न्यूनतम वेतन गारंटी कानून में अभी देरी | |
सोमेश झा / नई दिल्ली 07 09, 2020 | | | | |
वेतन अधिनियम पर संहिता के कानून बनने के करीब एक साल बाद केंद्र सरकार अभी मसौदा नियमों पर लोगों से राय मांग रही है। इससे नए कानून को लागू करने की प्रभावी तिथि में देरी हो रही है।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने वेज (सेंट्रल) रूल्स, 2020 की मसौदा संहिता पर मंगलवार को दूसरी बार प्रतिक्रिया आमंत्रित की है। आठ महीने पहले नवंबर 2019 में सार्वजनिक किए गए मसौदे में बदलाव किया गया था। बहरहाल सरकार ने विवादास्पद प्रावधान हटा दिया है, जिसमें श्रमिकों के रोजाना के काम के घंटे बढ़ाने को कहा गया था, जिससे कि उन्हें न्यूनतम वेतन मिल सके। इसमें काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 9 घंटे करने का प्रस्ताव किया गया था। श्रम मंत्रालय ने नवंबर 2019 में मसौदा नियम सार्वजनिक किया था और लोगों को प्रतिक्रिया देने के लिए 45 दिन का वक्त दिया गया था।
श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं, ने कहा, 'मसौदे में बदलाव के बाद, जो लोगों की प्रतिक्रिया के आधार पर किया गया था, उसे कानून मंत्रालय के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। मंत्रालय ने इस बात से नाराजगी जताई कि मसौदे को वेबसाइट पर डाल दिया और आधिकारिक गजट के माध्यम से विचार नहीं मांगे गए।' अधिकारी ने कहा, 'इसलिए हम फिर से प्रतिक्रिया आमंत्रित कर रहे हैं।'
परिणामस्वरूप वेतन अधिनियम पर संहिता को लागू होने में कम से कम दो महीने की और देरी होगी, जो अगस्त 2019 में कानून बन गया था और इसमें भारत के सभी श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का पात्र बनाया गया है।
इस समय करीब 60 प्रतिशत श्रमिक न्यूनतम वेतन प्राप्त करने के पात्र हैं।
दूसरा मसौदा सांकेतिक है और नवंबर में जारी पहले मसौदे में मामूली बदलाव किए गए हैं। मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, 'मंत्रालय को ज्यादातर प्रतिक्रियाएं, करीब 600 से ज्यादा, काम के घंटे को लेकर था, जिसे अब ठीक कर लिया गया है।'
पहले के मसौदे के मुताबिक अगर कोई श्रमिक 9 घंटे काम करता है, तभी वह न्यूनतम वेतन के पात्र होगा, जबकि अभी मौजूदा कानून में 8 घंटे काम करने का प्रावधान है। सरकार ने अपने नए मसौदे में काम के 8 घंटे पर स्थिर रहने का फैसला किया है।
अगर ठेकेदार (जो मजदूर मुहैया कराते हैं) कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस का भुगतान करने में असफल रहते हैं, जो कानून में उल्लिखित है, ऐसी स्थिति में मूल नियोक्ता के दायित्व की शर्तों में ढील दी गई है। पहले के मसौदे में मूल नियोक्ता को ऐसे मामलों में जवाबदेह बनाया गया था, जिनमें ठेकेदार श्रमिकों को बोनस के भुगतान में असफल रहता है। अब कर्मचारियों या पंजीकृत मजदूर संगठन से मूल नियोक्ता इस तरह की विफलता की लिखित सूचना प्राप्त करेगा, तभी वह इस तरह की राशि के लिए जवाबदेह होगा।
पहली बाद श्रम और रोजगार मंत्रालय ने नियम तैयार किए हैं, कि किस तरीके से न्यूनतम वेतन तय किया जाएगा और इसमें श्रमिकों के परिवार के बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा जरूरतों पर आने वाली लागत को शामिल किया गया है।
क्या कहता है न्यूनतम वेतन गारंटी का नया मसौदा
► सरकार न्यूनतम वेतन के लिए राष्ट्रीय मानक तय करेगी, जिसका राज्यों को अनिवार्य रूप से पालन करना होगा और हर 5 साल में इसमें बदलाव होगा
► पहली बार केंद्र सरकार ने 1992 की रूलिंग में उच्चतम न्यायालय की सलाह और 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन1957 की सिफारिशों का पालन करने का प्रस्ताव किया है
► मजदूरी की न्यूनतम दर तय करने की गणना का तरीका नहीं, ऐसे में प्राय: याचिकाएं पड़ जाती हैं
► न्यूनतम वेतन का 25 प्रतिशत मजदूर के परिवार के बच्चों की शिक्षा और दवा की जरूरतों के लिए होगा
► सरकार श्रमिकों के परिवार (3 लोगों के) के व्यय को ध्यान में रखेगी, जो खाने, कपड़े, मकान के किराये, ईंधन और बिजली पर होता है
► न्यूनतम वेतन विभिन्न कौशल समूहों- गैर कुशल, अर्धकुशल, कुशल और उच्च कुशल और मेट्रो, नॉन मेट्रो और ग्रामीण क्षेत्रों जैसी भौगोलिक स्थिति के मुताबिक
► कौशल के मुताबिक सरकार ने पेशों को विभाजित किया है, जिनमें 123 अकुशल, 127 अर्धकुशल और 320 कुशल व 111 उच्च कुशल श्रेणी में शामिल किए गए हैं
|