शेयर बाजारों में तेजी का दौर कब तक? | |
देवाशिष बसु / 07 08, 2020 | | | | |
दुनिया भर में शेयर बाजार मार्च में दो सप्ताह की भारी गिरावट के बाद लगातार चढ़ रहे हैं। निफ्टी और सेंसेक्स अपने 24 मार्च के निचले स्तर से करीब 40 फीसदी चढ़ चुके हैं। यह स्थिति हमें चारों तरफ कमजोर नजर आ रहीं आर्थिक संभावनाओं के बिल्कुल विपरीत है। क्या हम एक नए छिपे तेजडि़ए बाजार में हैं? यह वास्तव में सही है कि हमारी नजर मौजूदा स्थिति पर टिकी है। लेकिन बाजार आगे देखता है, विशेष रूप से उस समय जब स्थितियां विकट हों मगर बदलने वाली हों। शायद ऐसा लगता है कि निवेशक पश्चिमी यूरोप, पूर्वी एशिया और चीन में वायरस संक्रमण का वक्र सपाट होने से उत्साहित हैं। हालांकि इसका कहर भारत और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में जारी है। अमेरिका में संक्रमण थोड़ा बढ़ रहा है। भारत में तेजी की तार्किक वजह यह है कि अमेरिकी बाजारों में बड़ी, मजबूत और ज्यादा निर्णायक तेजी आई है। इससे निवेशकों को भारतीय शेयर खरीदने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है।
ऐसे में अमेरिकी बाजार में किस वजह से तेजी आ रही है? पहली, टीका विकसित करने की दौड़ चल रही है और इसका विजेता जल्द ही हमारे सामने होगा। दूसरी, अगर अर्थव्यवस्था या कोविड की स्थिति और बिगड़ी तो अमेरिका अपनी अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में नकदी झोंकेगा। ऐसा होना शेयरों के लिए अनुकूल है। अफसोस है कि भारत में इन दोनों तर्कों में से कोई भी लागू नहीं होता है। टीके की कीमत काफी अधिक रहेगी और इसकी लंबे समय तक आपूर्ति सीमित रहेगी। वहीं भारत के पास अर्थव्यवस्था में डालने के लिए नकदी नहीं है।
कौनसा सामान्य?
सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि अगर अमेरिका में जन जीवन सामान्य हो जाता है तो क्या यह उनके लिए स्वस्थ सामान्य होगा। कोविड के दुनिया को प्रभावित करने से पहले अमेरिका में बेरोजगारी की दर 50 साल में सबसे कम थी, कॉरपोरेट कर भी विश्व में सबसे कम थे और कंपनियों के पास भरपूर पैसा था। भारत में कोविड से पहले आर्थिक स्थिति क्या थी? बुनियादी ढांचा, पूंजीगत माल, रियल एस्टेट, धातु, वित्त और वाहन समेत प्रत्येक क्षेत्र भयंकर मंदी की गिरफ्त में था। किसी भी शेयर को चढऩे के लिए सहारा चाहिए। बहुत से शेयरों को यह सहारा मिलेगा। ये अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिनमें निर्माण, वाहन, वित्त, बुनियादी सामग्री, उपभोक्ता उत्पाद शामिल हैं। जब विश्लेषक और फंड प्रबंधक लंबी अवधि में तेजी के अनुमान की बात करते हैं तो वे यह मानकर चलते हैं कि आर्थिक वृद्धि मजबूत रहेगी। उन्होंने किसी अनुभवहीन की तरह मंत्रियों और सचिवों की घोषणाओं एवं वादों पर भरोसा करके पिछले कुछ वर्षों से हर साल अनुमान लगाया है। दुर्भाग्य से वे हर साल गलत साबित हुए हैं। विश्लेषक अनुमानित आर्थिक वृद्धि के आधार पर सेंसेक्स और निफ्टी की कंपनियों की वृद्धि दो अंकों में रहने का अनुमान जताया रहे हैं, केवल इसलिए क्योंकि वास्तविक आंकड़े लक्ष्य से दूर हैं। यह बात याद करने लायक है कि बाजार का सूचकांक मुश्किल से ही कभी 10 साल में दोगुना हुआ है। इसका मतलब है कि इसकी चक्रवृद्धि औसत वृद्धि दर महज 6.84 फीसदी रही है। अगर जनवरी में सूचकांक के सर्वोच्च स्तर को भी देखें तो यह केवल 8.7 फीसदी चढ़ा।
ऐसे में सवाल पैदा होता है कि कैसे इतने चतुर लोग बार-बार गलत साबित हुए? इसकी सीधी सी वजह यह है कि आम तौर पर विश्लेषक और फंड प्रबंधक कंपनियों के प्रदर्शन पर वृहद आर्थिक कारकों के प्रभाव की अनदेखी करते हैं। वे केवल कंपनियों के तिमाही नतीजों पर ध्यान देते हैं। वे इस गहराई में नहीं जाते हैं कि उनके प्रदर्शन पर किस चीज का असर पड़ रहा है। यही वजह है कि एक जाने-माने इक्विटी फंड ने आर्थिक वृद्धि में तेजी की उम्मीद में वर्ष 2012 से निवेशकों का मोटा पैसा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), पूंजीगत माल और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों में दांव पर लगाया। मगर नतीजा बड़ा निराशाजनक रहा।
वर्ष 2009 से 2015 तक उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों और वित्तीय कंपनियों को मजबूत सहारा मिल रहा था। यह सहारा सरकारी खर्च और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के आसानी से ऋण देने के कारण मिल रहा था। इससे आर्थिक विस्तार और आंशिक रूप से एक बनावटी तेजी का माहौल बना। आज आर्थिक विस्तार गायब है। हम आर्थिक संकुचन के दौर में हैं, जिसे लेकर बहुत से लोग अनजान हैं। इसका मतलब है कि सूचकांक प्रतिफल कमजोर रहेगा।
विश्लेषकों और फंड प्रबंधकों में बहुत बड़ी मिथ्या धारणा बनी हुई है। लगभग हर कोई यह मानकर चल रहा है कि आर्थिक वृद्धि से स्वत: ही कंपनियों का प्रदर्शन सुधर जाएगा। वे यहां यह गणित पेश करते हैं कि अगर अर्थव्यवस्था 6 फीसदी की दर से वृद्धि करती है और महंगाई पांच फीसदी रहती है तो हमारी नॉमिनल वृद्धि 11 फीसदी रहेगी और इसका असर कंपनियों के राजस्व पर भी दिखेगा।
सूचकांक में शामिल बेहतर कंपनियां और भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं और उनका राजस्व 15 फीसदी तक बढ़ सकता है। यह पूरी तरह मूर्खता है। इसका सबूत यह है कि जिस अवधि में जीडीपी वृद्धि 7 फीसदी थी और महंगाई 8 फीसदी थी, उस समय भारत की सबसे बड़ी और अच्छी कंपनियों के राजस्व में वृद्धि एक अंक में रही थी। अगर ये कंपनियां अपने राजस्व में नॉमिनल वृद्धि जितनी बढ़ोतरी भी हासिल नहीं कर सकीं तो या तो जीडीपी आंकड़े गलत हैं या यह सिद्धांत ही गलत है, जिसमें जीडीपी वृद्धि से कंपनियों के राजस्व में भी वृद्धि होती है। मगर यह धारणा बहुत मजबूत है।
एक तरह से आज की स्थिति 2008 से बिल्कुल विपरीत है। आज बाजार बिना प्रयासों के ही चढ़ रहा है, जबकि हमारे सामने बहुत सी अड़चनें मौजूद हैं। वर्ष 2008 में वैश्विक वजहों से बाजार गिर रहा था, मगर आर्थिक विस्तार पटरी पर था। मुझे याद है कि नवंबर 2008 में मनीलाइफ के साथ बातचीत में आदित्यपुरी ने हमें बताया था कि उस दीवाली पर एचडीएफसी बैंक के कार्ड का सबसे अधिक इस्तेमाल हुआ। यह स्थिति आज नहीं है। जब हम सामान्य जीवन में लौटेंगे तो दबी मांग में एकबारगी बड़ी तेजी आ सकती है और बाजार और ऊपर जा सकते हैं। लेकिन कोविड से पहले का आर्थिक सामान्य स्तर बहुत कमजोर था। टिकाऊ तेजी के लिए उसमें बदलाव जरूरी होगा।
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