संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने सोमवार को अपना मंगल यान सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया। इसी महीने मंगल ग्रह के लिए अमेरिका और चीन के अभियान भी शुरू होने वाले हैं। ये दोनों पहले से ही अंतरिक्ष गतिविधियों में स्थापित हैं लेकिन यूएई ने पहली बार दूसरे ग्रह पर अपना यान भेजा है। इन अभियानों का मकसद यह पता लगाना होगा कि क्या मंगल पर कभी जीवन मौजूद था? इनके लगभग एक साथ प्रक्षेपित होने के पीछे भी खगोलीय स्थितियां हैं। दरअसल पृथ्वी एवं मंगल सबसे करीब होने पर केवल 5.5 करोड़ किलोमीटर ही दूर होते हैं। इन दोनों ग्रहों के बीच सबसे अधिक दूरी करीब 40 करोड़ किलोमीटर की होती है। इसे आसानी से समझने के लिए पिज्जा के बारे में सोचें। ग्रहीय कक्षाएं पिज्जा के आकार वाली यानी अंडाकार होती हैं। पिज्जा के टुकड़े आकार में समान होते हैं। इसका मतलब है कि खगोलीय पिंड समान समयावधि में एक तय कक्षा में समान दूरी तय करते हैं। कुछ कक्षाएं आकार में अधिक अंडाकार होती हैं जबकि कुछ अधिक 'उत्केंद्रित' होती हैं। सूर्य से दूर होने के कारण मंगल की कक्षा पृथ्वी से अधिक बड़ी है और यह अधिक उत्केंद्रित भी है। हरेक 26 महीने पर कुछ हफ्तों की ऐसी अवधि होती है जिसमें मंगल एवं पृथ्वी की पंक्तियोजना आदर्श होती है। उस समय अंतरिक्षयान भेजने पर ईंधन की खपत कम होने के साथ ही यात्रा के समय में भी बचत होती है। फिर भी, मंगल तक पहुंचने में यान को करीब सात महीने लग जाते हैं। यूएई के अंतरिक्षयान 'अमाल' का कोलोराडो यूनिवर्सिटी की सलाह से डिजाइन और निर्माण किया गया है। इसे जापान से प्रक्षेपित किया गया और 2021 की शुरुआत में इसके मंगल तक पहुंचने की संभावना है। उस समय यूएई के गठन के 50 वर्ष पूरे होने वाले होंगे। अमाल यान मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करने के साथ ही जलवायु में बदलाव पर भी नजर रखेगा। चीन अपना यान अगले कुछ दिनों में ही छोडऩे वाला है। थ्यानवेन मिशन में मंगल ग्रह का चक्कर लगाने वाले ऑर्बिटर के अलावा लैंडर भी शामिल है। चीन ने मिशन के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी है। वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के यान 'पर्सिवरेंस' के जुलाई के अंत में छोड़े जाने की योजना है। यह मंगल के जेजेरो क्रेटर इलाके में उतरेगा जहां पर अभी तक कोई यान नहीं उतरा है। मंगल का यह इलाका संभवत: एक सूखी हुई नदी का डेल्टा है। इस उबड़-खाबड़ इलाके में यान को उतारना काफी महत्त्वाकांक्षी अभियान है। एक नई मार्गदर्शन प्रणाली और पैराशूट से लैस उपकरण का इस्तेमाल किया जाएगा। मंगल का चक्कर लगाना तुलनात्मक रूप से आसान काम है। लेकिन मंगल ग्रह पर यान को उतारना पूरी तरह अलग प्रक्रिया है जिसे 'सात मिनट के आतंक' की संज्ञा दी जाती है। पहले यान को कक्षा में लाया जाता है और फिर लैंडर को उससे अलग कर सतह पर उतारने का जोखिमभरा काम अंजाम देना होता है। इसमें समस्या यह होती है कि पृथ्वी से मंगल तक रेडियो सिग्नल भेजने और वापस प्राप्त करने में न्यूनतम सात मिनट का समय लग जाता है। इसका मतलब है कि वास्तविक समय में हम मंगल तक पहुंचे यान की गतिविधियों पर नजर नहीं रख सकते हैं, नियंत्रित करना तो दूर की बात है। कृत्रिम मेधा के दौर में भी स्वायत्त कलाबाजी को अंजाम दे पाना एक बड़ी चुनौती है। इस समय मंगल की नजदीकी कक्षा में छह यान मौजूद हैं जिनमें भारत का मंगलयान भी शामिल है। इसके अलावा नासा के तीन यान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के दो यान भी हैं। अभी तक केवल अमेरिका ही मंगल पर सफलतापूर्वक अपना लैंडर उतार सका है और उसने इस काम को आठ बार अंजाम दिया है। नासा के इनसाइट एवं क्यूरिऑसिटी अब भी सक्रिय अवस्था में हैं। मंगल एवं पृथ्वी हमारे सौरमंडल के क्रमश: तीसरे और चौथे ग्रह हैं और दोनों की ही सतह ठोस है। लेकिन मंगल पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में केवल 38 फीसदी है। इसका वायुमंडल बहुत हल्का है और बेहद कमजोर चुंबकीय क्षेत्र होने से यह और भी हल्का हो रहा है। धरती का मजबूत चुंबकीय क्षेत्र सौर विकिरण को रोकता है और अधिक गुरुत्वाकर्षण होने से यहां का वायुमंडल भी सघन रहता है। मंगल की चुंबकीय शक्ति करोड़ों साल पहले खत्म हो चुकी है। यहां बहने वाली सौर हवाओं में अत्यधिक ऊर्जावान कण होते हैं जिससे वहां का वायुमंडल लगातार आयनीकृत होता रहता है और ऊर्जावान कणों के अंतरिक्ष में चले जाने से वायुमंडल भी धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। वायुमंडल के लोप ने मंगल की सतह पर पानी को भी विलुप्त कर दिया है जबकि ध्रुवों पर बर्फ मौजूद है। सतह का तापमान 20 डिग्री से लेकर माइनस 150 डिग्री सेल्सियस रहने का अनुमान है। मंगल की सतह देखने से लगता है कि अतीत में यहां समुद्र एवं नदियां रही होंगी और अब भी सतह के नीचे पानी द्रव रूप में मौजूद हो सकता है। वास्तव में, लैंडर मंगल की सतह पर उतरने के बाद इसी की पड़ताल करेंगे। सतह का अन्वेषण अपने आप में बड़ा काम है। भले ही पृथ्वी का आकार बड़ा है लेकिन इसका करीब 80 फीसदी हिस्सा तो पानी से ही घिरा हुआ है। वहीं मंगल का भू-परिदृश्य पूरी तरह खुला है और इसका सतही इलाका धरती के सूखे इलाकों जितना ही बड़ा है। द्रवीय रूप में पानी एवं ठोस वायुमंडल होने पर मंगल पर जीवन संभव हो सकता था। पर्सिवरेंस यान चट्टानों में छेद कर नमूने इक_े करेगा ताकि जैविक निशानियों की तलाश की जा सके। यह सतह के भीतर पानी की मौजूदगी का भी पता लगाने की कोशिश करेगा। रोवर कार्बन डाई ऑक्साइड को विघटित कर ऑक्सीजन पैदा करने का भी प्रयास करेगा। इन अभियानों में नई तकनीकों के प्रयोग अगले दशक में मंगल पर इंसान भेजने की तैयारी के लिए अहम होंगे। हालांकि यह अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। अंतरिक्ष यात्री सात महीनों का सफर कर मंगल पर जाएंगे और बेहद विपरीत परिस्थितियों में 26 महीने रहेंगे। फिर वापसी में भी सात महीने लगेंगे।
