भारत समेत तमाम वैश्विक शेयर बाजारों में जहां पिछले कुछ महीनों के दौरान काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला, वहीं इस अवधि में नए खुदरा निवेशकों की तादाद में भारी इजाफा भी नजर आया। जैसा कि इस समाचार पत्र ने लिखा भी था दोनों बड़े भारतीय शेयर बाजारों के नकद बाजार क्षेत्र में कुल कारोबार जून 2020 में जून 2019 की तुलना में करीब दोगुना रहा। मुद्रा डेरिवेटिव समेत अन्य डेरिवेटिव में भी यही रुझान नजर आया। खुदरा कारोबार का आकार 15 वर्ष के उच्चतम स्तर पर है। कई लोगों का कहना है कि ऐसा लॉकडाउन की वजह से हुआ। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जीरोधा ने इस समाचार पत्र को बताया कि मार्च से जून के बीच उसके यहां खुलने वाले नए खातों की तादाद में 300 फीसदी का इजाफा हुआ। महामारी के दौर में भी शेयर बाजारों के अच्छे प्रदर्शन की यह भी एक वजह हो सकती है। इसी के चलते व्यापक अर्थव्यवस्था और कंपनियों से उभरते नकारात्मक आंकड़ों का प्रतिरोध भी संभव हुआ। निवेश में हो रही इस वृद्धि का स्वागत करने की पर्याप्त वजह हैं। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि इन नए निवेशकों में से अनेक देश के दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों से हैं। इससे पता चलता है कि शेयरधारिता का लोकतंत्रीकरण हो रहा है। इसके बावजूद चिंतित होने और सतत निगाह रखने की भी पर्याप्त वजह है। खासकर खुदरा निवेशकों की बात करें तो यह सच है कि इक्विटी को दीर्घावधि की परिसंपत्ति के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि शीघ्र प्रतिफल देने वाली। कुछ ऐसे संकेतक हैं जो बताते हैं कि नए ऑनलाइन कारोबारी शीघ्र प्रतिफल चाहते हैं। उदाहरण के लिए ऋणात्मक शेयर मूल्य वाली कुछ कंपनियों में शेयरों की चकित करने वाली गतिविधि से संकेत मिलता है कि लोग ऐसे दांव लगा रहे हैं। इसका निवेशकों ही नहीं व्यापक बाजार पर पडऩे वाला असर भी विचारणीय है। ऐसा बाजार जहां शेयर कारोबार का बड़ा हिस्सा सीधे तौर पर अंशकालिक व्यक्तियों द्वारा किया जाता हो वह अधिक अस्थिर और अप्रत्याशित प्रकृति का माना जाएगा। इसका एक उदाहरण चीन है जहां 80 फीसदी शेयर कारोबार व्यक्तिगत निवेशकों द्वारा किया जाता है। उनमें से कई के पास बहुत अधिक नकदी है। चीन के शेयर बाजार अन्य समकक्ष बाजारों की तुलना में अधिक उतार-चढ़ाव वाले हैं। जैसा कि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने हाल ही में कहा भी था, हॉन्गकॉन्ग के अधिक परिपक्व बाजार में सूचीबद्ध उन्हीं कंपनियों की तुलना में चीन में उनके शेयरों की कीमत अधिक रही है और यह खुदरा निवेशकों का आशावाद दिखाता है। ऐसे निवेशकों को आसानी से बरगलाया जा सकता है। चीन में ही कुछ वर्ष पहले बिग बुल मार्केट में ऐसा देखने को मिल चुका है और हाल ही में एक बार पुन: ऐसा देखने को मिला था जब वहां के सरकार नियंत्रित अखबार के पहले पन्ने पर छपे आलेख के बाद बाजार में तेजी आई। इसके परिणाम घातक भी हो सकते हैं। मंदी की स्थिति में बड़ी तादाद में लोग शेयरों को लेकर कटु अनुभव पाल सकते हैं। यदि किसी निवेशक ने कुछ ज्यादा ही जोखिम उठाया हो तो उसकी स्थिति और भी बुरी हो सकती है। अमेरिका में ऑनलाइन कारोबारियों को खुद से नुकसान होने की आशंका इतनी बढ़ गई थी कि एक 20 वर्षीय युवा की आत्महत्या के बाद ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म रॉबिनहुड को 2.50 लाख डॉलर की राशि आत्महत्या से बचाव की चैरिटी को देनी पड़ी और अपने यूजर इंटरफेस में तब्दीली लानी पड़ी। ऐसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जो विशुद्ध निवेश गतिविधि के बजाय जुआ खेलने वाले ऐप की तरह दिखते हैं उनसे हालात और बिगड़ेंगे। भारतीय नियामकों को तकनीकी रूप से उन्नत होना पड़ेगा। उन्हें ऐप के ढांचे की जांच परख करनी होगी।। पेशेवर बाजार प्रतिभागियों को अस्थिरता के लिए तैयार रहना चाहिए। वहीं खुदरा निवेशकों को भी जोखिम के बारे में जानकारी बढ़ानी चाहिए।
