कोविड-19 महामारी से बैंक शेयरों की तेजी पर विराम | कृष्ण कांत / मुंबई July 29, 2020 | | | | |
करीब एक दशक पहले, खासकर निजी क्षेत्र के बैंक निवेशकों और फंड प्रबंधकों के लिए अपने पोर्टफोलियो में शानदार प्रतिफल हासिल करने के लिए पसंदीदा शेयर थे। लेकिन कोविड-19 महामारी ने इन शेयरों की तेजी पर विराम लगा दिया है, क्योंकि बैंकिंग शेयरों की कई वर्षों की तेजी पिछले चार महीनों में गायब हो गई है।
निफ्टी बैंक सूचकांक जनवरी से 32 प्रतिशत गिरा है और प्रमुख सूचकांक से लगातार पीछे बना हुआ है। समान अवधि के दौरान, एनएसई निफ्टी में महज 8.2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। बैंकिंग शेयर 24 मार्च के निचले स्तरों से बाजार में दर्ज किए गए सुधार के मामले में भी पीछे रहे हैं। बैंकिंग सूचकांक 24 मार्च को बनाए गए अपने 52 सप्ताह के निचले स्तर से 36 प्रतिशत चढ़ा है, जबकि निफ्टी-50 सूचकांक में समान अवधि के दौरान 50 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई है।
विश्लेषक इस गिरावट के लिए निवेशकों में कोविड-19 और लॉकडाउन की वजह से एनपीए में तेजी को लेकर पैदा हुई आशंका को जिम्मेदार बता रहे हैं। नारनोलिया सिक्योरिटीज में शोध प्रमुख शैलेंद्र कुमार का कहना है, 'भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ऋण ईएमआई पर 6 महीने की रोक से निवेशकों के मद में बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता को लेकर संदेह पैदा हुआ है। इसका बैंकिंग शेयरों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।'
विश्लेषकों का कहना है कि ऋणों को लेकर मौजूदा अनिश्चितता 2020 के अंत तक बनी रहेगी। सिस्टमैटिक्स गु्रपमें संस्थागत इक्विटी के प्रमुख धनंजय सिन्हा कहते हैं, 'बैंक तीसरी तिमाही से अपने एनपीए के बारे में सही स्थिति दर्ज करना शुरू करेंगे और पूरी तरह स्पष्टता मार्च 2021 के अंत तक ही सामने आएगी।'
अपनी वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि उसे आर्थिक गतिविधि में गिरावट की वजह से एनपीए में करीब 50 प्रतिशत की तेजी आने की आशंका है। केंद्रीय बैंक को सकल एनपीए वित्त वर्ष 2020 के अंत में दर्ज किए गए 8.5 प्रतिशत से बढ़कर कुल बैंक ऋणों के 12.5 प्रतिशत पर रहने की आशंका है।
बाजार विश्लेषकों का कहना है कि एनपीए को लेकर आशंका बहुत ज्यादा बनी हुई है और बैंकों के कमजोर प्रदर्शन ने निवेशकों को खरीदारी का मौका दिया है। शैलेंद्र कहते हैं, 'जून तिमाही के नतीजों से संकेत मिलता है कि फंसे ऋणों में तेजी बाजार की शुरुआती उम्मीद के मुकाबले बहुत ज्यादा रह सकती है और कुछ रिटेल ऋणदाता मजबूती के साथ डटे रह सकते हैं।'
अन्य विश्लेषकों का कहना है कि पूरी बैंकिंग व्यवस्था में बढ़ते एनपीए से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त पूंजी मौजूद है। धनंजय का कहना है, 'महामारी और लॉकडाउन की वजह से फंसे ऋण करीब 3 लाख करोड़ रुपये हो सकते हैं, जो बैंकों के पिछले साल के संयुक्त प्रावधान-पूर्व लाभ के बराबर है। इसके अलावा बैंक पर्याप्त नकदी और मुनाफे से जुड़े हुए हैं। इसलिए, मुझे नहीं लगता कि वित्त वर्ष 2022 और उससे आगे वृद्घि योजनाओं पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ेगा।'
विश्लेषक निवेशकों को क्षेत्र में खास शेयरों का चयन करने और कम शेयर कीमत तथा मूल्यांकन का इस्तेमाल अच्छी गुणवत्ता वाले बैंक शेयरों के चयन पर करने की सलाह दे रहे हैं। पहले निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों ने खुदरा उधारी पर ध्यान केंद्रित किया और वे उद्योग तथा बाजार को मात देने में कामयाब रहे। इस बीच, अन्य कुछ विश्लेषक निवेशकों को बैंकों से परहेज करने की सलाह दे रहे हैं। इक्विनोमिक्स रिसर्च ऐंड एडवायजरी सर्विसेज के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम का कहना है कि उन्हें प्रमुख बाजार के मुकाबले बैंकिंग शेयरों पर वित्त वर्ष 2021 के अंत तक दबाव बने रहने का अनुमान है।
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