इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को सरकार से दम | सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली July 14, 2020 | | | | |
यह एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य है। सरकार चाहती है कि इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर का देसी उत्पादन का मूल्य अगले पांच वर्षों में करीब छह गुना बढ़कर 2025 में 400 अरब डॉलर हो जाए जो वित्त वर्ष 2019 में 70 अरब डॉलर रहा था। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मोबाइल उपकरण विनिर्माण क्षेत्र से सबसे अधिक उम्मीद जताई गई है। उम्मीद की गई है कि यह क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक्स के करीब 50 फीसदी उत्पादन मूल्य का योगदान करेगा।
सरकार की योजना यह है कि भारत को मोबाइल उपकरण विनिर्माण क्षेत्र में चीन और वियतनाम के बाद विश्व का सबसे बड़ा निर्यात केंद्र बनाया जाए। इलेक्ट्रॉनिक्स के कुल वैश्विक निर्यात बाजार में करीब 80 फीसदी बाजार चीन और वियतनाम का वर्चस्व है। भारत को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक है कि मौजूदा उत्पादन मूल्य में सात गुना वृद्धि की जाए और करीब 58 फीसदी उत्पादन मूल्य का निर्यात किया जाए। भारत फिलहाल महज 12 फीसदी उत्पादन मूल्य का निर्यात करता है। वैश्विक मोबाइल उत्पादन मूल्य में भारतीय विनिर्माताओं का योगदान फिलहाल महज 5 फीसदी है। वर्ष 2025 तक वैश्विक मोबाइल उत्पादन मूल्य 647 अरब डॉलर होने का अनुमान है और इसमें एक तिहाई योगदान भारत का होगा।
हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि इस लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं होगा क्योंकि केंद्र सरकार 2012 की राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति के तहत निर्धारित 2020 तक 400 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन को हासिल करने में विफल रही है। उनका कहना है कि भारत 2020 तक इस क्षेत्र से निर्यात के जरिये 80 अरब डॉलर की आय अर्जित करेगा। लेकिन वित्त वर्ष 2019 में भारत उसका महज 10 फीसदी ही हासिल कर पाया।
हालांकि कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सरकार की नीति में उल्लेखनीय बदलाव आया है। ऐपल और सैमसंग जैसी वैश्विक कंपनियां और लावा एवं माइक्रोमैक्स जैसी घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों का कहना है कि सरकार का दृष्टिकोण 'आयात प्रतिस्थापन नीति' से बदलकर निर्यात केंद्रित हो गया है।
नई नीति में मोबाइल उपकरण एवं पुर्जा विनिर्माण के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को शामिल किया गया है। इसके तहत न्यूनतम निर्धारित निवेश और उत्पादन मूल्य लक्ष्य हो हासिल करने वाली कंपनियों को अगले पांच वर्षों के लिए 4 से 6 फीसदी के दायरे में प्रोत्साहन देने का प्रावधान है। इस योजना का उद्देश्य उत्पादन लागत के मोर्चे पर चीन और वियतनाम (9 फीसदी से 21 फीसदी के दायरे में) के मुकाबले भारत की क्षमता को बेहतर करना है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जे बनाने वाली कंपनियों के लिए एक योजना की घोषणा की है ताकि वे अपनी वैश्विक आपूर्ति शृंखला को भारत लाया जा सके। इसके अलावा बड़े विनिर्माण क्लस्टर स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहन की व्यवस्था की गई है। इस मद में अगले आठ वर्षों के दौरान खर्च के लिए वास्तव में 6.3 अरब डॉलर की व्यवस्था की गई है और इसमें से अधिकांश रकम (5.3 अरब डॉलर) पीएलआई योजना के लिए रखी गई है। सरकार ने इस योजना के जरिये 2025 तक 106 अरब डॉलर मूल्य के उत्पादन और 77 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात की उम्मीद जताई है।
इससे पहले सरकार ने मोबाइल उपकरण के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) शुरू किया था। लेकिन यह पुर्जों पर आयात शुल्क बढ़ाने पर आधारित था ताकि पुर्जों का उत्पादन भारत में किया जा सके।
इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) के अध्यक्ष पंकज महेंद्रू ने कहा कि पीएमपी योजना से यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत में बिकने वाले मोबाइल 96 फीसदी तक भारत में विनिर्मित हैं। उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के लिए निर्यात बढ़ाने की आवश्यकता है।
वित्त वर्ष 2019 में इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए भारत के कुल 53 अरब डॉलर के आयात बिल में 12 से 13 अरब डॉलर मोबाइल उपकरणों के पुर्जों के आयात के लिए था। आईसीईए की प्रस्तुति से पता चलता है कि 2025 तक 80 अरब डॉलर के घरेलू उत्पादन के लिए आयात बिल बढ़कर 37 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
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