डिजिटलीकरण के बावजूद बढ़ेगी मुद्रा की मांग | अनूप राय / July 30, 2020 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के स्टाफ अध्ययन में पाया गया है कि जब ब्याज दरें कम होती हैं तो मुद्रा की मांग बढ़ती है और ब्याज दरें ऊंची होने पर मुद्रा की मांग घटती है। इस वजह से देश में आगामी समय में ज्यादा मुद्रा चलन में रहेगी, भले ही डिजिटल लेनदेन का प्रसार बढ़ा हो।
आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 की चौथी तिमाही में पहली बार कार्ड और मोबाइल भुगतान की राशि 10.57 लाख करोड़ रुपये एटीएम निकासी 9.12 लाख करोड़ रुपये से अधिक रही।
विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन के महीनों में यह अंतर और बढऩे की संभावना है क्योंकि लोग वायरस से संक्रमित होने के डर से सार्वजनिक एटीएम को छूना नहीं चाहते थे। लेकिन हालात सामान्य होने पर नकदी का चलन फिर बढ़ सकता है।
आरबीआई के इस अध्ययन का शीर्षक 'भारत में मुद्रा की मांग का मॉडल एवं पूर्वानुमान : लीक से हटकर अवधारणा' है। इसके लेखक पूर्व कार्यकारी निदेशक और मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जनक राज, इंद्रनील भट्टाचार्य, समीर रंजन बेहड़ा, जॉयसी जॉन और भीमप्पा अर्जुन तलवार हैं।
लेखकों का तर्क है कि डिजिटल लेनदेन का व्यापक इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन अध्ययन के सुर यह संकेत देते हैं कि निकट भविष्य में ऐसा होने के आसार नहीं हैं। लेखकों का तर्क है कि मुद्रा की मांग मुख्य रूप से आय पर आधारित है। उन्होंने कहा, 'इसलिए भविष्य में मुद्रा की मांग में व्यापक बढ़ोतरी के आसार हैं। यह नॉमिनल आय की समान दर से बढ़ सकती है। नॉमिनल आय की नीति निर्माण की दिशा तय करने में अहम भूमिका है।'
विश्लेषकों का अनुमान है कि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में ऋणात्मक रह सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि चलन में मौजूद मुद्रा में भी उतनी ही गिरावट आएगी। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पहले खबर प्रकाशित की थी कि आर्थिक वृद्धि में गिरावट के बावजूद कैलेंडर वर्ष के पहले चार महीनों में चलन में मुद्रा 2019 के पूरे वर्ष से अधिक रही। इस साल जनवरी से एक मई के बीच चलन में मुद्रा 2.66 लाख करोड़ रुपये बढ़ी। इसकी तुलना में 2019 में जनवरी से दिसंबर के बीच चलन में मुद्रा 2.40 लाख करोड़ रुपये बढ़ी थी।
आरबीआई की तरफ से जारी साप्ताहिक सांख्यिकी पूरक (डब्ल्यूएसएस) के मुताबिक 2020-21 में (10 जुलाई तक) चलन में मुद्रा 2.31 लाख करोड़ रुपये बढ़ी है। यह पिछले साल की तुलना में तीन गुना अधिक है। इसके साथ ही यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूूपीआई) के जरिये भुगतान जून में अब तक के सर्वोच्च स्तर 1.34 अरब रहे, जो मई में 1.23 अरब की तुलना में 9 फीसदी अधिक हैं। ये अप्रैल में सख्त लॉकडाउन के कारण घटकर 99.9 करोड़ रहे थे। यूूपीआई भुगतान का मूल्य जून में 18 फीसदी बढ़कर 2.62 लाख करोड़ रुपये रहा, जो मई में 2.18 लाख करोड़ रुपये था।
आरबीआई के मामलों में विशेषज्ञ माने जाने वाले एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा, 'इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोविड के हालात अभूतपूर्व हैं, जिनका अनुमान किसी मॉडल से नहीं लगाया जा सकता है। इसके अलावा अध्ययन में अनुमान लंबी अवधि में औसत असर पर आधारित हैं, जिनकी कोविड जैसी घटनाक्रम से तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए अध्ययन के निष्कर्ष भ्रामिक साबित हो सकते हैं।' अध्ययन यह भी संकेत देता है कि जीडीपी में मौजूदा मंदी का पूरा असर मुद्रा की मांग पर कई तिमाही बाद दिख सकता है।
अगर मंदी लंबे समय तक बनी रही तो मुद्रा की मांग पर असर धीरे-धीरे दिखेगा। विशेषज्ञ ने कहा, 'इस तरह जीडीपी मंदी के अनुपात में मुद्रा में कमी नहीं आएगी।' अध्ययन में तर्क दिया गया है कि मुद्रा में वृद्धि की रफ्तार डिजिटल लेनदेन के लगातार इस्तेमाल से सामान्य रह सकती है, इसलिए डिजिटल लेनदेन पर आगे भी जोर दिया जाना चाहिए।
मुद्रा की मांग त्योहारी सीजन, विशेष रूप से दीवाली पर अधिक रहती है, जबकि मॉनसून सीजन के दौरान कम रहती है। वहीं आम चुनावों पर मुद्रा की मांग एक फीसदी बढ़ जाती है। इसमें कहा गया है कि यह चुनावों की प्रकृति यानी राज्यों के आकार या देशव्यापी लोकसभा चुनावों पर निर्भर करता है। नोटबंदी से चलन में मुद्रा काफी घटी थी। वित्तीय बाजारों में सुधार से निवेश के बहुत से विकल्प खुल रहे हैं, इसलिए लोग केवल बैंक जमाओं पर निर्भर नहीं हैं। अध्ययन में कहा गया है, 'इसलिए मुद्रा को रखने की अवसर लागत बैंक जमाओं से नई योजनाओं में स्थानांतरित हो गई है।'
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