लॉकडाउन के नुकसान पर बीमा कंपनी नहीं मेहरबान | संजय कुमार सिंह और बिंदिशा सारंग / June 29, 2020 | | | | |
सैंतालीस वर्षीय अमित अग्रवाल (आग्रह पर नाम में बदलाव) नोएडा में परिधान विनिर्माण की एक इकाई चलाते हैं। उन्होंने अपने प्रतिष्ठान की सुरक्षा के लिए संपत्ति/आग बीमा कवर खरीद रखा है। उनकी पॉलिसी में कारोबार व्यवधान या लाभ का नुकसान कहलाने वाला कवर भी शामिल है। लॉकडाउन की वजह से उनकी इकाई में कामकाज पूरी तरह ठप रहा और अब तक मामला पटरी पर नहीं लौटा है। अब अग्र्रवाल यह पता लगाने में जुटे हैं कि कारोबार व्यवधान वाला बीमा कवर लॉकडाउन के दौरान उन्हें हुए कारोबारी घाटे की भरपाई करेगा या नहीं।
बंडल कवर
सामान्य बीमा कंपनियां रेस्टोरेंट, दुकानों, फैक्टरियों जैसे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को कारोबार व्यवधान कवर मुहैया कराती हैं। यह प्रॉपर्टी/आग पॉलिसी के साथ मिलता है। प्रॉपर्टी/आग पॉलिसी में आग, बाढ़, तूफान, भूकंप, दंगों जैसी घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान से सुरक्षा मिलती है। तो क्या कोविड-19 भी पॉलिसी में शामिल होगा? सामान्य बीमा उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कोविड-19 की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं होगी। उनका कहना है कि कारोबार व्यवधान कवर में 'भौतिक नुकसान' का प्रावधान जुड़ा होता है।
इसका मतलब है कि बीमा में उल्लिखित किसी आपदा के कारण भौतिक नुकसान का दावा नहीं किया जाएगा तो कारोबार व्यवधान के किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा। बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रमुख (प्रॉपर्टी ऐंड रिस्क इंजीनियरिंग सर्विसेज) सी आर मोहन ने कहा, 'अगर कोई दावा प्रॉपर्टी पॉलिसी के तहत स्वीकार करने योग्य है, माना कि आग लग जाती है या बाढ़ आ जाती है और उससे कारोबार में व्यव्यधान पैदा होता है तो कारोबार व्यवधान पॉलिसी के तहत दावा किया जा सकता है।
मोहन कहते हैं कि कोविड-19 में हर्जाना नहीं मिलने की दो वजह हैं। वह कहते हैं, 'कारोबार में व्यवधान पैदा हुआ है, मगर संपत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। अगर संपत्ति को नुकसान पहुंचा भी है तो यह बीमित आपदाओं की वजह से नहीं हुआ है। इस पॉलिसी के तहत कोविड-19 बीमित आपदा नहीं है।'
इफ्को टोक्यो जनरल इंश्योरेंस के कार्यकारी उपाध्यक्ष सुब्रत मंडल भी इस विचार से सहमति जताते हैं। वह कहते हैं, 'अगर बीमित आपदा की वजह से संपत्ति को वास्तविक भौतिक नुकसान नहीं हुआ है तो कारोबार व्यवधान कवर लागू नहीं होता है।' कुछ कानूनी विशेषज्ञ भी इससे सहमति जताते हैं। डीएसके लीगल में पार्टनर अपराजित भट्टाचार्य ने कहा, 'मौजूदा स्थिति के मुताबिक दुर्घटनावश भौतिक हानि या नुकसान या क्षति को कारोबारी व्यवधान माना जाता है, इसलिए इसमें कोविड-19 से कारोबार पर असर शामिल नहीं होगा।'
सलाहकार कंपनियों के विशेषज्ञों का कहना है कि कारोबारियों को हर्जाना उसी स्थिति में मिलेगा, जब उन्होंने अलग से महामारी कवर खरीदा होगा। पीडब्ल्यूसी इंडिया में पार्टनर ऐंड लीडर (बीमा) जयदीप के रॉय ने कहा, 'महामारी एक अलग बीमा कवर है, जिसे खरीदना होता है। मोल्ड एवं फंजाई या फफूूंद से नुकसान के बीमा की ही तरह महामारी का कवर भी बहुत कम खरीदा जाता है क्योंकि ग्राहक प्रीमियम कम रखना चाहते हैं।'
कारोबारी व्यवधान पॉलिसी में यह भी कहा गया है कि अगर कारोबारी व्यवधान से नुकसान सरकारी अधिकारियों के परिचालन पर कोई प्रतिबंध लगाने (मौजूदा मामले में ऐसा ही हुआ है) से होता है तो उसकी भरपाई नहीं होगी। इसके अलावा भारत में बहुत कम व्यावसायिक प्रतिष्ठान कारोबारी व्यवधान कवर लेते हैं। देश में जितने लोग प्रॉपर्टी पॉलिसी लेते हैं, उनमें से 0.1 फीसदी लोग ही कारोबारी व्यवधान कवर भी लेते हैं। एक स्टैंडर्ड फायर पॉलिसी का प्रीमियम बीमित राशि का 0.015 से 0.50 फीसदी तक होता है। यह बीमित माल या वस्तुओं की प्रकृति पर निर्भर करता है। आग या अन्य संबंधित आपदाओं की वजह से होने वाले नुकसान के लिए कारोबारी व्यवधान कवर पर भी इतना ही प्रीमियम वसूला जाता है। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक सबसे महत्त्वपूर्ण चीज यह है कि आप अपने पॉलिसी दस्तावेज के बारीक से बारीक ब्योरे को भी देखें। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में वरिष्ठ सहायक जयश्री परिहार ने कहा, 'अगर पॉलिसी में 'लाभ का नुकसान' बीमा के दायरे में आता है और जिस जोखिम के खिलाफ बीमा किया जाता है, वह महामाही है तभी धारक भुगतान प्राप्त कर सकता है।'
सार्स का उदाहरण
सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) महामारी फरवरी 2003 में शुरू हुई थी। सूत्रों का कहना है कि उस समय भी कोई भुगतान नहीं किया गया था। पॉलिसी बाजार डॉट कॉम में मुख्य कारोबार अधिकारी (सामान्य बीमा) तरुण माथुर ने कहा, 'जहां तक मुझे पता है भारत में कोई भुगतान नहीं किया गया था क्योंकि यहां महामारी का कोई कवर उपलब्ध नहीं था।'
दरअसल सार्स के बाद सामान्य बीमा कंपनियों ने अपनी पॉलिसी सख्त बना दीं। परिहार ने कहा, 'वर्ष 2004 में अप्रैल के मध्य में सभी जगह सार्स के पॉलिसी में शामिल न होने की सूचना जारी की गई। उन्होंने भविष्य में वायरस से संभावित नुकसान को रोकने के लिए पॉलिसी दस्तावेज में संक्रामक बीमारी शामिल न होने की बात शामिल की। अब इसी तरह पॉलिसी में कोविड-19 शामिल नहीं होने का प्रावधान शामिल किया जाता है तो इससे मौजूदा कोविड-19 के हालात पर भी असर पड़ सकता है।'
क्या फोर्स मेजर लागू होगा? किसी अनुबंध में इस खंड के तहत उन परिस्थितियों को शामिल किया जाता है, जिनके तहत किसी एक या दोनों पक्षों के लिए अनुबंध को पूरा करना असंभव बन सकता है। फोर्स मेजर खंड दोनों पक्षों को अपने अनुबंध की बाध्यताओं से मुक्त कर देता है। मंडल ने कहा, 'बीमा नियामक और सामान्य बीमा परिषद (जीआईसी) ने इस संबंध में स्पष्टीकरण जारी किए हैं। केवल फोर्स मेजर होना ही पर्याप्त नहीं है। भौतिक नुकसान का प्रावधान भी पूरा होना चाहिए।'
विवादों से इनकार नहीं
हालांकि विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस मुद्दे पर कानूनी विवाद पैदा होंगे। भट्टाचार्य ने कहा, 'इस बात को लेकर बड़ी बहस होने के आसार हैं कि क्या कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन को भौतिक नुकसान माना जाना चाहिए या नहीं। पॉलिसी में मुश्किल से ही इसे परिभाषित किया जाता है कि भौतिक नुकसान का क्या मतलब है। ऐसी स्थिति में अदालतों में सभी तरह के सामान्य कानून के मामलों और सिद्धांतों पर बहस होगी।'
अहम व्यक्ति बीमा के दावे
भले ही कारोबारी व्यवधान के तहत कोई भुगतान नहीं किया जाए। मगर एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान अहम व्यक्ति बीमा के तहत मुआवजा प्राप्त कर सकता है। माथुर ने कहा, 'अगर किसी कंपनी ने अपने निदेशकों के लिए अहम व्यक्ति बीमा खरीदा है और उनमें से एक की कोविड-19 की वजह से मौत हो जाती है तो एक निश्चित राशि का भुगतान करना होगा।'
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