चीन की भागीदारी वाली योजनाएं जारी | मेघा मनचंदा / July 02, 2020 | | | | |
चीन की कंपनियों पर नरेंद्र मोदी की सरकार की तरफ से दिखाई जा रही सख्ती के बावजूद राष्ट्रीय राजमार्ग क्षेत्र में चीन के साथ पहले हो चुके अनुबंधों पर कोई असर पडऩे की संभावना नहीं दिख रही है क्योंकि इनका निर्माण कार्य पहले ही शुरू हो चुका है। हालांकि अगर इस मोड़ पर कोई बड़ी बाधा दिखेगी तो संभवत: ये परियोजनाएं पटरी से उतर जाएंगी। लेकिन ऐसी संभावना है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) इन अनुबंधों का काम पूरा करेगा पर नई परियोजनाओं का अनुबंध अब चीन की कंपनियों को नहीं दिया जाएगा। एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, 'भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर चीनी कंपनियां संयुक्त उद्यम के तौर पर करीब 10-12 परियोजनाओं पर काम कर रही हैं। उन्हें काम करने की अनुमति दी जाएगी लेकिन चीन की कंपनियों को अब कोई नया अनुबंध नहीं दिया जाएगा।'
जिन अनुबंधों के लिए निविदा जारी की गई है वहां हरेक मामले के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। अधिकारी ने बताया, 'क्षेत्रीय कार्यालयों को जारी की जा चुकी निविदा को हमारे पास आने दें। अब तक क्षेत्रीय कार्यालयों ने इस बाबत हमसे कोई पूछताछ नहीं की है।' केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कहा था कि चीन की किसी भी कंपनी को भविष्य में राजमार्ग अनुबंधों में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा था, 'सड़क निर्माण में चीन की कंपनियों की भागीदारी की अनुमति नहीं दी जाएगी। हमने कड़ा रुख अपनाया है कि अगर वे (चीनी कंपनियां) हमारे देश में संयुक्त उद्यम के माध्यम से आने की कोशिश करेंगी तो हम इसकी अनुमति भी नहीं देंगे।' लद्दाख में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर बनी गतिरोध की स्थिति की पृष्ठभूमि में गडकरी का बयान काफी महत्त्वपूर्ण है। सीमा पर तनातनी की वजह से पिछले महीने भारतीय सेना के 20 जवान भी शहीद हो गए थे।
चीन की कंपनियां राजमार्ग निर्माण क्षेत्र में बड़ी तादाद में मौजूद नहीं हैं लेकिन वे ईपीसी (इंजीनियरिंग-खरीद-निर्माण) और हाइब्रिड वार्षिकी अनुबंधों पर अमल कराने के लिए भारतीय भागीदारों के साथ काम करती हैं। जिन प्रमुख भारतीय कंपनियों में चीन साझेदार है उनमें से एक एमईपी है। एमईपी इन्फ्रस्ट्रक्टर डेवलपर्स का संयुक्त उद्यम लॉन्गजियान रोड ऐंड ब्रिज कंपनी के साथ है और इनके हिस्से में तीन एचएएम परियोजनाएं हैं जिनमें 3,000 करोड़ रुपये का निवेश शामिल है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर राजमार्ग क्षेत्र पर उतना नहीं होगा क्योंकि भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में चीन की मौजूदगी श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के मुकाबले काफी कम है। इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और समूह प्रमुख शुभम जैन का कहना है, 'चीन भारत के बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में बहुत सक्रिय नहीं रहा है और चीन की कंपनियों ने ज्यादातर घरेलू कंपनियों के साथ बड़ी परियोजनाओं को हासिल करने के लिए साझेदारी की है ऐसे में असर तो पड़ेगा लेकिन यह दूरसंचार और बिजली जैसे अन्य क्षेत्रों पर पडऩे वाले प्रभाव के मुकाबले कम होगा क्योंकि इन क्षेत्रों में चीनी कंपनियों की बड़ी मौजूदगी है।'
राजमार्ग क्षेत्र में चीन की कंपनियों की अनुपस्थिति की मुख्य वजह उनकी चीन के श्रमिकों पर निर्भरता है और भारत इसकी अनुमति नहीं देता है। इसलिए इन कंपनियों ने यहां सड़क निर्माण क्षेत्र में ज्यादा जोर नहीं लगाया है। पूर्व सड़क सचिव विजय छाबड़ा ने कहा, 'सड़क निर्माण के क्षेत्र में चीन की कंपनियों का प्रतिबंध ज्यादा प्रासंगिक नहीं है क्योंकि उनकी इस क्षेत्र में ज्यादा उपस्थिति नहीं है कि इसका असर दिखे।'
|