टीके की होड़ | संपादकीय / July 26, 2020 | | | | |
नोवल कोरोनावायरस यानी सार्स-सीओवी2 का टीका बनाने के लिए दो भारतीय कंपनियों को पहले और दूसरे चरण के परीक्षण की इजाजत दी जा चुकी है। इनमें से एक टीका अहमदाबाद की कैडिला हेल्थकेयर और दूसरा टीका हैदराबाद की भारत बायोटेक बना रही है। भारत बायोटेक ने इंसानी परीक्षण के लिए निजी प्रयोगशालाओं तथा कुछ सरकारी अस्पतालों के साथ समझौता भी किया है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने एक 30 वर्षीय व्यक्ति को भारत बायोटेक के 'कोवैक्सीन' नामक टीके की पहली खुराक गत सप्ताह दी।
भारत में विकसित किए जा रहे ये टीके अब दुनिया भर के उन 25 टीकों में शामिल हो गए हैं जिनका परीक्षण किया जा रहा है। इन टीकों में से पांच टीके तीसरे चरण के परीक्षण में शामिल हो चुके हैं। इस चरण में आबादी के एक बड़े हिस्से पर इन टीकों का परीक्षण किया जाता है। इसमें ऐसे लोग खासतौर पर शामिल हैं जो जोखिम वाली श्रेणी में आते हैं। उदाहरण के लिए बुजुर्ग तथा अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोग। एजेडडी1222 या 'ऑक्सफर्ड वैक्सीन' भी इनमें से एक है। इसे यह नाम इसलिए मिला क्योंकि इसे ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के जेनर इंस्टीट्यूट ने यूरोप की एक बड़ी औषधि निर्माता कंपनी ऐस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर विकसित किया है। एजेडडी1222 के निर्माताओं ने बिल गेट्स के कॉलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सीईपीआई), निजी-सार्वजनिक गठजोड़ जीएवीआई (इसमें भारत सरकार शामिल है) और पुणे की टीका निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ समझौता किया है। आशा है कि एजेडडी1222 को भारत में परीक्षण की इजाजत भी मिलेगी। चीन में बने तीन टीके भी परीक्षण के तीसरे चरण में है। इनमें से एक सिनोवैक और दो सिनोफार्म द्वारा बनाए गए हैं। अमेरिकी कंपनी मॉर्डना के जल्द शुरू होने वाले परीक्षण को लेकर भी काफी आशाएं हैं।
अब यह स्पष्ट है कि सुरक्षित, प्रभावी और सबकी पहुंच लायक टीका बनाने की होड़ वाकई दुनिया भर में चल रही है। परंतु इसका एक अर्थ यह भी है कि टीके के निर्माण के साथ ही तमाम आर्थिक और भू-राजनीतिक चीजों को भी ध्यान में रखना होगा। मसलन पहला सफल टीका कौन बनाएगा? इसे दुनिया भर में कैसे पहुंचाया जाएगा? इससे किसे लाभ होगा और कौन मुनाफा कमाएगा? भारतीय नीति निर्माताओं समेत सबको ये सवाल अब उठाने होंगे। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के परेशान करने वाले प्रभाव नजर भी आ रहे हैं: गत सप्ताह ब्रिटेन की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा एजेंसी ने चेतावनी दी थी कि रूसी हैकर ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में टीका बनाने वाले संस्थानों को निशाना बना रहे हैं। इस बीच यह भी खबर आई कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक को खरीदने की कोशिश की। वह कंपनी फाइजर के साथ मिलकर टीका विकसित कर रही है जो तगड़ा दावेदार हो सकता है। कंपनी को खरीदने का सीधा प्रयास विफल हो जाने पर अमेरिकी सरकार ने बायोनटेक/फाइजर के साथ 2 अरब डॉलर का समझौता किया है ताकि उसे टीके की 60 करोड़ खुराक मिल सके। अमेरिका अब तक ऐसे 4.5 अरब डॉलर के समझौते कर चुका है।
ऐसे में भारत सरकार को टीके की सबसे तगड़ी दावेदार कंपनियों को चिह्नित करके आने वाले प्रभावी टीके के लिए जल्दी से जल्दी संभावित लाइसेंस और देश में उत्पादन शुरू करने संबंधी समझौते करने चाहिए। यदि कोई भारतीय कंपनी या ऑक्सफर्ड टीका बना लेती है तो यह सबसे बेहतर होगा। परंतु भारत को कारगर साबित होने वाले कुछ शुरुआती टीकों पर एकाधिकार का प्रयास भी करना चाहिए। अगर सरकार इस बात पर नजर रखे कि कौन सी कंपनियां बेहतर काम कर रही हैं तो वह निश्चित तौर पर टीके को लेकर समझौता करने वाले शुरुआती देशों में शामिल हो सकती है।
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