ऐक्सिस बैंक के इतिहास में शायद ही कभी लगातार दो वर्षों के लिए पूंजी उगाही की मांग की गई हो। सितंबर 2019 में 12,500 करोड़ रुपये की कोष उगाही के बाद बैंक के बोर्ड ने वित्त वर्ष 2021 के लिए भी अन्य 15,000 करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी उगाही को मंजूरी दी है। समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक जैसे प्रतिस्पर्धी भी इसी तरह की पहल के लिए आगे आ सकते हैं। तीन बैंकों द्वारा हाल में 25,000-50,000 करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने का निर्णय लिया गया है। कोष उगाही के लिए यह होड़ ऐसे समय में देखी जा रही है जब कई बैंकों (निजी और सरकारी दोनों में) ने वित्त वर्ष 2020 में अपने पूंजी संरक्षण के संदर्भ में अच्छा प्रदर्शन किया है, जो मूल रूप से पूंजी पर्याप्तता अनुपात (सीएआर) बढ़ाने के लिए जरूरी नहीं था। दरअसल, 9 फीसदी सीएआर बनाए रखने के लिए नियामकीय जरूरत के विपरीत वित्त वर्ष 2020 का आंकड़ा कई निजी बैंकों के लिए 15 से 19 फीसदी के बीच है। अभी भी, कोविड-19 महामारी की वजह से गहराती अनिश्चितताओं के मौजूदा परिवेश में पूंजी की जरूरत आवश्यक हो गई है। हालांकि यह सवाल विचार करने लायक है कि क्या बैंक खासकर मौजूदा अनिश्चितता वाले परिवेश में उसी तरह की दिलचस्पी देखेंगे, जैसा कि उन्हें अतीत में दिखने को मिली। यूबीएस सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बैंकिंग शेयर अपने पांच साल की औसत पीबी वैल्यू से नीचे कारोबार कर रहा है। 6 बड़े निजी बैंकों में डिस्काउंट 30-70 फीसदी के साथ काफी अधिक है। इस संदर्भ में एक स्वतंत्र बैंकिंग विश्लेषक अश्विन पारेख का कहना है कि यदि निजी बैंक इस वित्त वर्ष में पर्याप्त पूंजी उगाही में सफल रहते हैं तो उनकी वृद्घि अगले दशक के लिए सुरक्षित है। वह कहते हैं, 'लेकिन उन्हें इस समय अच्छा मूल्यांकन नहीं मिल सकता है, क्योंकि यह बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।' अनिश्चित परिसपंत्ति गुणवत्ता और काफी कमजोर ऋण वृद्घि की दोहरी समस्याओं के साथ पूंजी का तर्कसंगत प्रदर्शन एक बड़ी चुनौती हो सकती है। एक घरेलू ब्रोकरेज फर्म के विश्लेषक ने कहा, 'वित्त वर्ष 2021 एक दशक में ऐसा पहला वर्ष होगा जब निजी बैंक अपने बहीखातों को साफ-सुथरा बनाने के लिए पूंजी जुटा सकते हैं और अपने व्यवसाय को नए सिरे से शुरू कर सकते हैं।' बैंकों की 5-35 फीसदी ऋण बुक ईएमआई स्थगन (50 फीसदी, छोटे बैंकों के मामले में) को ध्यान में रखते हुए एसएमसी कैपिटल के सिद्घार्थ पुरोहित का मानना है कि यह वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में ही संभव हो सकता है जब बैंक (निजी और सरकारी दोनों) परिसंपत्ति और गुणवत्ता की समस्या को सही ढंग से समझने में सक्षम होंगे। चिंताजनक बात यह है कि ऋण वृद्घि से मदद के बगैर परिसंपत्ति गुणवत्ता की समस्या गहरा सकती है। वित्त वर्ष 2020 इसका उदाहरण है कि बैंकों द्वारा वृद्घि के मुकाबले पूंजी संरक्षण पर जोर दिए जाने से किस तरह से दबाव पैदा हुआ। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज द्वारा कराए गए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि ऋण वृद्घि में तेज गिरावट से मार्च 2019 की तिमाही में सकल एनपीए में 80 आधार अंक और सालाना आधार पर 30 आधार अंक की वृद्घि को बढ़ावा मिला, जिससे लगातार सात तिमाहियों तक उद्योग के एनपीए में सुधार पर विराम लग गया। पुरोहित का कहना है, 'ऐसे परिवेश में, यदि बैंक मौजूदा स्तरों से कुछ ज्यादा मूल्यांकन में भी सफल रहते हैं तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।' निजी बैंकों द्वारा ताजा शेयर बिक्री के दौरान 5 फीसदी से ज्यादा की गिरावट को देखते हुए इसे लेकर आशंका बिना कारण नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के संदर्भ में, वे पूंजी के लिए फिर से सरकार का दरवाजा खटखटा सकते हैं, जिससे पीएसबी को बाजार के लिहाज से आत्म-निर्भर बनाने की सरकार की महत्वाकांक्षा प्रभावित हो सकती है। कर्ज जुटाना आसान नहीं हो सकता है। येस बैंक की अतिरिक्त टियर-1 पूंजी को बट्टे खाते में टाले जाने का प्रभाव अभी भी बॉन्ड धारकों के दिमाग में ताजा बना हुआ है। पारेख कहते हैं, 'यदि निवेशक यह मानते हैं कि बैंकों द्वारा जारी बॉन्ड उनके लिए संभावना पैदा करेंगे तो मांग बढ़ सकती है, लेकिन ऐसा ऊंचे ब्याज दर पर देखने को मिलेगा।' पुरोहित का मानना है कि अच्छी बात यह है कि वैश्विक बाजार में नकदी की भरमार है। वह कहते हैं, 'पश्चिमी दुनिया में ब्याज दर अभी भी एक अंक में बनी हुई है। तुलनात्मक तौर पर, भारतीय बैंक निश्चित तौर पर आकर्षक होंगे।' अभी भी रेटिंग घटाने के ताजा दौर बॉन्ड पूंजी को बैंकों के लिए कुछ ज्यादा महंगा बना सकते हैं।
