कोरोनावायरस ने छोटे-बड़े किसी उद्योग को नहीं छोड़ा तो बेचारी छतरी कैसे बच पाती। देश में बारिश का मौसम शबाब पर है मगर छतरियां या बरसाती खरीदते लोग कम ही दिख रहे हैं। मार्च में ही लॉकडाउन शुरू हो जाने से छतरियों का उत्पादन एकदम गिर गया और मॉनसून में स्कूल-कॉलेज, दफ्तर ठीक से शुरू नहीं होने से इनकी बिक्री पर भी ग्रहण लग गया। हर साल मॉनसून की आहट आते ही देश भर में रंग-बिरंगी छतरियों का बाजार सज जाता था मगर इस बार मॉनसून का 70 फीसदी वक्त गुजरने के बाद भी छतरियां ठीक से नहीं खुल पाई हैं। छतरी उद्योग के लोग बताते हैं कि मार्च में ही लॉकडाउन शुरू हो जाने के कारण केवल 40 फीसदी उत्पादन हो पाया और तैयार माल में भी आधा ही बिक पाया। इस तरह पिछले साल के मुकाबले 70-80 फीसदी कम छतरी बिकी हैं। दिलचस्प है कि मांग नहीं होने के बाद भी छतरी 10-20 फीसदी महंगी बिक रही हैं। पिछले साल 80 से 300 रुपये के बिकने वाले छाते इस बार 100 से 400 रुपये में मिल रहे हैं। इसकी बड़ी वजह उत्पादन में कमी और कालाबाजारी बताई जा रही है। देश की सबसे बड़ी छाता कंपनी सिटिजन अंब्रेला के प्रमुख नरेश भाटिया ने बताया कि छतरी, बरसाती (रेनकोट) और बारिश के दूसरे सामान पर लॉकडाउन का बहुत बुरा असर हुआ है। कारीगरों के पलायन से उत्पादन रुका और 50 फीसदी माल ही तैयार हो पाया। तैयार माल में भी आधे से ज्यादा बिना बिके पड़ा है। टेलो ब्रांड की छतरी तैयार करने वाली कंपनी एसके अंब्रेला के प्रमुख महेंद्र जैन के मुताबिक छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों से आने वाली मांग ही छतरी उद्योग को थोड़ा-बहुत बचा पाई है क्योंकि देहात में पिछले साल जितनी छतरियां ही बिकीं। मगर महानगरों में बिकने वाले छोटे और फोल्डिंग छाते दुकानों और गोदामों में ही पड़े हैं। भारत में छतरी उद्योग का सालाना 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार है। महाराष्ट्र में ही करीब 150 इकाइयां छतरी बनाकर अलग-अलग ब्रांडों के नाम से उतारती हैं। देश भर में 1,000 से ज्यादा छतरी कंपनियां हैं। छतरी विनिर्माण का सबसे बड़ा अड्डा कोलकाता है, जिसके बाद महाराष्ट्र के उमरगांव और भिवंडी तथा राजस्थान के पालना का नाम आता है। लेकिन इन जगहों पर बनी छतरियां दक्षिण भारत कम ही जाती हैं क्योंकि वहां की मांग केरल की छतरी इकाइयां ही कर देती हैं। इस उद्योग को चीन से भी चुनौती मिल रही है। अभी तक तो बाजार पर देसी कंपनियों का ही कब्जा है मगर चीन से आने वाली सस्ती और फैंसी छतरियां मामला बिगाड़ रही हैं। अंब्रेला मैन्युफैक्चरर्स ऐंड ट्रेडर्स एसोसिएशन, मुंबई के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र जैन सरकार से इस उद्योग पर ध्यान देने और छतरी की न्यूनतम कीमत तय करने की मांग कर रहे हैं ताकि औने-पौने दाम में बिकने वाली चीनी छतरियां यहां के लोगों का रोजगार न खा लें।
