5 सरकारी बैंक रहेंगे, बाकी सब बिकेंगे! | रॉयटर्स / नई दिल्ली/मुंबई July 20, 2020 | | | | |
पिछले साल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का महाविलय करने और दस बैंकों को मिलाकर चार बड़े बैंक बनाने के बाद अब सरकार अपने आधे से ज्यादा बैंकों के निजीकरण की संभावना तलाश रही है। सरकार और बैंकिंग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बैंकिंग उद्योग के कायाकल्प के तहत सरकार की योजना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटाकर पांच तक सीमित करने की है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि योजना के मुताबिक पहले चरण में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रभावी निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब ऐंड सिन्ध बैंक में बहुलांश हिस्सेदारी बेची जा सकती है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'सरकार की योजना 4 से 5 सरकारी बैंकों का स्वामित्व अपने पास रखने की है।' मौजूदा समय में देश में सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंक हैं।
उक्त सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस तरह की योजना का खाका नए निजीकरण प्रस्ताव के तौर पर तैयार किया जाएगा और मंजूूरी के लिए इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। इस बारे में पुष्टि के लिए वित्त मंत्रालय से संपर्क किया गया लेकिन उसने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
आर्थिक वृद्घि में नरमी और कोरोनावायरस महामारी के कारण वित्तीय दबाव का सामना कर रही सरकार पैसे जुटाने के लिए गैर-मुख्य कंपनियों और क्षेत्रों की परिसंपत्तियों की बिक्री कर रही है और साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में निजीकरण की योजना पर काम कर रही है। सरकार की कई समितियों और भारतीय रिजर्व बैंक ने भी सिफारिश की है कि देश में पांच से ज्यादा सरकारी बैंक नहीं होने चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सरकार पहले ही कह चुकी है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का अब आगे और विलय नहीं किया जाएगा। ऐसे में इन बैंकों की हिस्सेदारी बेचने का ही विकल्प बचता है।'
पिछले साल सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के दस बैंकों को विलय कर चार बैंक बना दिए थे। इस प्रक्रिया में अपेक्षाकृत छोटे बैंकों को आपस में मिलाकर बड़ा बैंक बनाया गया था। एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'अब हम विलय से बचे सार्वजनिक बैंकों को निजी क्षेत्र के हाथों बेचने पर विचार कर रहे हैं।'
सूत्रों ने कहा कि प्रतिकूल बाजार की परिस्थितियों के कारण बैंकों का विनिवेश चालू वित्त वर्ष में संभवत: नहीं होगा। कोरोना संकट के कारण अर्थव्यवस्था में नरमी की वजह से देश के सार्वजनिक बैंकों का फंसा कर्ज दोगुना हो सकता है। सितंबर 2019 के अंत तक इन बैंकों का पहले से ही करीब 9.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज फंसा हुआ था, जो उस दौरान उनकी कुल परिसंपत्तियों का करीब 9.1 फीसदी है। इसके परिणामस्वरूप सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में करीब 20 अरब डॉलर की पूंजी डालने की जरूरत पड़ सकती है।
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