अर्थशास्त्रियों के मुताबिक बढ़ा-चढ़ाकर कही गई ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढऩे की बात | इंदिवजल धस्माना और संजीव मुखर्जी / नई दिल्ली July 26, 2020 | | | | |
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग बढऩे की बार बार कही गई बात अतिरंजित हो सकती है। हालांकि इसके समर्थन में वे अलग अलग वजहों का हवाला दे रहे हैं। क्रेडिट सुइस के हाल के एक नोट में कहा गया है कि सरकार के समर्थन के कदमों का शुद्ध लाभ महज 7,500 करोड़ रुपये प्रति माह हो सकता है, जो ग्रामीण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 0.9 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि महीने में 35,000 करोड़ रुपये समर्थन पर कम रेमिटेंस, खराब होने वाले कृषि उत्पादों की कमजोर स्थिति और कृषि क्षेत्र में कर्ज की वृद्धि कम होने का 27,500 करोड़ रुपये का असर हो सकता है।
बहरहाल इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर (आईजीसी) के कंट्री डायरेक्टर और पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा कि सरकार के समर्थन का असर कोरोनावायरस (कोविड-19) की वजहों से कम हो सकता है।
सेन ने कहा, 'हम देख सकते हैं कि कुछ विपरीत असर (ऑफसेटिंग फैक्टर्स) मौजूद है। कोविड-19 के बाद बाहर से आने वाला धन (रेमिटेंस) कम हुआ है। अगर सरकार का समर्थन नहीं होता तो ग्रामीण इलाकों में स्थिति बहुत बुरी होती।' उन्होंने कहा कि इन कदमों से रिकवरी की बात बढ़ा चढ़ाकर कही गई है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा कृषि उत्पादों के दाम अभी स्थिर हैं, लेकिन आने वाले महीनों में और कम हो सकते हैं, जिससे किसानों की आमदनी प्रभावित होगी।
इंडियन काउंसिल फार रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) में कृषि के इन्फोसिस चेयर प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में रिकवरी की पूरी कहानी को अलग पहलुओं के हिसाब से देखे जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, 'पहली और अहम बात यह है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था गिरी नहीं थी और अन्य क्षेत्रों के विपरीत उत्पादन हो रहा था। लोगों ने लॉकडाउन के दौरान भी खाना नहीं बंद किया है, मांग बनी हुई है।'
उन्होंने कहा कि होटलों और रेस्टोरेंटों से थोक मांग नहीं थी, लेकिन परिवारों की मांग में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में मांग में कमी गंभीर नहीं थी, जैसा कि अन्य क्षेत्रों में है।
उन्होंने कहा कि दूसरी बात यह है कि इस साल खरीद अच्छी हुई है और करीब 70,000 से 75,000 करोड़ रुपये किसानों के हाथों में लॉकडाउन के महीनों के दौरान गए हैं। इसका असर खाद, बीज और ट्रैक्टर की बढ़ी बिक्री में नजर आ रहा है।
बहरहाल गुलाटी ने कहा कि दूसरा पहलू विस्थापितों का है। शहरों में 10,000 से 15,000 रुपये महीने कमाने वाले विस्थापितोंं की वापसी हुई है और उन्हें मनरेगा में बहुत कम मजदूरी पर काम करना पड़ रहा है। ऐसे में इन परिवारों की कमाई घटी है।
उन्होंने कहा, 'ग्रामीण इलाकों में जिन परिवारों के पास जमीन पर्याप्त नहीं है, उनके एक या दो सदस्य शहरों में काम कर रहे हैं। उन परिवारों में बाहर से आने वाला धन रुक गया है। वहीं कृषि से होने वाली आमदनी भी स्थिर बनी हुई है, जिससे उनके ऊपर अतिरिक्त दबाव बना है।'
केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि कृषि उत्पादों के दाम कम होंगे, क्योंकि मॉनसून बेहतर है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति ज्यादा होगी क्योंकि सरकार उतना नहीं खरीद सकेगी, जितना वह खरीद सकती थी। इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य में कोई उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं हुई है और यह 4 से 5 प्रतिशत की सीमा में है।
उन्होंने कहा, 'अगर ग्रामीण क्षेत्रों में कुल आमदनी ऊपर जाती भी है तो प्रति परिवार आमदनी कम होगी क्योंकि विस्थापितों की वजह से परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ गई है। खेती का रकबा बढ़ा है और लोग ज्यादा बुआई कर रहे हैं। इससे खपत प्रभावित होगी।'
कृषि मंत्रालय के हाल के आंकड़ों के मुताबिक इस महीने के तीसरे सप्ताह में खरीफ की प्रमुख फसलों का रकबा पिछले साल की समान अवधि से 18.5 प्रतिशत बढ़ा है।
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर) के निदेशक एस महेंद्र देव ने कहा, 'मुझे लगता है कि ग्रामीण क्षेत्र की रिकवरी की पूरी कहानी बढ़ा चढ़ाकर कही गई है।'
उन्होंने कहा कि ग्रामीण रिकवरी की कहानी कृषि क्षेत्र के बेहतर होने के अनुमान के आधार पर लगाई गई है और अगर वृद्धि 2.5 से 3 प्रतिशत भी रहती है तो यह कुल जीडीपी का करीब 15 प्रतिशत होगी। उन्होंने कहा कि गैर कृषि क्षेत्र, जिसकी कुल ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी है, इस समय व्यवधानों व लॉकडाउन की वजह से प्रभावित हुई है।
देव ने कहा, 'ग्रामीण इलाकों में मजदूरी पर कुछ समय के लिए दबाव बना रहेगा क्योंकि निर्माण कार्यों ने अभी रफ्तार नहीं पकड़ी है।' जून महीने में दोपहिया वाहनों और ट्रैक्टर की बिक्री में तेजी आई है, साथ ही रोजमर्रा के इस्तेमाल वाले सामान (एफएमसीजी) की बिक्री बढ़ी है, इसकी वजह से भी मांग बढ़ी हुई दिख सकती है, जो बंदी के दौरान ठप पड़ी थी।
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