ड्रोन निर्माण के लिए देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार ड्रोन उद्योग के लिए इनक्यूबेशन फंड बनाने की योजना पर काम कर रही है। यह कदम लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद चीनी सामान के आयात को कम करने की दिशा में एक और पहल है। वर्तमान में, चीन द्वारा निर्मित ड्रोन या ड्रोन के हिस्से भारतीय ड्रोन उद्योग के लिए अति आवश्यक हैं। चीनी कंपनी डीजेआई ड्रोन का घरेलू ड्रोन उद्योग में एकाधिकार है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'नीति अयोग द्वारा इस निधि की अवधारणा लाई गई है, जिसका उद्देश्य शैक्षणिक स्तर तथा उद्योग के बीच के अंतर को समाप्त करना होगा, जिससे ड्रोन निर्माण के पूरे तंत्र को बेहतर बनाया जा सके।' ड्रोन फॉर इन्फ्रा सिक्योरिटी हेल्थ ऐंड एग्रीकल्चर (दिशा) फंड का उद्देश्य मुख्य रूप से नागरिक उपयोग के लिए ड्रोन निर्माण हेतु भारतीय ड्रोन निर्माताओं एवं शोधकर्ताओं को वित्तीय सहायता देना होगा। अधिकारी ने कहा, 'अगर किसी के पास ड्रोन उपयोग हेतु विचार या अवधारणा है और उस विचार में व्यावसायिक उपयोग की क्षमता है तो उसे फंड से सहायता उपलब्ध होगी।' सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खरीफ की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले टिड्डियों के झुंड के खिलाफ ड्रोन के सफल उपयोग के बाद इस तरह के फंड की आवश्यकता जताई। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को मोबाइल ऐप्लिकेशन इनोवेशन चैलेंज की घोषणा की, जिससे भारतीय ऐप निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार आएगा। भारत द्वारा चीन के 59 ऐप पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भारतीय ऐप निर्माताओं के पास बेहतरीन अवसर है। सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने अपने विजन दस्तावेज में मानवरहित हवाई प्रणाली के विकास को अपने फोकस वाले क्षेत्रों में रखा है। सूत्रों ने कहा कि इस पहल को शुरू करने वाला नागरिक उड्डयन मंत्रालय फंड का प्रबंधन करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से संपर्क करेगा। अधिकारी ने कहा, 'फंड की मदद से विभिन्न ड्रोन स्टार्टअप इन्क्यूबेटरों के लिए धन की पहुंच को आसान बनाया जा सकेगा। साथ ही, सरकार ड्रोन तकनीक में नवोन्मेष के लिए प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी कर रही है।' बड़ी कंपनियां पहले ही इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं और हाल ही में रिलायंस समूह ने विनिर्माण क्षमताओं से युक्त ड्रोन तकनीक वाली कंपनी एस्टेरिया एयरोस्पेस में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने के लिए 23 करोड़ रुपये का निवेश किया है। चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में अब्दुल कलाम उन्नत यूएवी अनुसंधान केंद्र के निदेशक के. सेंथिल कुमार ने कहा कि वित्तपोषण एवं नियमों के सरलीकरण से कारोबारी निवेश के लिए प्रोत्साहित होंगे। अन्ना विश्वविद्यालय में बने इन्क्यूबेशन केंद्र 'दक्ष' में सेंथिल की टीम ने एक मोटर-संचालित ड्रोन का निर्माण किया, जिसका उपयोग बड़े पैमाने पर टिड्डियों के खिलाफ लड़ाई में किया जा रहा है। कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि बैटरी की कमी होने के बाद मोटर से चलने वाले ड्रोन की जरूरत महसूस की गई। उन्होंने कहा, 'लॉकडाउन में सीमा पर बढ़ी सतर्कता के चलते चीनी सामान की जांच के कारण आयात में कमी आई, जिसके कारण टिड्डियों के खिलाफ अभियान में हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सेमीकन्डक्टर तथा बैटरियां चीन में ही बनती हैं जो ड्रोन बनाने के लिए अत्यावश्यक हैं। तब हमने सेंथिल से उनके मोटर-चलित ड्रोन को लेकर संपर्क किया।' साल 2012 में सेंथिल की टीम ने अमेरिकी सेना द्वारा आयोजित एक वार्षिक प्रतियोगिता जीती थी। सेंथिल ने कहा, 'हमें एक लाख अमेरिकी डॉलर के फंड का प्रस्ताव दिया गया था लेकिन तब हमें अपनी तकनीक अमेरिकी सेना को सौंपनी होती।' सेंथिल ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया लेकिन उनका कहना है कि अगर उस समय भारत में वित्त पोषण की ऐसी कोई व्यवस्था होती तो भारत चीन को पछाड़कर ड्रोन कैपिटल बन गया होता। वह कहते हैं, 'बड़ी कंपनियों को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नियमों को सरल बनाने की आवश्यकता है। टीवीएस मोटर्स ड्रोन के लिए बड़े पैमाने पर मोटर निर्माण के लिए तैयार है, लेकिन ड्रोन संचालन के अनेक तरह की अनुमतियां ऐसे निवेश को हतोत्साहित कर देती हैं।' ड्रोन निर्माताओं द्वारा हाल ही में गठित लॉबी समूह ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। फेडरेशन ने सरकार को दिए अपने सुझावों में कहा, 'प्रौद्योगिकी विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अधिकृत व्यक्ति ड्रोन संबंधी अनुसंधान, परीक्षण एवं सामान विनिर्माण के लिए परीक्षण क्षेत्रों का उपयोग कर सकते हैं।' फेडरेशन का गठन वर्ष 2017 में किया गया था और अब अदाणी, टाटा जैसी बड़ी कंपनियों के साथ ही 2,000 से अधिक स्टार्टअप इसके सदस्य हैं।
