अच्छे मॉनसून से जगी बेहतर धान की आस | बीएस संवाददाता / लखनऊ July 25, 2020 | | | | |
उद्योगों के मोर्चे पर निराश करने वाली खबरों के बीच अच्छे मॉनसून ने इस बार धान की अच्छी फसल की उम्मीद जगाई है। समूचे प्रदेश में मॉनसून के पहले चरण में ही अच्छी बारिश के कारण धान की बंपर रोपाई कर ली गई है। मॉनसून सीजन के पहले ही महीने में इस बार कमोबेश पूरे प्रदेश में करीब 50 फीसदी बारिश हो गई है। ज्यादातर धान उत्पादक जिलों में तो सौ फीसदी से भी ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है।
कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पूरे प्रदेश में जुलाई के तीसरे हफ्ते तक 85 फीसदी धान की रोपाई की जा चुकी है। अगैती किस्म का धान तो ज्यादातर जिलों में सौ फीसदी तक रोप दिया गया है। केवल चंद जिलों में ही मक्का की फसल लेने के बाद किसानों के लिए धान की रोपाई बाकी रह गई है। उत्तर प्रदेश में धान का कटोरा कहे जाने वाले जिलों गोंडा, बाराबंकी, बहराइच, बलरामपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, महराजगंज, कुशी नगर, गोरखपुर और देवरिया वगैरा में इंद्र देवता की खासी मेहरबानी रही है जिसके चलते न केवल समय से धान की नर्सरी लगी, बल्कि रोपाई का काम भी पूरा होने के करीब है।
उत्तर प्रदेश में तकरीबन 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की खेती होती है और अब तक 50-52 लाख हेक्टेयर में रोपाई का काम पूरा कर लिया गया है। अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश के 25 जिलों में तो 120 फीसदी से ज्यादा बारिश हुई है, जबकि 14 जिलों में 80 से 100 फीसदी तक पानी बरसा है। इन सभी जिलों में ही धान की भरपूर खेती होती है। प्रदेश में महज 13 जिले एसे हैं जहां 40 फीसदी के आसपास बारिश रिकॉर्ड की गई है। इनमें बुंदेलखंड और पश्चिम के कुछ जिले शामिल हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि धान की खेती करने वाले जिलों में पानी की कोई दिक्कत नहीं है। धान की रोपाई के साथ ही यूरिया की खपत भी बीते एक महीने में बढ़ी है। दरअसल रोपाई के साथ ही खेतों में यूरिया का छिड़काव भी होता है। प्रदेश में इस साल अब तक 12 लाख टन यूरिया की खपत हो चुकी है, जबकि बीते साल यह 6.90 लाख टन ही था।
इस बार उत्तर प्रदेश में धान की खेती के साथ खास बात किसानों का देशी बीजों का बढ़ा प्रयोग भी है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक अच्छी बारिश होने के साथ किसानों ने इस बार बड़े पैमाने पर देशी किस्म के बीजों को प्राथमिकता दी है। इसका एक बड़ा कारण पानी की बहुतायत के साथ ही देशी धान की अच्छी कीमत भी मिलना है। उनका कहना है कि संकर प्रजाति के धन की पैदावार देशी के मुकाबले डेढ़ गुना होती है, लेकिन उसमें बीमारी की संभावना ज्यादा होने के साथ खाद व कीटनाशक ज्यादा लगता है। इस बार किसानों ने करीब 15 से 20 फीसदी देशी बीजों का प्रयोग किया है।
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