केंद्र सरकार की मौजूदा सोच यही लगती है कि राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा इस वित्त वर्ष में आगे की जाएगी। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बीते हफ्ते कारोबारी दिग्गजों के एक समूह से कहा कि मांग को बढ़ाने वाले राजकोषीय राहत पैकेज का सवाल 'अगर' का न होकर महज 'कब' का है। सवाल यह है कि क्या सरकार के पास इतनी राजकोषीय गुंजाइश है कि वित्त वर्ष के बचे हुए समय में वह ऐसे पैकेज की घोषणा कर सके? राजकोषीय प्रोत्साहन पर किसी भी चर्चा में एक बड़ी चिंता यह होती है कि इससे राजकोषीय घाटा कितना बढ़ेगा। नरेंद्र मोदी के शासन में यह चिंता और भी बढ़ी है। इस सरकार को राजकोषीय मजबूती के मोर्चे पर हासिल उपलब्धियों पर गर्व रहा है। वर्ष 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 4.5 फीसदी पर रहने वाला राजकोषीय घाटा मोदी सरकार के दौरान धीरे-धीरे लगातार घटा है। वर्ष 2018-19 में यह घाटा जीडीपी का 3.4 फीसदी था। लेकिन मोदी के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत कुछ अच्छी नहीं रही और वर्ष 2019-20 में यह घाटा 3.8 फीसदी पर पहुंच गया। वर्ष 2020-21 में तो इसमें खासी बढ़ोतरी के आसार दिख रहे हैं। ऐसा लगता है कि राहत पैकेज लाने पर हो रही चर्चा लोक वित्त की मौजूदा स्थिति के सही आकलन के बगैर ही हो रही है। गत मई में सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों से भी इस संभावना को बल मिल रहा है कि सरकार आगे चलकर नया राजकोषीय पैकेज लेकर आ सकती है। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा भी है कि सरकार इसकी घोषणा के सही समय का इंतजार कर रही है। हो सकता है कि आप पैकेज के ऐलान के समय से सहमत न हों लेकिन सरकार ने आने वाले महीनों में शायद ऐसे ही नीतिगत कदम की योजना बनाई है। याद रखें कि सरकार ने कोविड महामारी से निपटने के लिए मई में घोषित करीब 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के लिए वित्त की व्यवस्था अपने बजट से बहुत कम ही की है। इस पैकेज की महज 10 फीसदी राशि ही सरकार के बजट संसाधनों से जुटाई गई है। हालांकि सरकार ने इस साल 1.4 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए पेट्रोल एवं डीजल पर कर एवं उपकर बढ़ाए भी हैं। यह कदम इस सोच पर आधारित है कि इन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में 12 फीसदी की गिरावट आएगी। लेकिन उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि पेट्रोल एवं डीजल की खपत एक बार फिर से मार्च से पहले के स्तर जा पहुंची है। सरकार को तेल क्षेत्र से मिलने वाला अतिरिक्त राजस्व 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक ही होगा। सरकार ने अपने कर्मचारियों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते के भुगतान पर फौरी रोक लगा दी है जिससे इस साल करीब 37,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। इस तरह 21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा के बावजूद सरकारी वित्त पर भार केवल 33,000 करोड़ रुपये का ही पड़ा है। सरकारी उधारी को 54 फीसदी बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये करने से इस बोझ की भी भरपाई हो जाएगी। इसका मतलब है कि 21 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज घोषित करने के बाद भी सरकार के पास करीब 3.9 लाख करोड़ रुपये रह जाएंगे। लेकिन क्या यह रकम पर्याप्त होगी? चिंता सरकार के बजट व्यय को लेकर नहीं है। अप्रैल-मई 2020 के आंकड़े बताते हैं कि कुल सरकारी व्यय एक साल पहले की तुलना में थोड़ा कम ही है जबकि बजट में 13 फीसदी अधिक का प्रावधान है। सावधानी से तैयार योजना ने यह सुनिश्चित किया है कि पूंजीगत व्यय 16 फीसदी बढ़ा है जबकि राजस्व व्यय में करीब 2 फीसदी की गिरावट आई है। राजस्व व्यय के तहत प्राथमिकताएं बदलने से कृषि, ग्रामीण विकास, मत्स्यपालन, पशुपालन, सड़क निर्माण, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर व्यय में खासी बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह से दूसरे विभागों के व्यय में कटौती भी हुई है। बड़ा सवाल यह है कि 3.9 लाख करोड़ रुपये का अधिशेष क्या विपरीत हालात की वजह से 2020-21 में संभावित राजस्व ह्रास की भरपाई के लिए काफी होगा? क्या उसके बाद सरकार के पास कुछ भी बचा रह जाएगा कि वह मांग बढ़ाने वाला प्रोत्साहन पैकेज लेकर आए? अचरज नहीं है कि एक नए राजकोषीय पैकेज की उम्मीदें व्यक्तिगत आयकर एवं कॉर्पोरेट कर संग्रह बढऩे को लेकर वित्त मंत्रालय के आशावादी रुख से ही जगी हैं। जबकि अप्रैल-जून 2020 में इन दोनों करों का संग्रह एक साल पहले की तुलना में 77 फीसदी ही रहा है। इस साल के बजट में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 27 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। इसका मतलब है कि बजट लक्ष्य की तुलना में पहली तिमाही में कर संग्रह 40 फीसदी कम रहा है। जीएसटी संग्रह के मामले में भी हालात ऐसे ही हैं। गैर-कर राजस्व में गिरावट तो और अधिक होगी क्योंकि बजट में विनिवेश से 2.1 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था जिसके पूरा होने के आसार नहीं हैं। अगर बजट लक्ष्यों को पूरा होना है तो इस साल शुद्ध राजस्व 20 फीसदी बढ़कर 20 लाख करोड़ रुपये होना चाहिए। लेकिन शुद्ध राजस्व में 20 फीसदी की गिरावट सरकार के 3.9 लाख करोड़ रुपये के समूचे अधिशेष को खा जाएगी। हालांकि अगर यह गिरावट 10 फीसदी तक सीमित रहती है तो सरकार के पास 1.9 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की गुंजाइश रह जाएगी। इस खेल में तुरुप का पत्ता शुद्ध राजस्व संग्रह ही है। अधिक उधारी लेने पर राजकोषीय घाटा 5.9 फीसदी तक पहुंच सकता है। सरकार इस सीमा से अधिक घाटा नहीं झेल सकती है। नया पैकेज लाने की क्षमता इस पर निर्भर करेगी कि सरकार अपने शुद्ध राजस्व संग्रह में आने वाली कमी को किस तरह कम कर पाती है।
