसौदे में प्रवर्तक के मुख्य कार्याधिकारी के तौर पर 10 साल का कार्यकाल और पेशेवर का 15 साल का कार्यकाल तय करने का जिक्र था लेकिन ऐसा करने से प्रवर्तक मुख्य कार्याधिकारी के साथ अनुचित होता। कुछ ने तर्क दिया कि विकसित देशों में बैंक के मुख्य कार्याधिकारियों का कार्यकाल तय नहीं है मगर भारतीय रिजर्व बैंक इससे सहमत नहीं है और 15 साल का कार्यकाल तय करने पर सहमति बन सकती है।
इस बारे में एक सूत्र ने कहा, 'सीईओ के कार्यकाल पर पारदर्शिता चाहने वाले कई बड़े संस्थागत निवेशकों ने भी यह मुद्दा उठाया है। उन्होंने यह मामला ऐसे समय में उठाया है जब कोविड-19 के बाद बैंक रकम जुटाने की कवायद में लगे हैं।' इस बात पर भी ध्यान खींचा गया कि सीईओ के कार्यकाल में अचानक बदलाव से तत्काल प्रभाव पड़ सकता है, खासकर ऐसे समय में जब एकबारगी ऋण पुनगर्ठन पर बातचीत चल रही है। एक दूसरे सूत्र ने कहा, 'इन तमाम बातों के बीच आप पर्दे के पीछे नेतृत्व परिवर्तन की बात नहीं कर सकते हैं।'
भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा था कि जिन सीईओ ने 10 या 15 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है, उन्हें दो वर्ष या मौजूदा कार्यकाल की समाप्ति तक (जो भी बाद में हो) अपने उत्तराधिकारी की पहचान कर उनकी नियुक्ति करनी होगी। निजी बैंक के सीईओ को अब उत्तराधिकारीको लेकर एक स्पष्ट नीति बनानी होगी।
मसौदा संहिता में कहा गया था कि मुख्य जोखिम अधिकारी, मुख्य शिकायत अधिकारी, मुख्य सतर्कता अधिकारी और मानव संसाधन प्रमुख निदेशक मंडल के प्रति जवाबदेह होंगे, हालांकि अब वे सीईओ की उपस्थिति के बगैर भी संबंधित निदेशक मंडल की समितियों के साथ अलग-अलग बैठक कर सकते हैं। लेखा समिति और आरएमसी के ममालों में ऐसा ही चलन है।
यह जरूरत इसलिए आन पड़ी है क्योंकि मुख्य अधिकारियों का बोर्ड की समितियों के समक्ष पेश होने का चलन ठीक से काम नहींं कर रहा था। बीआर अधिनियम के 10 बी के तहत उप-धारा 1ए (उपखंड 2) में कहा गया है, 'ऐसी बैंकिंग कंपनी के मामलों का पूरा प्रबंधन एक प्रबंध निदेशक को सौंपा जाएगा। प्रबंध निदेशक निदेशक मंडल के निदेशकों के निर्देश के अनुसार अपने अधिकारियों का इस्तेमाल करेंगे।' आरबीआई द्वारा गठित सेंटर फॉर एडवांस फाइनैंशियल रिसर्च में संचालन संहिता चर्चा का प्रमुख विषय रहा था।
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