कोरोनावायरस के हमले और उसकी वजह से हुए लॉकडाउ ने यूं तो हर किसी पर और हर कारोबार पर असर डाला है मगर खाने-पीने के कारोबार की तो लुटिया ही डूब गई है। सोशल डिस्टेंसिंग ने लोगों को बाहर खाना-पीना ही भुला दिया, जिसकी सबसे तगड़ी चोट रेस्तरां उद्योग पर पड़ी है। महाराष्ट्र सरकार ने लॉकडाउन में ढील देते हुए 8 जुलाई से होटल और लॉज खुलवा दिए मगर रेस्तरां अब भी बंद हैं। दिल्ली में रेस्तरां खोलने क इजाजत दे दी गई है मगर न ग्राहक हैं न धंधा है और खर्च पूरे हैं। इसीलिए दोनों महानगरों में हजारों रेस्तरां बंद होने की नौबत आ गई है। महाराष्ट्र खासकर मुंबई में कारोबारी रेस्तरां खोलने को तैयार ही नहीं हैं। सबसे बड़ी वजह रेस्तरां का किराया है। इंडियन होल्टस एंड रेस्टॉरेंट्स एसोसिएशन (आहार) के सचिव निरंजन शेट्टी ने बताया कि मुंबई में करीब 20,000 रेस्तरां हैं, जिनमें ज्यादातर किराये पर ही हैं। लॉकडाउन में तो सब चुप हैं मगर रेस्तरां खुलते ही जगह के मालिक किराया मांगेंगे। इसके अलावा बिजली-पानी का बिल भी भरना पड़ेगा। एक औसत रेस्तरां को इस पर 15-20 लाख रुपये खर्च करने होंगे। चार महीने से रेस्तरां बंद होने के बाद उनके मालिकों के पास खर्च करने के लिए इतनी रकम ही नहीं है। इसलिए मुंबई में तो इजाजत मिलने पर भी 80 फीसदी रेस्तरां खुल ही नहीं पाएंगे। एस्टेट एजेंट एसोसिएशन के अजय दुबे ने बताया कि मुंबई और आसपास के 90 फीसदी रेस्तरां किराये पर हैं और लंबे लॉकडाउन के बाद सबके शटर गिर रहे हैं क्योंकि कारोबारियों को नहीं लगता कि अगले तीन महीने में भी इन्हें खोलने की इजाजत मिलेगी। दिल्ली में भी ढेरों रेस्तरां बंदी के कगार पर हैं। राजधानी में 10,000 से अधिक रेस्तरां और 2,500 से 3,000 छोटे होटल हैं। यहां रेस्तरां खुल तो गए हैं मगर सामाजिक दूरी के चक्कर में न तो ग्राहक आ रहे हैं और न ही खाना मंगा रहे हैं। उस पर किराया उन्हें मारे जा रहा है। दिल्ली के सबसे पॉश इलाके और दुनिया के चुनिंदा महंगे बाजारों में शुमार कनॉट प्लेस में रेस्तरां किराये पर देने वाले एक उद्यमी ने बताया कि इलाके में 150 से 500 रुपये वर्गफुट किराया चल रहा है और ज्यादातर रेस्तरां 1,500 से 2,000 वर्गफुट में चल रहे हैं। जाहिर है कि उनका किराया 2 लाख से 10 लाख रुपये महीना तक है। कुछ रेस्तरां तो 20-25 लाख रुपये महीना किराये पर चल रहे हैं। लेकिन ज्यादातर रेस्तरां चलाने वालों ने तीन महीने से किराया नहीं दिया है और अब किराया माफ करने की मांग भी शुरू हो गई है। मुंबई के रेस्तरां मालिक 25 फीसदी किराया माफ करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि मामूली रेस्तरां चलाने पर भी हर महीने करीब 10 लाख रुपये लगते हैं। औसतन 1,200 वर्ग फुट जगह की जरूरत होती है, जिसका किराया ही 1.5 लाख रुपये माहवार होता है। रेस्तरां में कम से कम 20 कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है। ज्यादातर रेस्तरां में सेंट्रल एयरकंडीशनिंग होती है। ग्राहक आए या न आए, एसी पूरे रेस्तरां में चलेगा और बिजली का बिल भी भरना पड़ेगा। उस पर सरकार ने किसी को भी नौकरी से नहीं निकालने और वेतन नहीं रोकने की बात कह दी है। मगर चार महीने के लॉकडाउन में कारोबारी खुद ही दिवालिया हो रहे हैं, वेतन कहां से दें। इसलिए लॉकडाउन की अवधि का आधा वेतन सरकारी खजाने से दिया जाना चाहिए। हालांकि कि राये में कुछ माफी से भी काम नहीं चलेगा क्योंकि ग्राहक ही नहीं हैं। उत्तरी दिल्ली रेस्टॉरेंट एसोसिएशन के संयोजक और अशोक विहार में रेस्तरां चलाने वाले तरुणदीप सिह टक्कर ने बताया कि उनके रेस्तरां पर 4 लाख रुपये किराये, बिजली बिल, कर्मचारियों के वेतन और कच्चे माल समेत 10 लाख रुपये हर महीने खर्च होते हैं। 60-70 फीसदी ग्राहक आएं तभी लागत निकलेगी। मगर इन दिनों 20 फीसदी ग्राहक भी नहीं आ रहे हैं। टक्कर का रेस्तरां भी ग्राहक कम आने के कारण बंद है। रेस्तरां बेशक बंद है मगर बिजली का बिल, चौकीदार का वेतन और किराया तो चुकाना ही पड़ रहा है। इसलिए टक्कर समेत तमाम कारोबारी यही मान रहे हैं कि हालात नहीं सुधरे तो दो-तीन महीने में दिल्ली के 30-40 फीसदी रेस्तरां बंद हो जाएंगे। जो रेस्तरां टेकअवे या होम डिलिवरी के सहारे चलते थे, उनकी भी हालत पतली हो गई है। दिल्ली के मयूर विहार में ऐसे ही एक रेस्तरां के कर्मचारी ने बताया कि लॉकडाउन से पहले रोजाना 8-10 हजार रुपये होम डिलिवरी और खाना पैक कराकर ले जाने वालों से हो जाती थी मगर अब मुश्किल से 3-4 हजार रुपये के ऑर्डर मिल रहे हैं। रेस्तरां में बैठकर खाने वालों से 2-3 हजार रुपये मिल जाते हैं। मगर इसमें तो रोज के खर्च ही नहीं निकल रहे, कमाई कहां से होगी। इसीलिए आहार रेस्तरां के लिए पैकेज की मांग कर रहा है। आहार के अध्यक्ष शिवानंद डी शेट्टी ने कहा कि उद्योग को बचाने के लिए बैंकों से बिना ब्याज का या कम ब्याज वाला कर्ज दिलाना होगा। ग्राहकों की कमी के बीच या तो रेस्तरां मालिक घाटा उठाए या ग्राहकों से ज्यादा बिल वसूले। इसलिए सस्ते कर्ज और कर में छूट जैसे इंतजाम करने होंगे। होटल ऐंड रेस्टॉरेंट एसोसिएशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया के पूर्व अध्यक्ष भरत मलकानी की शिकायत है कि राहत पैकेज में होटल उद्योग तक का नाम नहीं लिया गया, रेस्तरां तो बहुत दूर की बात है। इसलिए कोरोनावायरस के डर और बारिश के मौसम में घर पर दुबके ग्राहकों को देखकर रेस्तरां कौन खोलेगा। छोटे और मझोले होटल भी मार से बचे नहीं हैं। दिल्ली होटल ऐंड रेस्टॉरेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष और करोलबाग के होटल उद्यमी संदीप खंडेलवाल ने बताया कि अपने किराये के होटल से उन्हें खर्च काटने के बाद 1.5 से 2 लाख रुपये महीने की कमाई हो जाती थी। लेकिन तीन महीने तक होटल बंद रहने पर कमाई तो धेले भर की नहीं हुई उलटे वेतन, किराये, बिजली बिल और सरकारी करों की करीब 28 लाख रुपये की देनदारी चढ़ गई है। लागत निकालने के लिए कम से कम 50 फीसदी कमरे भरने चाहिए मगर अब तो कर्ज की किस्त, ओवरड्राफ्ट ब्याज भी नहीं निकल पा रहे हैं। दिल्ली होटल महासंघ के महासचिव पवन मित्तल ने कहा कि क्वारंटीन के लिए जरूरत पडऩे की बात कहकर राज्य सरकार ने होटल खोलने ही नहीं दिए हैं। खुल गए तो भी साल भर हालत पतली रहेगी। ऐसे में घाटे के डर से किराये के होटल वाले तो कारोबार बंद कर भाग चुके हैं। जिनका खुद का होटल है, उनकी हालत भी बुरी है। मित्तल ने बताया कि 25 कमरे का छोटा होटल चलाने के लिए भी हर महीने 3-4 लाख रुपये चाहिए। इतना खर्च करने की कुव्वत कम कारोबारियों की ही रही है।
