बाजार की प्रतिकूल स्थिति होने के कारण शैडो बैंकों का दीर्घावधि बाजार ऋण घट रहा है और यह अंतर बैंक से वित्तपोषण से भरा जा रहा है। शैडो बैंकिंग क्षेत्र में बाजार से वित्तपोषण का प्रतिशत घटना चिंता का विषय है, क्योंकि इससे इस क्षेत्र में नकदी का जोखिम बढ़ सकता है, जो पहले से ही आईएलऐंडएफएस के पतन के बाद संकट के दौर से गुजर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में यह कहा गया है। इस क्षेत्र के में बाजार से वित्तपोषण कुल मिलाकर घटा है और इसका असर सबसे ज्यादा छोटे एनबीएफसी पर पड़ा है। छोटे और मझोले एनबीएफसी, जिनकी रेटिंग एए या इससे नीचे है या उनकी रेटिंग नहीं है, बाजार और बैंकों द्वारा त्याग दिए गए हैं,जिसकी वजह से नकदी को लेकर दबाव है। यह दबाव लक्षित दीर्घावधि रीपो ऑपरेशन (टीएलटीआरओ 2.0) की सुस्त प्रतिक्रिया में भी नजर आ रहा है। रिजर्व बैंक द्वारा पेशकश किए गए धन का आधा ही नीलामी में बैंकों द्वारा लिया गया है, माना जा रहा था कि इससे एनबीएफसी को सस्ती दरों पर नकदी मिल सकेगी। दिसंबर 2019 तक एनबीएफसी की देनदारी पोर्टफोलियो में गैर परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) के रूप में दीर्घावधि बाजार वित्तपोषण की हिस्सेदारी घटकर 40.8 प्रतिशत रह गई थी, जो मार्च 2017 में 49 प्रतिशत थी। इस अंतर की भरपाई ज्यादातर बैंकों द्वारा की गई क्योंकि इस अवधि के दौरान बैंकों का वित्तपोषण 23 प्रतिशत से बढ़कर करीब 30 प्रतिशत हो गया। आईएलऐंडएफएस के पतन के बाद शैडो बैंङ्क्षकग क्षेत्र धन के संकट से जूझ रहा है। बैंक भी जोखिम से बचने के लिए छोटे एनबीएफसी को धन नहीं दे रहे हैं, लेकिन बेहतर रेटिंग और संरक्षण वाले बड़े एनबीएफसी को बाजार से आईएलऐंडएफएस के पहले के दौर की दरों से सस्ते में कर्ज मिल जा रहा है। वित्तपोषण के मसले के परिणामस्वरूप एनबीएफसी ने 2-3 महीने की नक दी रखना शुरू किया, भले ही लागत ज्यादा पड़ रही है।
