भारतीय पत्रकार नहीं कर सकते मोदी से कड़े सवाल | जिंदगीनामा | | कनिका दत्ता / July 28, 2020 | | | | |
अमेरिकी समाचार चैनल फॉक्स न्यूज के कार्यक्रम फॉक्स न्यूज सनडे के टेलीविजन प्रस्तोता क्रिस वालेस ने पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का साक्षात्कार लिया जो 19 जुलाई को प्रसारित हुआ। जाहिर है इसके बाद अमेरिकी टेलीविजन प्रस्तोताओं में उत्साह का माहौल था। ट्रंप बिल्कुल अपरंपरागत ढंग से पेश आते हैं। ऐसे में उनका साक्षात्कार, प्रेस ब्रीफिंग या संबोधन उदारवादियों को काफी मसाला देता है और इस 40 मिनट लंबे साक्षात्कार ने भी उन्हें निराश नहीं किया। भारतीयों के लिए यह देखना दिलचस्प रहा होगा अमेरिकी राष्ट्रपति फॉक्स न्यूज के ऐसे समाचार प्रस्तोता को साक्षात्कार देने को तैयार हो गए जो जाहिर तौर पर राष्ट्रपति का प्रशंसक नहीं है और अपने कार्यक्रम में निरंतर राष्ट्रपति की बातों का झूठ और सच बताता रहा। उसे राष्ट्रपति के लज्जित करने वाले ट्वीट भी झेलने पड़े हैं। फॉक्स न्यूज बुनियादी तौर पर दक्षिणपंथी और ट्रंप समर्थक है और क्रिस वालेस का ट्रंप का साक्षात्कार लेना वैसा ही था जैसे कि निधि राजदान या श्रीनिवासन जैन रिपब्लिक टीवी के लिए नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार लें।
बहरहाल इस बात को यहीं भुला देना बेहतर है क्योंकि ऐसा लगता नहीं कि रिपब्लिक टीवी देश को वैसी बातें जानने देगा जैसी वालेस ने अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछीं। इतना ही नहीं मोदी शायद उन शर्तों पर साक्षात्कार देने के लिए तैयार भी नहीं हों जिन शर्तों पर वालेस ने ट्रंप का साक्षात्कार लिया। वालेस ने राष्ट्रपति से महामारी से निपटने, व्हाइट हाउस की तथ्यात्मक चूकों के बचाव आदि को लेकर उनसे सवाल किए और डेमोक्रेट प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन के खिलाफ ट्रंप के आरोपों पर उनकी गलतियां सुधारीं। उन्होंने एक संज्ञानात्मक परीक्षण पास करने पर राष्ट्रपति के गौरवबोध का मखौल उड़ाया और फॉक्स न्यूज के ताजातरीन पोल में उनके बाइडन से पिछडऩे की बात कही। यहां तक कि उन्होंने दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति का यह कहते हुए मजाक भी उड़ाया कि क्या वह साक्षात्कार देते हुए असहज महसूस कर रहे हैं।
ट्रंप के बारे में यह बात अब सभी जान चुके हैं कि वह मीडिया द्वारा की जाने वाली आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। उन्होंने फॉक्स न्यूज के पोल में बाइडन का पक्ष लिए जाने पर खुलकर निराशा व्यक्त की। फॉक्स न्यूज भी उदारवादी/वाम रुझान वाले मीडिया को लेकर आए दिन अपशब्दों का इस्तेमाल करता नजर आता है। इसके बावजूद वह सीएनएन समेत तमाम मीडिया समूहों से मिलते भी हैं और उन्हें अपशब्द भी कहते हैं। कोरोना महामारी को लेकर उनकी रोजाना की प्रेस ब्रीफिंग उनके लिए इतनी बड़ी शर्मिंदगी का सबब बन गया था कि उनके सलाहकारों ने उनका ब्रीफिंग में शामिल होना बंद करा दिया। वह पत्रकारों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि वे झूठी खबरों का प्रसार करते हैं लेकिन पत्रकार उन्हें पलटकर जवाब भी देते हैं। इसके बावजूद ट्रंप उनके सवाल सुनते हैं। शुरुआत में व्हाइट हाउस की रिपोर्टिंग करने वाले एक पत्रकार को प्रतिबंधित करने का प्रयास हुआ था लेकिन अदालत ने ऐसा नहीं होने दिया। यह दलील दी जा सकती है कि इस मीडिया सर्कस से कुछ खास हासिल नहीं होने वाला लेकिन यह कम से कम मतदाताओं को उनके नेता के बारे में जानकारी देता है।
मोदी की स्थिति इससे एकदम उलट है। प्रधानमंत्री के रूप में अपने अब तक के छह वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने कभी संवाददाता सम्मेलन को संबोधित नहीं किया। इस लिहाज से देखें तो मीडिया के सामने आने में संकोच करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहीं अधिक बेहतर नजर आते हैं क्योंकि उन्होंने पद पर रहते दो संवाददाता सम्मेलनों को संबोधित किया था। मोदी ने कुछ साक्षात्कार दिए हैं लेकिन वे उन मीडिया घरानों को दिए गए हैं जो सत्ताधारी दल के करीबी हैं। इन साक्षात्कार में ऐसे सवाल किए जाते हैं जिनके बारे में उन्हें पहले से पता होता है। ऐसा ही एक साक्षात्कार उन्होंने बालाकोट हवाई हमले के बाद न्यूज नेशन चैनल को दिया था। वहां हमारे तकनीक प्रेमी और तकनीकी रूप से कुशल प्रधानमंत्री ने दो प्रस्तोताओं को बताया था कि उन्होंने उस समय हमला करने का आदेश दिया था जब आकाश में घने बादल थे क्योंकि उस समय हमारे बमवर्षक विमान रडार की पकड़ में आने से बच जाते। ध्यान रहे ट्रंप ने दिल्ली में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में पहले से तय ढर्रे पर बात की। अमेरिका के साथ रिश्ता भारत के लिए अहम है और ट्रंप की दिल्ली यात्रा उस समय हुई जब शहर हाल के वर्षों के सबसे खतरनाक दंगों में से एक से जूझ ही रहा था। मोदी ने उस विषय में कुछ नहीं कहा।
इसी तरह किसी पत्रकार ने देशव्यापी लॉकडाउन के प्रबंधन, राहत पैकेज की प्रकृति, चीन की घुसपैठ, रोजगार और अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर भी प्रधानमंत्री से कोई सवाल नहीं किया। हम इन विषयों पर उनकी घोषणाएं सुनते हैं लेकिन कोई उनसे उस तरह सवाल नहीं कर पाया जैसे वालेस ने ट्रंप के साथ किए। जबकि पूछने के लिए तमाम सवाल हैं। मीडिया के साथ कमोबेश हर भारतीय राजनेता का यही हाल है। जैसा कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के शासन में हमने देखा कि सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को गिरफ्तार किया जा रहा है, मारा जा रहा है और उन पर छापे मारे जा रहे हैं। यह सब सामान्य हो गया है। जेफ बेजोस के स्वामित्व वाला द वॉशिंगटन पोस्ट राष्ट्रपति का कटु आलोचक है। परंतु न तो उन पर और न ही एमेजॉन पर कोई कर छापा पड़ा न उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। भारत में इसकी कल्पना नहीं कर सकते। शायद यही कारण है कि भारत में बेजोस जैसे कारोबारी नहीं पनपे। यहां तक कि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय भी पत्रकारों को यह कहने का साहस नहीं जुटा पाया कि वे रिपोर्टिंग के दौरान सरकार के निर्देशों का पालन करें। जबकि भारत की सबसे बड़ी अदालत ने प्रवासी श्रमिकों के संकट के समय ऐसा निर्देश जारी किया।
अमेरिकी संस्थानों के खिलाफ ट्रंप की तमाम कोशिशों के बावजूद मीडिया जुझारू बना हुआ है। भारतीय मीडिया इस मामले में सिर्फ ईष्र्या कर सकता है।
|