पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) ने एचडीएफसी में अपनी हिस्सेदारी अप्रैल के उस शोर-शराबे के बाद घटाई है जब कहा गया था कि बाजार में गिरावट का फायदा उठाते हुए चीन के केंद्रीय बैंक ने भारत की सबसे बड़ी मॉर्गेज कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई। वित्तीय सेवा क्षेत्र की दिग्गज की तरफ से घोषित जून 2020 की तिमाही की शेयरधारिता से पता चलता है कि पीबीओसी अब एचडीएफसी का हिस्सेदार नहीं रह गया है। मार्च 2020 की तिमाही में पीबीओसी के पास एचडीएफसी के 1.75 करोड़ शेयर (1.01 फीसदी हिस्सा) थे और मौजूदा बाजार दर पर उसकी कीमत 3,300 करोड़ रुपये बैठती है। यह सुनिश्चित करना मुश्किल है कि क्या चीन के बैंक ने अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच दी या फिर उसे घटाकर एक फीसदी से नीचे किया है। स्टॉक एक्सचेंज के शेयरधारिता डिस्क्लोजर में उन्हीं सार्वजनिक शेयरधारकों का नाम आता है जिनके पास एक फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी होती है। चाहे जितनी भी हिस्सेदारी बेची गई हो, पीबीओसी ने कुछ ही महीने में अपने निवेश पर मुनाफा अर्जित किया होगा। मार्च तिमाही के दौरान एचडीएफसी का शेयर 40 फीसदी से ज्यादा टूट गया था। मार्च के निचले स्तर 1,473 रुपये से यह शेयर अप्रैल में 30 फीसदी चढ़ा। जून तिमाही में उतारचढ़ाव के बाद एचडीएफसी का शेयर अभी अपने 2020 के निचले स्तर से 30 फीसदी ऊपर ट्रेड कर रहा है। पीबीओसी की खरीद व बिक्री कीमत का पता नहीं चल सका। बाजार के प्रतिभागियों ने कहा कि चीन के केंद्रीय बैंक ने इस चीज के सार्वजनिक होने को टालने के लिए अपनी हिस्सेदारी घटाई होगी। निवेश की मात्रा हालांकि कम थी, लेकिन इससे बहस छिड़ गई कि क्या चीन के निवेश फर्म कोविड-19 के कारण देसी बाजार में हो रही गिरावट का फायदा उठा रहे हैं और भारतीय कंपनियों के शेयर खरीद रहे हैं। बाजार नियामक सेबी ने भी पड़ोसी देशों के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की जांच बढ़ा दी थी। अभी एचडीएफसी में सबसे बड़ी शेयरधारक एलआईसी है। सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ने जून तिमाही में अपनी हिस्सेदारी 72 आधार अंक बढ़ाकर 5.39 फीसदी पर पहुंचा दी। दूसरी सबसे बड़ी शेयरधारक इन्वेस्को ओपनहाइमर ने भी एचडीएफसी में अपनी हिस्सेदारी 21 आधार अंक बढ़ाकर 3.54 फीसदी कर दी। इस बीच, सिंगापुर सरकार ने इसमें अपनी हिस्सेदारी 9 आधार अंक घटाई है और अब यह 3.14 फीसदी रह गई है। वेंगार्ड और सरकारी पेंशन फंड ने भी अपनी हिस्सेदारी घटाई है।
