रकम के दूसरे विकल्प तलाशे उद्योग: दास | अनूप रॉय / मुंबई July 27, 2020 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज कहा कि उद्योग को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए रकम का इंतजाम करते समय बैंकों के अलावा दूसरे माध्यम भी तलाशने चाहिए क्योंकि कर्ज फंसने के कारण बैंक और जोखिम नहीं लेना चाहते। दास ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की संचालन परिषद की बैठक में उद्योग प्रमुखों से बातचीत के दौरान पिछले पांच साल में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में हुई प्रगति का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक 2030 तक 4.5 लाख करोड़ डॉलर की जरूरत पड़ेगी, जिसका इंतजाम केवल बैंकों से नहीं हो सकता।
दास ने कहा, 'बुनियादी परियोजनाओं को जरूरत से ज्यादा कर्ज देने के खमियाजे से बैंक अभी उबर ही रहे हैं। बुनियादी ढांचा क्षेत्र को दिए गए कर्ज में बैंकों का एनपीए अच्छा खासा हो चुका है। इसीलिए रकम जुटाने के दूसरे विकल्प भी तलाशे जाना जरूरी हो गया है।'
उन्होंने कहा कि 2015 में राष्ट्रीय निवेश एवं बुनियादी ढांचा कोष (एनआईआईएफ) का गठन इस दिशा में एक बड़ा रणनीतिक कदम था। लेकिन कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार को प्रोत्साहन, संकट वाली संपत्तियों की समस्या दूर करने के लिए प्रतिभूतिकरण और उपयोग शुल्क के उचित मूल्य निर्धारण तथा संग्रह को नीतिगत स्तर पर प्राथमिकता मिलती रहनी चाहिए।
कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में एएए रेटिंग वाली फर्मों का बोलबाला है और तरलता बढ़ाने के आरबीआई के उपायों से इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 1 लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी हुए। दास ने कहा कि 20 फीसदी तक बॉन्ड नुकसान पर गारंटी देने की सरकारी पहल से कम रेटिंग वाले लेनदारों को भी मदद मिली है। उन्होंने कहा, 'एएए से कम रेटिंग वाले बॉन्ड में भी हलचल दिख रही है। आरबीआई निजी क्षेत्र में नकदी की जरूरतों को लेकर सजग है और जब भी जरूरत होगी, तरलता बढ़ाने के उपाय किए जाएंगे।'
गवर्नर ने कहा कि स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी बड़ी परियोजनाओं से अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है। उन्होंने कहा कि बुनियादी परियोजनाओं के लिए सरकारी और निजी निवेश से रकम मिल सकती है। मगर दास ने बड़ी परियोजनाओं के लिए लाखों करोड़ रुपये के एकमुश्त निपटान, सॉवरिन वेल्थ फंड के गठन या राष्ट्रीय नवीकरणीय कोष बनाने के सवाल या सुझाव पर कुछ नहीं कहा। उद्योगपतियों ने बाह्य वाणिज्यिक उधारी की सीमा 75 करोड़ डॉलर से अधिक करने के बारे में भी सुझाव दिया गया, ताकि उद्योग विदेश में कम ब्याज दरों का लाभ उठा सकें।
रुपये के उचित मूल्य से जुड़े सवाल पर दास ने कहा कि आरबीआई का काम बेजा उतारचढ़ाव पर अंकुश लगाना है, रुपये को किसी एक स्तर पर बनाए रखना नहीं। कर्ज के वायदे से मुकरने पर बैंकों को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा कि कर्ज देने या नहीं देने का फैसला बैंकों पर ही छोड़ देना चाहिए।
बैठक के दौरान कर्ज मॉरेटोरियम पर उद्योग में मतभेद दिखा। एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने कहा कि जो कंपनियां कर्ज चुका सकती हैं, उन्हें इसका फायदा नहीं मिलना चाहिए क्योंकि उनके कारण बैंकों और छोटी एनबीएफसी को दिक्कत हो रही है। मगर भारती एंटरप्राइजेज के सह-वाइस चेयरमैन राकेश भारती मित्तल ने मॉरेटोरियम को सही ठहराते हुए कहा कि ऐसा नहीं होने पर कई कारोबार एनपीए में तब्दील हो जाएंगे। दास ने इस मसले पर कुछ भी नहीं कहा।
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