बिजली क्षेत्र का संकट | |
संपादकीय / 07 08, 2020 | | | | |
सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का वित्त वर्ष 2018-19 का अंकेक्षण लेखा दर्शाता है कि उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) अपने अधिकांश तय लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रही है। काफी संभव है कि सरकार को एक बार फिर इसमें व्यापक हस्तक्षेप करना पड़ जाए। जाहिर सी बात है कि इसका सरकार की वित्तीय स्थिति पर गहरा असर होगा। खासतौर पर तब जबकि अर्थव्यवस्था खुद महामारी से जूझ रही है और उसे सहायता की आवश्यकता है। आशा थी कि उदय से डिस्कॉम के परिचालन और वित्तीय दोनों क्षेत्रों में काफी सुधार आएगा। इसी क्रम में राज्यों ने डिस्कॉम के कर्ज का 75 फीसदी हिस्सा वहन किया जो करीब 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। इससे उनका कर्ज का बोझ बढ़ा। डिस्कॉम से आशा थी कि वे ऐसे उपाय करेंगी जिससे परिचालन किफायत में सुधार होगा। ऐसा नहीं हुआ। उदाहरण के लिए समेकित स्तर पर राज्यों की डिस्कॉम का घाटा वित्त वर्ष 2019 में 81 फीसदी बढ़ा। इतना ही नहीं बिजली खरीद और आपूर्ति की औसत लागत भी कम होने के बजाय बढ़ गई। समेकित तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान भी उतना कम नहीं हुआ जितनी आशा थी। परिचालन की कमियों ने भी डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति को प्रभावित किया है और इन कंपनियों को दिया गया सरकारी ऋण पांच साल में दोगुना से अधिक हो गया है।
डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति राज्य सरकारों को भी प्रभावित करेगी। भारतीय रिजर्व बैंक का एक नया शोध पत्र राज्य सरकारों में बजट से इतर उधारी की बढ़ती प्रवृत्ति को रेखांकित करता है। राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली अधिकांश गारंटी बिजली क्षेत्र की उधारी के लिए है। औसतन राज्यों द्वारा की जाने वाली कुल गारंटी का 60 फीसदी बिजली क्षेत्र को होता है। कुछ राज्यों मसलन उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान में यह 80 फीसदी से अधिक है। प्रपत्र के अनुसार यदि ये गारंटी समाप्त कर दी जाएं तो ऋण के स्थायित्व को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाएगा। बहरहाल, कभी न कभी राज्य सरकारों को इस देनदारी को अपने बहीखातों में जगह देनी होगी क्योंकि डिस्कॉम अपना कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं रहेंगी।
स्पष्ट है कि उदय जैसी एक और योजना का क्या हश्र होगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। राज्य सरकारों के व्यय की गुणवत्ता में भी गिरावट आई है क्योंकि वे राजकोषीय लक्ष्यों को हासिल करने के क्रम में पूंजीगत व्यय में कटौती कर रही हैं। कर्ज और ब्याज भुगतान में इजाफा होने से उनकी निवेश की क्षमता प्रभावित होगी। इसका असर संभावित वृद्धि पर पड़ेगा। सरकार ने हाल ही में विभिन्न डिस्कॉम को नकद सहायता दी है लेकिन इससे समस्या हल नहीं होगी। बुनियादी समस्याओं को हल करना आवश्यक है। राज्य सरकारों को चाहिए कि डिस्कॉम को बिजली की कीमत का सही और पारदर्शी मूल्य निर्धारण करने दें। अन्य कोई विकल्प मौजूद नहीं है। अन्य हस्तक्षेप भी समस्या को टालने का काम करेंगे जिससे बोझ और बढ़ेगा।
व्यापक स्तर पर देखें तो बिजली क्षेत्र में वितरण ही इकलौती समस्या नहीं है। सौर ऊर्जा का टैरिफ लगातार गिर रहा है और गत सप्ताह वह 2.36 रुपये प्रति यूनिट के रिकॉर्ड स्तर तक गिर गया। सौर ऊर्जा की अपनी सीमाएं हैं इसलिए आपूर्ति बढ़ाने से ताप बिजली घरों में क्षमता के इस्तेमाल की दिक्कत आएगी। सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना पर्यावरण की दृष्टि से उचित है लेकिन ताप बिजली घरों को व्यवहार्य बनाए रखना भी आवश्यकता है ताकि रात में बिजली की आवश्यकता पूरी की जा सके। नीति निर्माताओं को संतुलन कायम करना होगा ताकि ताप बिजली घर अव्यवहार्य न हो जाएं क्योंकि उससे मांग-आपूर्ति में अंतर पैदा हो जाएगा। सतत आर्थिक वृद्धि के लिए बिजली उत्पादन और वितरण दोनों क्षेत्रों का सुचारु रूप से काम करना जरूरी है।
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