प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दबाव वाली कंपनियों में निवेश वाले म्युचुअल फंडों की मदद के लिए नियामकीय और तरलता उपाय सुझाए हैं। इनमें क्लोज एंडेड डेट योजनाओं के लिए 'कोविड-19 समर्थन कोष'गठित करना शामिल हैं। इस तरह की योजना में निवेशकों को योजना अवधि के बीच में निवेश करने या निवेश निकालने की अनुमति नहीं होती है। प्रस्तावित कदम से ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियों (एएमसी) को संजीवनी मिल सकती है, जो लंबे समय से खासकर आईएलऐंडएफएस मामले के बाद से नकदी संकट से जूझ रही हैं। इसकी वजह से फ्रैंकलिन टेंपलटन को अपनी छह डेट योजनाएं बंद करनी पड़ीं जिनकी परिसंपत्तियां 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा थीं। इस महीने की शुरुआत में आर्थिक मामलों के विभाग और भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को भेजे गए सात पृष्ठ के पत्र में पीएमओ ने दबाव वाली संपत्तियों के प्रभावी समाधान के लिए समुचित कदम उठाने को कहा था। इसके अलावा पुनर्गठन/परिसामपन में जाने वाली कंपनियों के लिए मूल्य निर्धारण प्रणाली में ढील, साइड पॉकेटिंग नियमों (दबाव वाली संपत्तियों को अलग करना) में संशोधन को तत्काल की जगह 15 दिन करने तथा डिफॉल्ट के मामले में डिबेंचरधारकों के अधिकार आदि शामिल हैं। पीएमओ ने पत्र में लिखा है, 'कोविड-19 महामारी गहराने और वैश्विक मंदी की वजह से भारतीय उद्योग जगत के क्रेडिट गुणवत्ता परिदृश्य पर अप्रत्याशित अनिश्चितता है, जिससे अर्थव्यवस्था में नरमी भी देखी जा रही है। इसी ने अर्थशास्त्रियों को वित्त वर्ष 2021 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्घि दर में कमी करने कीे मजबूर किया है। अर्थव्यवस्था में नरमी की वजह से वित्तीय दबाव भी बढ़ेगा, लेकिन मांग में सुधार से क्रेडिट की गुणवत्ता में सुधार आ सकती है।' सेबी को संबोधित करते हुए पीएमओ ने कहा है कि क्लोज एंडेड योजनाओं को अलग या साइड पॉकेटिंग नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी योजनाओं में अंतर-ऋणदाता समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं या नहीं और ये समाधान प्रक्रिया में भाग लेते हैं या नहीं। पत्र में कहा गया है, 'यह स्पष्ट करना महत्त्वपूर्ण होगा कि क्लोज एंडेड योजनाएं समाधान प्रक्रिया में भाग ले सकती हैं। ऐसी योजनाओं के लिए सेबी के साथ मिलकर भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय कोविड-19 समर्थन कोष गठित कर सकते हैं, ताकि समाधान प्रक्रिया के दौरान असमानता आने पर इससे भरपाई की जा सके।' सेबी ने अगस्त 2019 में एएमसी को कुछ शर्तों के साथ अंतर-ऋणदाता समझौता करने की अनुमति दी थी। संकट में फंसी दीवान हाउसिंग फाइनैंस की डेट योजनाओं में निवेश को देखते हुए ऐसा किया गया था। इसमें शर्त थी कि अगर समाधान योजना 180 दिन के अंदर लागू नहीं की जाती है तो एएमसी अंतर ऋणदाता करार से बाहर निकल सकती है और समझौते के नियमों के उल्लंघन के मामले में फंड हाउस कानूनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है। पीएमओ के अनुसार प्रतिभागिता प्रक्रिया में कोई शर्त की होनी चाहिए। पत्र में लिखा गया है, 'समाधान प्रक्रिया सामूहिक कार्रवाई होती है, ऐसे में फंड हाउस को इस प्रक्रिया में बिना शर्त शामिल होना चाहिए।' म्युचुअल फंडों के संगठन एम्फी के सूत्रों ने कहा कि कोई भी म्युचुअल फंड इस तरह के समझौते में पक्ष नहीं है और वे डीएचएफएल जैसे मामलों के निपटान के लिए बैंकों के साथ काम कर रहे हैं। डिबेंचर के न्यासी अंतर ऋणदाता समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं या नहीं, और साथ ही इसके लिए डिबेंचर धारकों से किस तरह से मंजूरी ली जाए, उसे लेकर संशय के मसले को भी पीएमओ ने उठाया है। पीएमओ की राय है कि समझौते में डिबेंचर न्यासियों की भागीदारी की स्थिति में उन्हें भी शामिल करें और समाधान योजना के खिलाफ उउनके मत देने के मामले में परिसमापन मूल्य के जरिये अल्पांश हिस्सेदारी की सुरक्षा होनी चाहिए।इसके अलावा पीएमओ ने सेबी को साइड पॉकेटिंग नियमों में संशोधन का सुझाव दिया है। इसमें कहा गया है कि फंसी संपत्तियों को अलग करने के लिए समय को तत्काल से बढ़ाकर 15 दिन किया जाना चाहिए। इससे म्युचुअल फंडों को प्रतिस्पर्धी निवेशकों/ऋणदाताओं के अनुरूप आवश्यक कार्रवाई का निर्णय करने में मदद मिलेगी।
