ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार का अतिरंजित प्रचार | एस महेंद्र देव / July 31, 2020 | | | | |
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश की आबादी और श्रम शक्ति का करीब 70 प्रतिशत गांवों में ही रहता है। इनकी क्रय शक्ति में इजाफा पूरी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की मांग सुधारने के लिहाज से अहम है। इस संदर्भ में हमने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति का परीक्षण किया और देखा कि उसमें नई जान फूंकने के लिए किन उपायों की आवश्यकता है जो समूची अर्थव्यवस्था के लिए मददगार साबित हों।
कोविड-19 महामारी ने ग्रामीण भारत को अपेक्षाकृत कम प्रभावित किया है। ऐसी खबरें भी हैं कि लॉकडाउन के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बेहतरी आ रही है। यह सही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार अब काफी हद तक कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार पर निर्भर है। वित्त वर्ष 2021 में कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 से 3 फीसदी की दर से विकसित होने का अनुमान है जबकि समूची अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद 5 से 8 फीसदी तक घट सकता है। मॉनसून के सामान्य रहने के कारण खरीफ और रबी दोनों मौसमों में शानदार फसल होने का अनुमान है। बहरहाल, इसके कारण उपज की कीमतों में कमी भी आ सकती है। इतना ही नहीं आपूर्ति शृंखला की दिक्कतों के कारण संभव है कि किसानों को फसल का उचित मूल्य भी न मिले।
कृषि क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कहानी का केवल एक हिस्सा है। बीते समय में गैर कृषि आय और रोजगार भी बढ़ते रहे हैं। नाबार्ड के एक सर्वेक्षण के मुताबिक ग्रामीण परिवारों की केवल 23 फीसदी आय ही खेती से आती है। नीति आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक राष्ट्रीय आय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था 46 फीसदी की हिस्सेदार है। इससे यह संकेत भी मिलता है कि ग्रामीण आय का दो तिहाई अब गैर कृषि गतिविधियों से उपजता है।
जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में भी कहा गया, कोविड-19 के पहले के समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था दबाव में थी क्योंकि कारोबारी शर्तें कृषि के प्रतिकूल हो गई थीं और ग्रामीण वेतन भत्तों में बढ़ोतरी कम हुई थी क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र में मंदी थी। कोविड-19 ने पहले से संकटग्रस्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था को और अधिक प्रभावित किया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर जो मार्च में 8.4 फीसदी थी वह अप्रैल में 22.9 फीसदी, मई में 22.5 फीसदी और जून में 10.5 फीसदी रही। दूसरे शब्दों में लाखों ग्रामीण श्रमिकों का रोजगार चला गया।
केंद्र, राज्य सरकारों और आरबीआई ने इन चुनौतियों को पहचाना और कई उपायों की घोषणा की। केंद्र सरकार के पैकेज में खाद्यान्न हस्तांतरण, नकद हस्तांतरण, मनरेगा फंड में इजाफा, पीएम किसान योजना की राशि का आवंटन, कृषि क्षेत्र में सुधार आदि शामिल हैं। परंतु ये उपाय शायद धनप्रेषण में आई कमी तथा ग्रामीण मेहनताने में घटोतरी की भरपाई न कर सकें। बुरी बात यह है कि महामारी का प्रसार अब छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी होने लगा है।
जून और जुलाई में ग्रामीण क्षेत्रो में सुधार ने शहरी क्षेत्रों को पीछे छोड़ दिया। दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं के अलावा दोपहिया वाहनों और ट्रैक्टरों की मांग में सुधार के रूप में यह नजर भी आया। बहरहाल, ग्रामीण क्षेत्रों में यह सुधार लॉकडाउन के बाद मांग बढऩे से आया था। यह कोई स्थायी सुधार नहीं था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के वेतन भत्तों में कमी है और आय भी घट रही है। ऐसे में शायद घोषित राजकोषीय उपाय अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए पर्याप्त न हों।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए? सबसे पहले किसानों की आय बढ़ानी होगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा जरूरी है लेकिन आपूर्ति शृंखला को सुधार कर ही फसल के अच्छे दाम मिल सकते हैं। अनिवार्य जिंस अधिनियम, कृषि विपणन और अनुबंधित कृषि से संबंधित कृषि सुधार की मदद से मध्यम अवधि में आय में सुधार किया जा सकता है। बहरहाल, सरकार को इन सुधारों पर और अधिक स्पष्टता लानी होगी, इसमें केंद्र-राज्य समन्वय भी शामिल है। इसी प्रकार कृषि निर्यात को भी बढ़ावा देना होगा और निर्यात नीति पर काम करना होगा।
दूसरा, राहत उपायों का विस्तार करके प्रवासी श्रमिकों को इसमें शामिल करना होगा। जून में प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि करीब 8 करोड़ से अधिक लोगों को पांच महीने और यानी नवंबर के आखिर तक नि:शुल्क राशन दिया जाएगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई इसके दायरे से छूट न जाए। इसी प्रकार नकद हस्तांतरण की राशि और मनरेगा के तहत काम के दिन भी बढ़ाने होंगे। आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन और मैंने सुझाव दिया था कि कोविड के बाद के दौर में कमजोर और वंचित वर्ग के लोगों के लिए न्यूनतम बुनियादी आय तय की जाए। इसके लिए एकबारगी राजकोषीय गुंजाइश बनानी होगी। मध्यम अवधि में हम दोबारा राजकोषीय स्थिरता की ओर लौट सकते हैं।
तीसरी बात, हाल ही में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि बुनियादी क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता है। ग्रामीण बुनियादी ढांचे में निवेश के माध्यम से रोजगार और वेतन बढ़ाए जा सकते हैं। हमें कृषि से परे जाकर गोदाम, लॉजिस्टिक्स, प्रसंस्करण और खुदरा क्षेत्र में निवेश करना होगा। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्र में होने वाला विनिर्माण भी रोजगार और वेतन भत्तों में वृद्धि के लिए अहम है। सन 2004-05 और 2011-12 के दरमियान विनिर्माण ने ग्रामीण श्रमिकों के मेहनताने में इजाफे में अहम भूमिका निभाई।
चौथा, करीब 51 फीसदी सूक्ष्म लघु और मझोले उपक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। उनमें भी नई जान फूंकनी होगी। कोविड-19 ने इन्हें बड़ा झटका दिया है। यह क्षेत्र पहले ही गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट से जूझ रहा था। बिना इस क्षेत्र के आत्मनिर्भर बनना संभव नहीं है।
कृषि और गैर कृषि लिंकेज, ग्रामीण-शहरी संपर्क भी ग्रामीण स्थिति में सुधार की दृष्टि से अहम हैं। प्रोफेसर टीएन श्रीनिवासन के अनुसार श्रमिकों को गैर कृषि कार्यों में लगाना इसका एक हल है। शहरी प्रोत्साहन पैकेज जो बैलेंस शीट और कारोबारी तथा बैंकिंग क्षेत्र की दिक्कतों को हल करेगा वह ग्रामीण भारत के लिए भी मददगार होगा क्योंकि दोनों के बीच संबंध है।
सरकार का राहत पैकेज और बढिय़ा फसल से मांग और आय में सुधार होगा लेकिन यह कमजोर धनप्रेषण, रोजगार और वेतन भत्तों में कमी का मुकाबला नहीं कर सकता। ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार के लिए ऐसे उपाय अपनाने होंगे जिससे किसानों की आय में सुधार हो, आपूर्ति शृंखला बेहतर हो, असंगठित और प्रवासी श्रमिकों को राहत मिले, एमएसएमई में सुधार और और ग्रामीण-शहरी संपर्क बेहतर हो। इससे सारी अर्थव्यवस्था में मांग बेहतर होगी क्योंकि आबादी के बड़े हिस्से की क्रय शक्ति सुधरेगी और खपत भी बेहतर होगी।
(लेखक आईजीआईडीआर, मुंबई के निदेशक एवं कुलपति हैं)
|