विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रमुख विनिर्माण श्रेणियों में करीब पांचवें हिस्से का आयात शुल्क मुक्त है, भले ही भारत में औसत शुल्क अन्य प्रमुख देशों की तुलना में बहुत ज्यादा रहा है। डब्ल्यूटीओ के वल्र्ड टैरिफ प्रोफाइल 2020 के मुताबिक बिजली की मशीनरी के आयात में 30 प्रतिशत, गैर बिजली मशीनरी में 19 प्रतिशत और विभिन्न तरह के विनिर्मित उत्पादों में 18 प्रतिशत का आयात 2018 में शुल्क मुक्त रहा है। सरकार ने अब शुल्क में बढ़ोतरी करना शुरू किया है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि भारत के मौजूदा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की गहराई से जांच के कारण यह आंकड़े और बढ़ेंगे। इस समय शुल्क मुक्त आयात का लाभ उन देशों को मिलता है, जिन्होंने भारत के साथ विभिन्न कारोबारी समझौते किए हैं। आसियान पर ध्यान एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सभी श्रेणियों में आयात का विकल्प तलाशने के मामले में चीन अभी भारतर की प्राथमिकता में है। डब्ल्यूटीओ के आंकड़ों से पता चलता है कि उन देशों से आयात जारी है, जहां से वस्तुओं के आयात पर शुल्क नहीं लगता। ये सामान्यतया दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन (आसियान) से जुड़े देश हैं।' पिछले दो साल से भारत आक्रामक तरीके से चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम चला रहा है, जिसमें उपभोक्ता वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन, टेलीविजन और कंप्यूटर हार्डवेयर के बड़े पैमाने पर घरेलू विनिर्माण पर जोर है। यह आयातित वस्तुओं पल ज्यादा शुल्क लगाकर किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ मशीनरी उत्पाद और उसके कल पुर्जों को प्रमुख क्षेत्र माना गया है, जिनके घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। पिछले साल नवंबर में सरकार ने संसद को सूचित किया था कि आसियान के साथ एफटीए की समीक्षा शुरू की गई है, जिसमें सीमा शुल्क प्रक्रिया, वस्तुओं के कारोबार को आगे और उदार बनाना और डेटा का लेन-देन शामिल है। कारोबार विशेषज्ञ विश्वजीत धर ने कहा, 'समझौते के बावजूद भात आसियान के बाजारों में नहीं पहुंच सका है। आसियान अर्थवव्यवस्थाएं गैर शुल्क बाधाएं लगाने के लिए जानी जाती हैं। घरेलू फर्मों को सस्ते तीनी उत्पादों से भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।' डब्ल्यूटीओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का बाइंडिंग कवरेज 74 प्रतिशत है, जो चीन के 100 प्रतिशत से बहुत पीछे है, जिससे धीरे धीरे शुल्क कम करने के संकेत मिलते हैं। ज्यादा शुल्क अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में शुल्क कम है और ये देश आयात पर सभी शुल्क खत्म करने पर काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ ब्राजील और भारत जैसे विकासशील देश आयात शुल्क कम करने को लेकर समझौता करते हैं, जिससे वैश्विक कारोबार में ज्यादा हिस्सेदारी कर सकें, साथ ही आयात पर सीमा लगाकर अपने घरेलू उद्योगों को संरक्षण भी देते हैं। क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी में बातचीत के दौरान भारत में ज्यादा आयात शुल्क प्रमुख मसला बना रहा और अब अमेरिका के साथ यह मसला है। अमेरिका चाहता है कि भारत आयात शुल्क में कटौती करे और अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार खोले। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत को बार बार 'टैरिफ किंग' कहा है। तेजी से आयात बढऩे के कारण 2018 में वस्तुओं के आयात पर शुल्क 6 गुना बढ़ाया गया। इसके बाद 2019 में अमेरिका से आयातित 29 महंगे कृषि उत्पादों पर शुल्क में बढ़ोतरी की गई। सरकार ने कारोबार पर एक सलाहकारी समूह का गठन किया था, जिसने पिछले साल सुझाव दिया था कि शुल्क की दरें धीरे धीरे कम करने की जरूरत है, जिससे अमेरिका व चीन के बीच चल रहे कारोबारी जंग का लाभ उठाया जा सके। शुल्क में बढ़ोतरी इस रिपोर्ट के विपरीत है। समूह ने कहा था, 'कथित बाधा शुल्कों (जो 2 से 3 प्रतिशत होते हैं) से कोई मकसद हल नहीं होता। इन्हें तीन साल में शून्य किया जाना चाहिए।' बहरहाल अब सूत्रों का कहना है कि सरकार इस समूह के सुझावों के मुताबिक चलने नहीं जा रही है, जिसमें 5 साल की अवधि में सीमा शुल्क व्यापक रूप से कम करने का सुझाव दिया गया है। अब महामारी के बाद स्थिति बदली है और वाणिज्य विभाग आयात शुल्क बढ़ाने से बच रहा है क्योंकि यह डर है कि ज्यादा दाम से विनिर्माताओं और निर्यातकों पर बुरा असर पड़ेगा, जो विदेशी इनपुट पर निर्भर हैं और इस समय नकदी के संकट से गुजर रहे हैं।
