राजस्थान की एक लोकसभा संसदीय सीट से ताल्लुक रखने वाले ग्रामीण अब अपने अधिकारों को लेकर काफी सचेत नजर आ रहे हैं। हर बार भले ही मतदाता अपनी अपनी मांगों और अपेक्षाओं को चुनाव उम्मीदवारों के सामने रखते आए हों, पर इस दफा उन्होंने एक अधिक दमदार और ठोस रास्ता निकाला है। इस दफा वे कोरी बयानबाजी से संतोष करने के पक्ष में नजर नहीं आ रहे हैं और इसलिए उन्होंने अपनी मांगों की एक लिखित सूची तैयार की है और वे चाहते हैं कि विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवार उस सूची पर हस्ताक्षर करें। उन्हें लगता है कि लिखित आश्वासन मिलने के बाद ही उनकी समस्याओं की ओर पार्टियों का ध्यान जा सकता है और उनका कोई हल निकल सकता है। यह अनोखा विचार उन्हें बाड़मेर जिले में पानी की समस्या से सूझा है। दरअसल, राजस्थान के इस सूखाग्रस्त जिले में पानी की समस्या को दूर करने के लिए राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना कानून (नरेगा) के तहत कुंओं की खुदाई की गई थी, पर इससे समस्या का समाधान होने के बजाय समस्या और बढ़ गई। इस समस्या को देखते हुए एक स्वयंसेवी संगठन जल भागीरथी फाउंडेशन ने निर्णय लिया कि स्थानीय लोगों को अपनी समस्याएं सुलझाने के लिए खुद एजेंडा तय करना होगा। यह संगठन राज्य के 200 से अधिक गांवों में जल संरक्षण परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है। तभी उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी संगठन की स्थानीय इकाई से जुड़ने का फैसला लिया। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने एक विकास समझौता तैयार किया है। इस समझौते के तहत यह बताया गया है कि अगले 6 महीनों या एक साल में कौन सा काम किया जाएगा। ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल की कार्यकारी निदेशिका अनुपमा झा ने बताया, 'इस समझौते के तहत चयनित उम्मीदवार को पहले पंद्रह दिनों के अंदर अपने संसदीय क्षेत्र का दौरा करना होगा।' उन्होंने कहा कि किसी स्थानीय शिक्षक या फिर बुजुर्ग को स्वतंत्र बाह्य ऑडिटर बनाया जा सकता है। अब झा उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में भी मतदाताओं को ऐसे ही प्रयास के लिए तैयार करने में जुटी हैं। इन मतदाताओं ने दूषित जलापूर्ति के कारण पहले ही चुनाव बहिष्कार करने की चेतावनी दी थी। टीआई के लिए यह एक प्रयोग की तरह है और वे यह देखना चाहते हैं कि शेयरधारकों की ओर से इसे लेकर कैसी प्रतिक्रिया जताई जाती है। कुछ इसी तरह का प्रयास अग्नि भी कर रही है जो मुंबई के 16 निगम वार्डों में संयुक्त कार्य दलों द्वारा उपलब्ध कराया गया मंच है। संगठन ने उन नागरिकों की उन समस्याओं की एक सूची तैयार की है, जिनकी ओर वे राजनीतिक पार्टियों और शहर के सांसदों का ध्यान खींचना चाहते हैं। पूर्व पत्रकार और अग्नि के संयोजक गर्सन डा कुन्हा ने बताया, 'हम चाहते हैं कि मुंबई में शासन व्यवस्था बेहतर बने। 24 में से 16 निगम वार्डों में हमें जमीन से जुड़े तबके का सहयोग प्राप्त है।' स्वयंसेवी संगठन ऑक्सफैम भी देश भर में लोगों की मांगों को जुटाने के लिए एक अभियान चला रही है। राजनीतिक पार्टियों ने अपने अपने घोषणापत्र तो जारी कर दिए हैं, पर लोगों की क्या मांगें हैं इसे जानने के लिए संगठन जोर शोर से जुटा हुआ है। संगठन अब तक 100 संसदीय क्षेत्रों से लोगों के घोषणापत्र जारी कर चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली जन स्वास्थ्य अभियान ने भी लोकसभा चुनाव के लिए लोगों की ओर से स्वास्थ्य घोषणापत्र तैयार करने का बीड़ा उठाया है। कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के घोषणापत्र को देखें तो यह साफ हो जाएगा कि किस तरीके से इस दफा राजनीतिक पार्टियां सामाजिक संगठनों की मांगों पर भी ध्यान देने लगी हैं। इन पार्टियों के घोषणापत्रों में अब स्वयंसेवी संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांगों को जगह दी जाने लगी है। इन पार्टियों को भी समझ में आने लगा है कि जनता अपनी मांगों को लेकर अब गंभीर हो गई है। इन संगठनों की मांगों को घोषणापत्रों में कितना तवज्जो दिया जा रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के राजनीतिक घोषणापत्र जारी करने से पहले पार्टी के प्रतिनिधि समेत भाजपा और वाम दलों के प्रतिनिधियों ने जन मंच की ओर से आयोजित बैठक में हिस्सा लिया था। जन मंच पीपुल्स ऐक्शन फॉर इंप्लॉयमेंट गारंटी और नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टू इन्फॉरमेशन को एक मंच उपलब्ध कराता है। इस बैठक में जो मांगे रखी गई थीं उनमें से कुछ को पार्टियों के घोषणापत्र में देखा जा सकता है।
