स्पेस-एक्स अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) तक ले जाने वाला पहला निजी ऑपरेटर बना है। इस वैमानिकी कंपनी ने अपने स्टारलिंक कार्यक्रम के तहत कई उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया। मई में इसने स्टारलिंक कार्यक्रम के तहत 60 उपग्रह भेजे थे। यह अगले पांच वर्षों में उपग्रह प्रक्षेपण में आने वाली उछाल का एक हिस्सा भर है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का अनुमान है कि वह 15,000 से अधिक छोटे-बड़े प्रक्षेपणों में शामिल रहेगा। कई निजी ऑपरेटर भी दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ इस काम में लगे हुए हैं। उपग्रह संचार सेवाओं की रीढ़ होने के अलावा भी बहुत कुछ करते हैं। मसलन, स्पेस-एक्स का स्टारलिंक्स कार्यक्रम ब्रॉडबैंड कवरेज बढ़ाने में मदद करेगा। पिज्जा डिलिवरी एवं कार को रास्ता बताने में उपयोगी लोकेशन डेटा उपग्रहों से ही मिलते हैं। उपग्रहों ने मौसम एवं जलवायु को लेकर हमारी समझ बदलकर रख दी है। आपदा प्रबंधन के अलावा उपग्रह नक्शा बनाने, वन-क्षेत्र की गणना करने, सीधी सड़क बनाने और नगरपालिका कर गणना में भी मदद करते हैं। बात जब सैन्य इस्तेमाल की आती है तो उपग्रहों से आपकी ताकत असाधारण रूप से बढ़ जाती है। लेकिन उपग्रह से जुड़े जोखिम भी हैं। खगोलशास्त्री अपने आकलन में उपग्रहों के विघ्न डालने का अक्सर जिक्र करते हैं। स्पेस-एक्स के स्टारलिंक सीरीज उपग्रहों में वाइजर लगे हुए हैं जिससे प्रकाश परावर्तन कम होता है। उपग्रहों की वजह से अंतरिक्ष की सीमा भी बढ़ जाती है। दरअसल एक उपग्रह अपना परिचालन जीवन खत्म होने के बाद भी कक्षा में घूमता रह सकता है या फिर वह नष्ट हो जाए। उसका किसी अन्य उपग्रह या आईएसएस की तरफ जा रहे रॉकेट से टक्कर होना भी मुमकिन है या फिर वह आईएसएस से भी टकरा सकता है। न्यूटन ने यह संकल्पना दी थी कि किसी भी ऊंचाई पर भ्रमण की एक आदर्श गति होती है। इस आदर्श गति पर उपग्रह किसी अतिरिक्त ताकत के इस्तेमाल के बगैर ही धरती के चारों तरफ एक कक्षा में घूम सकता है। उपग्रहों को उनके कार्यों के आधार पर धरती की निचली कक्षा, मध्यम कक्षा और उच्च कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है। धरती से करीब 2,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित निचली कक्षा में सक्रिय एवं निष्क्रिय दोनों तरह के उपग्रहों की भारी भीड़ है। निचली पृथ्वी कक्षा में तेज गति से धरती का चक्कर लगाने वाले उपग्रहों की भरमार है। कुछ उपग्रह तो महज 90 मिनट में ही धरती का एक चक्कर लगा लेते हैं। ऐसी स्थिति में एक छोटी चीज भी इन उपग्रहों को काफी नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि उपग्रह 8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से कक्षा में घूमते रहते हैं। अंतरिक्ष में कम-से-कम 20,000 छोटे-बड़े उपकरण कचरा बन चुके हैं और इस निचली कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। यह भीड़ और बढ़ती ही जा रही है। आईएसएस धरती से 410 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में मौजूद है। यह स्थान अधिक जोखिम वाला है। अनुमान है कि टेनिस की गेंद के आकार से लेकर बड़े आकार तक वाले करीब 20,000 कचरा और करीब 5 लाख अन्य छोटे उपकरण भी चक्कर लगा रहे हैं। अंतरिक्ष की भीड़भाड़ वाली एक और जगह क्लार्क बेल्ट है जो 35,000 किलोमीटर ऊंचाई पर है। भू-स्थैतिक एवं भू-समकालिक उपग्रह यहीं पर भ्रमण करते हैं। मशहूर विज्ञान कथा लेखक आर्थर सी क्लार्क के सम्मान में इसे क्लार्क बेल्ट का नाम दिया गया है। क्लार्क ने 1945 में ही संचार उपग्रहों की अवधारणा पेश की थी। क्लार्क बेल्ट में घूर्णन की आदर्श गति धरती की घूर्णन गति से पूरी तरह मेल खाती है। इस ऊंचाई पर एक उपग्रह हमेशा ही एक ही स्थान के ऊपर होता है (भू-स्थैतिक) या फिर प्रतिदिन एक ही समय पर एक ही जगह के ऊपर होता है (भू-समकालिक)। अंतरिक्ष में घूम रही हरेक चीज की निगरानी करना काफी मुश्किल काम है और अंतरिक्ष के कचरे की सफाई करना तो लगभग असंभव ही है। यह एक दु:स्वप्न सरीखा है। जाली, हार्पून या लेजर किरणों से इस कचरे को समेटने या नष्ट करने के कई सुझाव दिए गए हैं। एक सुझाव यह भी है कि अपना जीवनकाल पूरा कर चुके उपग्रहों को नीचे गिराकर नष्ट कर दिया जाए। लेकिन अगर यह कचरा हटा भी लिया जाता है तो अंतरिक्ष एजेंसियां नए उपग्रह भेज देंगी। अंतरिक्ष कचरे के बारे में जागरूकता बढ़ाना अब वाणिज्यिक हित का भी विषय हो चुका है। अमेरिकी रक्षा अनुबंध फर्म एनालिटिकल ग्राफिक्स ने मार्च 2019 में एक वाणिज्यिक अंतरिक्ष अभियान केंद्र खोला जो सक्रिय एवं निष्क्रिय हो चुके दोनों तरह के उपग्रहों पर नजर रखेगा। लॉकहीड मार्टिन ने भी वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में अंतरिक्ष कचरे की निगरानी के लिए एक साइट शुरू की है। एक नए शोधपत्र में इस कचरे के निपटान से जुड़ी लागत और हरेक भ्रमणशील उपग्रह के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। यह मॉडल कार्बन उत्सर्जन पर लगने वाले करों पर आधारित है। यह भी कार्बन क्रेडिट की तरह विनिमेय टोकन होगा और किसी उपग्रह से पैदा जोखिम को ध्यान में रखते हुए उसकी गणना की जाएगी। हरेक उपग्रह के शुल्क की गणना में उस उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने पर आने वाली लागत और टक्कर के जोखिम की अनुमानित लागत और कचरा फैलाने में उसकी भूमिका का ध्यान रखा जाएगा। समय के साथ इस शुल्क में बढ़ोतरी भी होगी। शोधपत्र में कहा गया है कि वर्ष 2040 तक प्रति उपग्रह औसत शुल्क 14 फीसदी सीएजीआर के साथ 2.35 लाख डॉलर हो जाएगा। अंतरिक्ष अभियानों में शामिल सभी देशों को ऐसे प्रस्ताव पर राजी होना होगा। दुनिया के करीब दर्जन देश उपग्रहों का प्रक्षेपण करते हैं और करीब 35 देशों के पास इनका स्वामित्व है। शोधपत्र का दावा है कि कक्षा-उपयोग शुल्क लगने से उपग्रह उद्योग का दीर्घावधि मूल्य अभी के 600 अरब डॉलर से बढ़कर करीब तीन लाख करोड़ डॉलर हो जाएगा।
