पायलट की थमी उड़ान की होगी वापसी? | आदिति फडणीस / July 15, 2020 | | | | |
राजस्थान की अजमेर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद कांग्रेस के विजेता उम्मीदवार रघु शर्मा एक टीवी न्यूज चैनल पर दिखाई दिए जहां राजस्थान कांग्रेस के प्रमुख सचिन पायलट का साक्षात्कार लिया जा रहा था। शर्मा उनके कदमों में गिर गए। इसके बाद जब साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति ने शर्मा की ओर रुख किया तो कांग्रेस प्रत्याशी फि र से पायलट के पैर छूने के लिए झुक गए। टीवी ने इसे लाइव रिकॉर्ड किया। यह बात फ रवरी 2018 की है।
उसी साल दिसंबर में शर्मा ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए लोकसभा से इस्तीफ ा दे दिया था। वह अजमेर लोकसभा क्षेत्र में आने वाले केकरी से चुनाव जीते और राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बने। उन्हें हमेशा गहलोत का समर्थक माना जाता था हालांकि वह पायलट के खेमे से भी अलग हुए। वह गहलोत के खेमे में जनवरी 2020 में लौटे जब कोटा के एक सरकारी अस्पताल में कई बच्चों की भयावह मौत हो गई और उन्होंने पायलट (जो पीडब्ल्यूडी मंत्री थे) पर सीधा हमला करना शुरू कर दिया। ज्यादातर बच्चों की हाइपोथर्मिया (लंबे समय तक ठंड में रहने के कारण) की वजह से मौत हो गई क्योंकि अस्पताल के बुनियादी ढांचे की हालत बेहद खराब थी। शर्मा का दावा था कि पीडब्ल्यूडी को बार-बार अस्पताल की खराब स्थिति के बारे में याद दिलाया गया था लेकिन इसके बावजूद इस पर ध्यान नहीं दिया गया । इस घटना और बाकी की कई अन्य घटनाओं को याद करने से अंदाजा मिलता है कि एक औसत विधायक की वफ ादारी में कितनी तेजी से बदलाव आता है और संभवत: अशोक गहलोत के खिलाफ अपने बगावती तेवर दिखाने से पहले पायलट यही आकलन करने में असमर्थ रहे।
जिन लोगों ने पायलट का काम देखा है उनका कहना है कि वह लगातार जुटे रहने वालों में से हैं और थकते नहीं हैं। अजमेर उपचुनाव इसकी एक मिसाल है। वह 2014 में संयोग से अजमेर से ही अपना लोकसभा चुनाव हार गए थे और उन्हें 2018 में जीत को लेकर ज्यादा आत्मविश्वास नहीं था हालांकि शर्मा को इस क्षेत्र से चुनाव के लिए उतारा गया। वह बाद केचुनावों के लिए भी कड़ी मेहनत करते रहे चाहे वह चुनाव कितना भी छोटा क्यों न हो। वह आगे बढऩे की कोशिश में लगे रहे, लोगों से मिलने, संपर्क बनाने के साथ लोगों की बात हर समय सुनते रहे। कांग्रेस ने पंचायत और स्थानीय निकाय के हर छोटे-बड़े चुनाव जीते। इन जीतों का श्रेय पायलट को भी जाना चाहिए।
हालांकि, उनके आलोचकों का कहना है कि चुनाव जीतने का उनका रिकॉर्ड काफी शानदार नहीं रहा है जिसको लेकर उनकी उम्मीदें हैं कि लोग उनके प्रदर्शन पर गौर फ रमाएं। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 12 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। इन उम्मीदवारों को कुल डाले गए वोटों के मुकाबले 4 फीसदी से भी कम वोट मिले। कांग्रेस के 17 उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। 2014 से ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख के रूप में सचिन पायलट बागियों को राजी नहीं कर पाए और 11 बागियों ने कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवारों को हरा दिया। आलोचकों का कहना है कि विधानसभा में कांग्रेस की जीत की चमक इस बात से धुंधली पड़ गई कि कम से कम 40 सीटों पर प्रदर्शन काफी 'खराब' था।
राजस्थान में मौजूदा सियासी उथल-पुथल के बीच अब सचिन पायलट के सामने क्या विकल्प हैं? निर्विवाद रूप से पार्टी में उनको पसंद करने वाले लोग हैं। लेकिन सवाल यह है कि उपमुख्यमंत्री बनने के बाद एक साधारण विधायक होने पर उनमें कितना धैर्य बाकी रहेगा। पार्टी पर नियंत्रण जो सत्ता का एक महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता था वह खत्म हो गया है। अब ऐसे में या तो उन्हें कांग्रेस के साथ सुलह कर फि र से अपनी खोई जगह वापस पाने का इंतजार करना होगा या अपने साथियों के साथ किसी दूसरे मौके को तलाशना होगा। निश्चित तौर पर दूसरी स्थिति में वक्त लग सकता है।
लेकिन दूसरी तरफ गहलोत के पास भी सीमित विकल्प हैं। उनके एक और चुनाव लडऩे की संभावना नहीं है। उनके बेटे वैभव की राजनीतिक पदोन्नति की संभावना भी उनके नहीं होने पर खत्म हो जाती है। जब तक राजस्थान में कांग्रेस में नेतृत्वकर्ता की दूसरी मजबूत पंक्ति नहीं होगी तब तक पायलट या उनके जैसे अन्य लोगों की महत्त्वाकांक्षाएं उड़ान भरती रहेंगी।
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