सरसों के दाम 26 फीसदी बढ़े | दिलीप कुमार झा / मुंबई July 30, 2020 | | | | |
पिछले चार महीने के दौरान सरसों के दामों में आश्चर्यजनक रूप से 26 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। आपूर्ति की कमी और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य तेल के रूप में घर-परिवारों में सरसों के तेल की बढ़ती मांग के कारण दामों में यह तेजी आई है जो तथाकथित तौर पर कोरोनावायरस (कोविड-19) से लडऩे में मदद करता है।
बेंचमार्क अलवर (राजस्थान) मंडी में सफेद सरसों/सरसों के दाम मंगलवार को 5,000 रुपये प्रति क्विंटल की बेंचमार्क कीमत पार करके 5,025 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच चुके हैं। इस तरह 1 अप्रैल के 4,000 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले दामों में 25.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
जयपुर मंडी में भी सफेद सरसों/सरसों के दामों में 24 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है जो फिलहाल 5,028 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर चल रहे हैं, जबकि 1 अप्रैल को इस तिलहन के दाम 4,050 रुपये प्रति क्विंटल थे।
हालांकि सरसों की कीमतों में अचानक हुई यह तेजी किसानों और स्टॉकिस्टों के लिए तो प्रसन्नता की बात है, लेकिन उपभोक्ताओं को सफेद सरसों/सरसों के तेल के लिए ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं जिससे उनकी बचत कम हो गई है। इसके अलावा खाद्य तेल उत्पादक कारोबर की नैतिक व्यावहारिकता को दरकिनार करते हुए अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए महंगे सरसों के तेल के साथ सस्ते पाम तेल की मिलावट कर रहे हैं। इसके अलावा वे असली जैसी सुगंध के लिए बड़े कंटेनरों में रसायन भी मिलाते हैं। इस प्रकार देश में सरसों के तेल की खपत सरसों उत्पादन के अनुपात में नहीं रहती।
विजय सॉल्वेक्स के प्रबंधन निदेशक विजय दत्त ने कहा कि आपूर्ति की कमी के कारण पिछले चार महीने में सफेद सरसों/सरसों की कीमतों में 25 प्रतिशत से अधिक तक की उछाल आई है। इस साल देश का सरसों उत्पादन कम था, लेकिन घर-परिवारों की खपत में अचानक हुई वृद्धि के कारण सरसों के तेल की मांग में यकायक इजाफा हो गया। सफेद सरसों/सरसों के तेल को मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली की सहायता में बहुत उपयोगी माना जाता है। इस वजह से वैश्विक महामारी कोविड-19 के भारत में फैलने के बाद से इसकी खपत में कई गुना इजाफा हुआ है। छोटे किसानों के पास कोई स्टॉक नहीं बचा है और नए सत्र की फसल की आवक में छह से आठ महीने से अधिक का समय है। इसलिए सरसों के दाम इस पूरे वर्ष के दौरान मजबूत रहने के आसार हैं।
हालांकि उद्योग का अनुमान है कि इस वर्ष देश का सफेद सरसों/सरसों का कुल उत्पादन 76 लाख टन रहेगा जो पिछले साल की अपेक्षा तकरीबन 25 प्रतिशत कम है, लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपने तीसरे अग्रिम अनुमान में हाल ही में खत्म हुए रबी के फसल कटाई सत्र में इसका कुल उत्पादन 87 लाख टन रहने की संभावना जताई है, जबकि पिछले साल समान सत्र में 92 लाख टन उत्पादन दर्ज किया गया था।
ऑनलाइन कृषि जिंसों की बिक्री करने वाले प्लेटफॉर्म एग्रीबाजार द्वारा आयोजित एक वेबिनार में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि पिछले 20-25 वर्षों से तिलहन किसानों की मदद नहीं की गई। सरकार की सभी नीतियां केवल उपभोक्ताओं के पक्ष में रहीं। अब किसानों की मदद करने का समय आ गया है जो कच्चे पाम तेल (सीपीओ) सहित सभी खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के बाद ही संभव हो पाएगा। इसलिए देश को डंपिंग स्थल बनाने से बचाने के लिए तिलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ आयात शुल्क बढ़ाना चाहिए।
इस बीच भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) और हरियाणा राज्य सहकारी आपूर्ति एवं विपणन संघ (हेफेड) ने इस साल संयुक्त रूप से लगभग 13 लाख टन सरसों की खरीद की है। इसके अलावा 1,50,000 टन का पिछला बचा हुआ स्टॉक है। नेफेड के अतिरिक्त प्रबंध निदेशक का कहना है कि भारत का सरसों उत्पादन पिछले 15 वर्षों के दौरान स्थिर रहा है। अब सरकार ने उत्तर पूर्व भारतीय राज्यों में तिलहन की खेती करने के लिए किसानों को आमंत्रित किया है जिससे निश्चित रूप से देश को खाद्य तेल उत्पादन में सुधार और आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
वर्तमान में भारत अपनी 2.5 करोड़ टन की सालाना मांग पूरी करने के लिए मलेशिया, इंडोनेशिया, अर्जेन्टीना जैसे विभिन्न देशों से सीपीओ, आरबीडी पामोलीन, सूरजमुखी तेल तथा सोयाबीन तेल समेत तकरीबन 1.5 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात करता है।
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