शुक्रवार को राजस्थान पर फैसला | |
आदिति फडणीस / नई दिल्ली 07 22, 2020 | | | | |
राजस्थान में कांग्रेस के दो खेमों में तनाव और घबराहट तेज हो गई है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने के आदेश पर फैसला शुक्रवार तक के लिए टाल दिया है। अदालत इस मामले में 24 जुलाई को फैसला सुनाएगी। अदालत ने तब तक विधानसभा अध्यक्ष के विधायकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है।
हालांकि, पायलट और भारतीय जनता पार्टी के हाथ मिलाने की संभावना से पहले ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जल्द से जल्द विधानसभा सत्र बुलाएंगे और विश्वास मत हासिल करने की मांग करेंगे। विश्वास प्रस्ताव के दौरान गहलोत के खिलाफ वोट देने वाले कांग्रेस विधायक स्वत: ही अयोग्य हो जाएंगे। अगर कोई सरकार एक बार विश्वास मत हासिल करने में जीत हासिल करती है तब इसके छह महीने बाद तक कोई अन्य विश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
दोनों तरफ से संख्या लगभग बराबर है। सचिन पायलट के समूह के 19 विधायक, भाजपा के 72, निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों की कुल संख्या 97 होती है जो 200 सदस्यों वाली विधानसभा के आधे के स्तर से महज पांच कम है। अशोक गहलोत को भारत पीपुल्स ट्राइबल पार्टी (बीपीटीपी) के दो विधायकों का समर्थन हासिल है जिसकी वजह से उनके समूह की तादाद 102 तक पहुंच जाती है। हालांकि उनकी सरकार पर अल्पमत में आने का खतरा बना रहेगा।
बेशक ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार राज्यपाल से रिपोर्ट देने के लिए कह सकती है। अगर राज्यपाल कहते हैं कि राजनीतिक हालात विधायकों की खरीद-फरोख्त के अनुकूल बन रहे हैं और कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है तब केंद्र इन आधार पर विधानसभा को निलंबित करने की अनुमति दे सकता है।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष को इस आधार पर सदन के किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार है कि वह दल-बदल विरोधी कानून के तहत पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल है। लेकिन किसी विधायक को अयोग्य ठहराने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को एक याचिका दी जानी चाहिए कि वह पार्टी विरोधी गतिविधि में लिप्त है या उसने पार्टी के निर्देशों के खिलाफ मतदान किया है या पार्टी की अवहेलना की है। इसके बाद अध्यक्ष सभी पक्षों की बात सुनकर फैसला ले सकते हैं। कानून के तहत अयोग्य ठहराने का अधिकार अध्यक्ष के पास है। यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है। कश्यप ने कहा कि ऐसे में कोई भी अध्यक्ष के फैसले को चुनौती देते हुए अदालत में जा सकता है।
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