श्रेणी-2 एफपीआई के लिए विस्तृत शर्त | ऐश्ली कुटिन्हो / मुंबई July 02, 2020 | | | | |
सरकार ने मंगलवार को एक अधिूसचना में यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय कर नियमों के तहत सेफ हार्बर के लिए पात्रता की ब्रॉड-बेस्ड यानी विस्तृत शर्त पूरी करने की अनिवार्यता श्रेणी-2 के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए लागू होगी।
विश्लेषकों का कहना है कि इससे श्रेणी-2 एफपीआई, खासकर केमैन आईलैंड्स, ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स और पश्चिम एशियाई देशों के फंडों को भारतीय फंड प्रबंधकों के लिए फंड प्रबंधन जिम्मेदारियों के प्रतिनिधित्व से रोका जा सकता है।
20 प्रतिशत एफपीआई मौजूदा समय में श्रेणी-2 में आते हैं। श्रेणी-2 एफपीआई को पहले से ही नुकसान हो रहा है क्योंकि उन्हें अप्रत्यक्ष स्थानांतरण प्रावधानों का पालन करना पड़ता है। ऐसे प्रावधान उन फंडों के लिए लागू हैं जिन्होंने अपने पोर्टफोलियो निवेश का 50 फीसदी से ज्यादा भारत में लगाया है। पीडब्ल्यूसी इंडिया में पार्टनर तुषार सचाडे ने कहा, 'यह अधिसूचना एफपीआई व्यवस्था में बदलाव को देखते हुए जरूरी थी। श्रेणी-1 के एफपीआई फंड प्रबंधन के इच्छुक होते हैं। श्रेणी-2 के एफपीआई को भारतीय परिसंपत्ति प्रबंधकों के लिए कोष प्रबंधन को लेकर कई और समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।'
2017 में, सरकार ने श्रेणी-1 और 2 एफपीआई को आयकर नियमों की धारा 9ए की उप-धारा 3ई, 3एफ और 3जी के तहत ब्रॉड-बेस्ट नियमकों को पूरा करने से छूट दी थी। पिछले साल बाजार नियामक सेबी ने तीन एफपीआई श्रेणियों को दो में शामिल किया था। नियामक ने एफपीआई के लिए ब्रॉड-बेस्ड शर्त को भी दूर किया था।
ईवाई इंडिया में पार्टनर तेजस देसाई ने कहा, 'यदि सीबीडीटी ने दोनों श्रेणियों के एफपीआई के लिए धारा 9ए में ब्रॉड-बेस्ड शर्त पूरी करने के संबंध में छूट प्रदान कर नए एफपीआई नियमों के साथ धारा 9ए में कर नियमों को उदार बनाया होता तो बेहतर होता। धारा 9ए में श्रेणी-2 एफपीआई के लिए इस शर्त को पूरा करने की जरूरत से कर नियम भारतीय फंड प्रबंधकों की गैर-एफएटीएफ सदस्य देशों में स्थापित फंडों के प्रबंधन से भी दूर रखेंगे।'
सचाडे ने कहा, 'फंड प्रबंधन से संबंधित सेफ हार्बर प्रावधान परिसंपत्ति प्रबंधन उद्योग के लिए 'मेक इन इंडिया' के अनुरूप हैं। सीबीडीटी को सेबी से संकेत लेना चाहिए और इस रियायत को दोनों श्रेणी 1 और 2 के एफपीआई के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।'
फाइनैंस ऐक्ट, 2015 के तहत भारत से कोष प्रबंधन गतिविधि को प्रोत्साहित करने और विदेशी फंडों के घरेलू प्रबंधन के लिए सेफ हार्बर मुहैया कराने के लिए धारा 9ए पेश की गई थी।
इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि ये फंड सिर्फ इसलिए अतिरिक्त कर नहीं चुकाएं क्योंकि वे भारत में प्रबंधित हैं और व्यवसाय संपर्क बनाने या भारत में स्थायी प्रतिष्ठान का जोखिम कम हो। इस धारा के बगैर भारत में प्रबंधित ऑफशोर यानी विदेशी फंड को टैक्स रेजीडेंट यानी यहां कर चुकाने वाला समझा जाएगा।
सरकार ने पिछले कुछ वर्षों केदौरान नियमों में नरमी बढ़ाई है। लेकिन अभी भी ऐ कुछ ही फंड हैं जिन्हें अब तक धारा 9ए के तहत मंजूरी मिली है। यही वजह है कि विश्लेषक यह सुझाव दे रहे हैं कि कुछ ठोस सुधारों की जरूरत है।
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