सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने शहरी रोजगार गारंटी योजना के लागू होने की स्थिति में शहरी बेरोजगारों को 100 दिन के रोजगार की गारंटी अनिवार्य किए जाने की वकालत की है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी को लिखे एक पत्र में पीपुल्स ऐक्शन फॉर इंप्लाइमेंट गारंटी (पीएईजी) ने यह भी कहा है कि अधिनियम या शहरी रोजगार गारंटी योजना में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि इसमें एक तिहाई रोजगार महिलाओं को मिले। इस संगठन ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में मनरेगा का प्रारूप तैयार करने में नजदीक से काम किया था। बिजनेस स्टैंडर्ड ने खबर दी थी कि सरकार शहरी रोजगार योजना पर विचार कर रही है, जो गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तर्ज पर हो सकती है, या यह शहरी रोजगार के लिए मनरेगा के प्रारूप जैसा हो सकता है। कार्यकर्ताओं ने कहा कि शहरी रोजगार योजना के तहत मजदूरी का भुगतान शहरी राज्य न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं होना चाहिए और इसमें जीवन की लागत की चुनौतियों के हिसाब से नियमित रूप से बदलाव किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शहरी स्थानीय निकाय इस तरह की योजना को लागू करने में मुख्य एजेंसी होनी चाहिए और उन्हें इस योजना के तहत वार्ड में होने वाले काम की अंतिम सूची तैयार करने की शक्ति होनी चाहिए। इसमें निजी ठेकेदारों की भूमिका भी खत्म की जानी चाहिए और ठेकेदारों के बदले शहरी स्थानीय निकायों को इस योजना को लागू करने का दायित्व सौंपा जाना चाहिए। प्रस्तावित शहरी योजना में काम की मांग करने का अधिकार, बेरोजगारी भत्ते का अधिकार, कार्यस्थल पर सुविधाओं का अधिकार और समय से भुगतान पाने का अधिकार के साथ देर से भुगतान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था उसी तरह से की जानी चाहिए, जैसा कि मनरेगा में किया गया है। जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय, एनी राजा, निखिल डे और जयति घोष ने इस पत्र से सहमति जताई है।
