कृषि उत्पादों की रुके बरबादी | विवेट सुजन पिंटो / मुंबई July 28, 2020 | | | | |
भारत कई प्रमुख कृषि जिंसों में दुनिया के प्रमुख उत्पादकों में शामिल है। अनुमानित तौर पर कुल खाद्य बाजार 900 अरब डॉलर का है। अभी भी, विश्लेषकों के अनुसार भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर 10 प्रतिशत से नीचे है। परिणाम: मूल्य वृद्घि कमजोर बनी हुई है और खाद्य निर्यात निराशाजनक है।
इस पर विचार करें
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के तौर पर भारत का कृषि निर्यात सिर्फ 2 प्रतिशत है। वहीं ब्राजील के लिए यह करीब 4 प्रतिशत है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्जेंटीना के लिए 7 प्रतिशत, और थाईलैंड के लिए 9 प्रतिशत है। यहां एकमात्र अपवाद दूध है, अनुमानों के अनुसार जिसका प्रसंस्करण स्तर 35 प्रतिशत पर है। दुग्ध क्षेत्र में क्रांति के साथ साथ पिछले कुछ दशकों के दौरान सहकारी समितियों का उभार भी इसमें मददगार है।
डेरी उत्पाद
डिब्बाबंद दूध से लेकर दही, चास, मक्खन, घी और पनीर- देश में व्यापक तौर पर उपलब्ध हैं। इसमें सहकारी समितियों के साथ साथ निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा वितरण का योगदान है। इसके अलावा, संगठित क्षेत्र की कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्धा से डेरी उत्पादों की कीमतें काफी हद तक किफायती बनी हुई हैं। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी का कहना है कि इसमें से ज्यादातर तैयार दूध की खपत देश में होती है और निर्यात के लिए मुश्किल से ही यह बच पाता है।
समस्या कहां है
एग्री-लॉजिस्टिक एवं सेवा कंपनी नैशनल कॉलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रबंध निदेशक सीरज चौधरी का कहना है कि मामले का केंद्र कृषि में आधुनिकता का अभाव है जिसके परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में ज्यादा वेस्टेज यानी बरबादी है। इसके अलावा, भारतीयों में घर पर पके भोजन के लिए पसंद की वजह से संरक्षित भोजन की दिलचस्पी का अभाव बढ़ा है, जिससे घरेलू प्रसंस्करण उद्योग हतोत्साहित हो रहा है। उनका मानना है कि इस तरह के अभाव से फूड प्रोसेसरों के लिए अपने उत्पादों का निर्यात करने के लिए ज्यादा दिलचस्पी नहीं देखी जाती है।
उनका कहना है, 'वैश्विक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एक प्रमुख व्यवसाय है। हमारे लिए अपने उत्पादों के निर्यात में सक्षम होने के लिए हमें सबसे पहले प्रोसेस्ड फूड खाने की आदत डालने की जरूरत होगी। यह यहां मुश्किल से ही दिखता है। इसके अलावा, हमारे खानपान आदतों के लिए कोई राष्ट्रीय पैमाना नहीं है। यह हरेक क्षेत्र में बदलता है।'
अनुमानों के अनुसार, भारत में उत्पादित कुल भोजन का करीब 40-50 प्रतिशत हिस्सा या तो पर्याप्त आपूर्ति शृंखला और भंडारण सुविधाओं के अभाव की वजह से बरबाद हो जाता है। नैशनल एकेडेमी ऑफ एग्रकल्चरल साइंसेज द्वारा कराए गए एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि मजबूत भंडारण सुविधा तक पहुंच का अभाव भारत में सभी तरह के भोजन के लिए फसल-बाद नुकसान में बड़ा योगदान देता है।
अध्ययन में कहा गया कि ग्राम स्तर पर बढ़ रही भंडारण क्षमता से न सिर्फ खाद्य नुकसान घटाने में मदद मिलेगी बल्कि इससे ग्रामीण आबादी को आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद मिलेगी। विश्लेषकों का कहना है कि इसके अलावा अच्छी भंडारण सुविधाओं से किसानों को कई तरह से अपनी उपज को लाभदायक बनाने में मदद मिल सकेगी जिनमें अपने अनाज को मंडियों, सहकारी समितियों और स्थानीय व्यापारियों को बेचना शामिल है। इससे घरेलू खाद्य प्रसंस्करण और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
विश्लेषकों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में खाद्य प्रसंस्करण के संदर्भ में जिन श्रेणियों में तेजी आई है, उनमें बिस्कुट, नूडल्स, कन्फेक्शनरी, रेडी-टु-ईट, रेडी-टु-कुक, और स्नैकिंग सेगमेंट शामिल हैं। हालांकि इनमें से कई श्रेणियां सालाना दो अंक की वृद्घि दर्ज कर रही हैं, क्योंकि उन्हें बेहतर सुविधा, तेज शहरीकरण और ऊंची खर्च योग्य आय से मदद मिल रही है। उदाहरण के लिए बिस्कुट जैसे कुछ सेगमेंटों ने कोविड-19 महामारी के दौरान घरेलू खपत में वृद्घि दर्ज की।
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