सरकार ने चीन की जिन कंपनियों के ऐप पर प्रतिबंध लगाया है उनमें से कुछ इस बात पर विचार कर रही हैं कि वे भारत की अदालत में रिट याचिका दाखिल करें या नहीं। इस मामले की सीधी जानकारी रखने वाले दो लोगों का कहना है कि इन कंपनियों का मानना है कि भारत सरकार ने ऐप पर प्रतिबंध लगाने का जो फैसला किया है वह मनमाना, भेदभावपूर्ण होने के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। उनका प्रतिनिधित्व करने वाली कुछ लॉ फर्मों का मानना है कि डेटा स्थानीयकरण और मौजूदा तंत्र में कुछ संशोधन से जुड़ी चिंताओं के बारे में आश्वासन दिए जाने के बावजूद अगर भारत सरकार इस कदम पर पुनर्विचार नहीं करती है, तब वे उच्च न्यायालय में जा सकती हैं। इन कंपनियों ने भारत सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई लडऩे के लिए जमीन तैयार करना शुरू कर दिया है। संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के अलावा यह कदम प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है क्योंकि प्रतिबंध से पहले कोई सुनवाई नहीं की गई थी। इस मामले से जुड़ी जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया, 'यह कदम बिना किसी अपराध के ज्यादा दंड देने के समान है। इस याचिका में बुनियादी ढांचे और कई अन्य क्षेत्रों में अरबों के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के भविष्य के बारे में पूछा जा सकता है।' उनका कहना है कि उन पर किसी भी कानून के उल्लंघन का कोई आरोप नहीं लगाया गया है जिसकी वजह से इस तरह के गंभीर प्रतिबंध लगाने की नौबत आए। आमतौर पर प्रतिबंध लगाने से पहले कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी होना चाहिए। उनका कहना है कि प्रतिबंध के आदेश भी बिना किसी आधार या तर्क के हैं। हालांकि इन कंपनियों की लीगल टीम सबसे पहले सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से संपर्क करने की कोशिश करेगी। इसमें प्रतिबंध के सामान्य आर्थिक प्रभाव, भारत के आर्थिक विकास में अहम योगदान करने वालों, नए प्रयोग और उपभोक्ता मांग की पूर्ति पर भी चर्चा हो सकती है। इस कदम से प्रभावित होने वाली एक कंपनी के अधिकारी ने बताया, 'इन ऐप का काम रोकने से भारत के आर्थिक और वाणिज्य विस्तार पर सीधा प्रभाव पड़ेगा और भारत की बढ़ती उद्यमशीलता की भावना और नए प्रयोग की दिशा में भी बड़ा झटका लगेगा।' ये कंपनियां भारत के लोगों को रोजगार और आजीविका देने के साथ-साथ भारत सरकार के लिए राजस्व मुहैया कराने का भी हवाला दे रही हैं। वे सरकार से संस्थापक की पृष्ठभूमि और इन ऐप को चलाने से जुड़े वास्तविक मकसद की जांच करने के लिए कह सकती हैं। वे राजनीतिक भागीदारी आदि जैसे विषयों पर भी अपनी कोई दिलचस्पी न होने की बात रख सकती हैं। उनका कहना है, 'हम अधिकारियों के साथ सहयोग करने और जरूरत पडऩे पर बदलाव करने के लिए तैयार हैं।' दिलचस्प बात यह है कि सरकार के इस कदम से उनके राजस्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सरकार के सूत्रों के मुताबिक इनसे मिलने वाला आयकर काफी कम होता है क्योंकि वे लगातार नुकसान दिखाती रहती हैं, हालांकि वे विज्ञापन खर्च पर अप्रत्यक्ष कर देती हैं। एक लॉ फर्म ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'सरकार का यह कदम हाल की भू-राजनीतिक घटनाओं की संभावित राजनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन भारत में इनमें से कुछ ऐप द्वारा बड़ी तादाद में रोजगार मुहैया कराने के साथ-साथ डेटा स्थानीयकरण सुनिश्चित करने के लिए इन संस्थाओं द्वारा कदम भी उठाए जा रहे हैं, ऐसे में सरकार का यह कदम उलटा साबित हो सकता है।'
