सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड कितने बेहतर? | गुरबचन सिंह / July 24, 2020 | | | | |
व्यावहारिक ज्ञान कहता है कि जब किसी संपत्ति की कीमत कम होती है तो उसकी मांग अधिक होनी चाहिए। वहीं कीमत बढऩे पर मांग घटनी चाहिए। हालांकि हकीकत में किसी संपत्ति की मांग उस समय काफी अधिक होती है, जब उसकी कीमत बढ़ती है। जब उसकी कीमत कम होती है या गिर रही होती है तो उस संपत्ति की मांग भी कम होती है। ऐसा लगता है कि यह नियम सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर भी लागू होता है। इन बॉन्डों का मूल्य सोने पर आधारित होगा। इस समय सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की मांग भी अधिक है, जब सोने की कीमतें अधिक हैं और बढ़ रही हैं। पहले जब सोने की कीमतें कम थीं तो सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की मांग भी कम थी।
हालांकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की शुरुआत नवंबर 2015 में हुई थी, लेकिन करीब 35 फीसदी धनराशि चालू वित्त वर्ष में जुटाई गई है। सोने की कीमतें 17 जुलाई तक पिछले एक साल के दौरान 39 फीसदी बढ़ी हैं।
ऐतिहासिक रूप से सोने की कीमतें लंबी अवधि में धीरे-धीरे बढ़ी हैं। हालांकि इस बढ़ोतरी का एक छोटा हिस्सा ही वास्तविक मूल्य संवर्धन है। ज्यादातर बढ़ोतरी सामान्य महंगाई की वजह से है। लंबी अवधि (वर्ष 1836 से 2011 तक) का एक अध्ययन दर्शाता है कि सोने की कीमतों में वास्तविक औसत सालाना वृद्धि दर 1.1 फीसदी है। रॉबर्ट बारो और संजय मिश्रा, इकनॉमिक जर्नल 2015)। ऐतिहासिक रूप से अधिक वास्तविक मूल्य बढ़ोतरी की अवधियों के बाद कमोबेश कम वास्तविक मूल्य वृद्धि के दौर आए हैं।
अब यह साफ है कि अन्य परिस्थितियां समान रहें तो सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की ज्यादा बिक्री ऐसे समय होगी, जब सोने की वास्तविक कीमत अधिक होगी, बजाय इसकी वास्तविक कीमतें कम होने के समय। इसके अलावा सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड व्यावहारिक उद्देश्य के लिए हैं, जिन्हें केवल आठ साल बाद ही भुनाया जा सकता है। अगर मौजूदा वास्तविक कीमत ऊंची है तो इन्हें भुनाने के समय तक वास्तविक मूल्य वृद्धि कम रहने के आसार हैं। इस बात की संभावना है कि भविष्य में ज्यादातर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड ऐसे समय भुनाने के लिए तैयार होंगे, जब वास्तविक कीमत अधिक होने का समय नहीं बल्कि वास्तविक कीमतें कम होने का समय होगा। इसका रोचक निष्कर्ष यह है।
भारत सरकार संयोग से यह मुनाफे का 'कारोबार' चला रही है। जो असल में महंगी कीमतों पर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड बेच रही है और कम कीमतों पर खरीद या भुना रही है। इसका नतीजा यह है कि निवेशक अब जो सौदा कर रहे हैं, संभव है कि वह पर्याप्त फायदा न दे।
यह सही है कि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड न केवल सरकार बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। निवेशक सोने पर आधारित बॉन्डों में निवेश करते हैं, न कि भौतिक सोने में। इसलिए देश को सोने के आयात पर खर्च करने की जरूरत नहीं है। हालांकि यह सही है, लेकिन यह भी मुमकिन है कि असल में सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित न हों।
इसका यह मतलब नहीं है कि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड हमेशा निवेशकों के लिए खराब हैं। असल में वे ऐसे समय अच्छा निवेश साबित हो सकते हैं, जब सोने की वास्तविक कीमतें अपने संभावित लंबी अवधि के रुझान की तुलना में कम हों। इसमें बॉन्ड को भुनाने के समय तक अच्छा वास्तविक मूल्य संवर्धन होने की संभावना है। इसलिए सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड एक अच्छा निवेश साबित हो सकता है। मगर ज्यादातर निवेशक उस समय निवेश नहीं करते हैं, जब संपत्तियां तुलनात्मक रूप से कम कीमतों पर उपलब्ध होती हैं।
हमें ऐसी योजनाओं की दरकार है, जो न केवल समाज और सरकार के हित में हों बल्कि निवेशकों के भी हित में हों और यह असल में संभव है।
आम तौर पर वितरक सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की बिक्री ऐसी योजना के रूप में करते हैं, जो भौतिक सोने से भी बेहतर है। यह सही है, लेकिन कुछ हद तक भ्रामक भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि विकल्प केवल भौतिक सोने और सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में से ही किसी को एक चुनने का का नहीं है। निवेशकों के पास बैंक जमा, म्युचुअल फंड द्वारा जारी यूनिटों, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (रीट्स), इंटरनैशनल फंड आदि के विकल्प हैं। इनमें से कुछ इस समय संभवतया आठ साल के लिए बेहतर निवेश साबित हो सकते हैं। भले ही सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में 2.5 फीसदी ब्याज, कुछ कर लाभ और मूल्य सोने में हो।
मुख्य मुद्दा सोने की भविष्य की कीमत है। यह सही है कि अगर व्यक्ति यह भांप लेता है कि आगे सोने का बाजार कमजोर रहेगा तो सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को भुनाने की तारीख से पहले बाजार में बेचा जा सकता है। इस तरह सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में निकासी का रास्ता है। मगर यह व्यावहारिक रूप से तभी मिलेगा, जब उनमें कारोबार की मात्रा ठीकठाक होगी। इससे भी बड़ी दिक्कत यह है कि अगर व्यक्ति यह अनुमान लगाता रहे कि सोने का बाजार किस दिशा में जाएगा तो सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड निवेश नहीं बल्कि सटोरिया श्रेणी में आएगा।
यह विविधीकरण में मददगार है। हालांकि उसके लिए आदर्श समय वह था, जब सोने की कीमतें कम थीं। आखिर क्या सोना और उसके मुताबिक सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में निवेश सुरक्षित नहीं है? पूरी तरह नहीं। इसमें कीमत मायने रखती है। अगर कोई व्यक्ति कोई 'सुरक्षित' संपत्ति ऊंची वास्तविक कीमत पर खरीदता है। इसके बाद व्यक्ति वह संपत्ति ऐसे समय बेचता या भुनाता है, जब वास्तविक कीमतें कम हों तो यह तथाकथित सुरक्षा अपने आप में सवालों के घेरे में है।
(लेखक भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, नई दिल्ली में अतिथि प्राध्यापक हैं)
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