पंजाब में नाभा इलाके के एक बड़े किसान निर्मल सिंह करीब 10 एकड़ जमीन के मालिक हैं और बारी-बारी से गेहूं तथा धान उगाते हैं। इन्होंने शायद ही कभी किसी दूसरी फसल में हाथ आजमाया है। आम तौर पर जून के दौरान जब मॉनसून देश में प्रवेश करता है और मुख्य भूमि की ओर बढ़ते हुए अपनी यात्रा शुरू करता है, तो सिंह नर्सरी में धान की रोपाई शुरू करते हैं और फिर समान ऊंचाई तथा उपज प्राप्त करने के लिए पानी से भरे खेतों में उसकी बुआई करते हैं। हालांकि, इस साल हालात काफी अलग हैं। सिंह ने कहा कि कोविड-19 के कारण उनके गांव से इतने बड़े स्तर पर मजदूरों का पलायन हुआ है कि उन्हें स्थानीय रूप सेे उपलब्ध श्रमिकों को रोजगार देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इसके लिए उन्हें सामान्य दर की तुलना में दोगुना व्यय करना पड़ रहा है। सिंह ने फोन पर बताया कि पिछले साल तक धान रोपाई की दर प्रति एकड़ लगभग 2,500 से 3,000 रुपये थी। इस साल यह बढ़कर प्रति एकड़ लगभग 4,500 रुपये गई है, जबकि पंजाब के कुछ हिस्सों में तो यह प्रति एकड़ 6,000 रुपये तक पहुंच चुकी है। हालांकि दरों में यह वृद्धि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी है, लेकिन सिंह जैसे किसानों के लिए इसका मतलब है उत्पादन लागत में तीव्र वृद्धि। इसके अलावा मार्च से डीजल के दामों में 20 प्रतिशत से ज्यादा तक का इजाफा हो चुका है जिससे उनकी उत्पादन लागत और बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे किसानों को जानता हूं जिन्होंने बिहार और उत्तर प्रदेश से प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए विशेष बसें किराए पर ली हैं, लेकिन हम में से कितने लोग ऐसा कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि काश हमें चावल के एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से ज्यादा अच्छे दाम मिल जाएं, तब यह अतिरिक्त लागत पूरी हो जाएगी। सिंह जैसे लाखों किसानों के लिए खरीफ का यह सत्र रबी सत्र में नजर आई रुकावट के बाद काफी उम्मीद जगाता है। जल्द खराब नहीं होने वाली फसलों का रकबा 19 जून तक पिछले साल की तुलना में लगभग 39 प्रतिशत ज्यादा है, जबकि इस सत्र के पहले 15 दिनों में मॉनसून सामान्य के मुकाबले लगभग 30 प्रतिशत अधिक रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए पंजाब और हरियाणा के किसान चावल की सीधी बुआई जैसे कृषि के वैकल्पिक तरीकों का इस्तेमाल करने लगे हैं जिसमें धान की रोपाई नहीं की जाती, बल्कि इसे सीधे बीजों से उगाया जाता है। ऐसा इसलिए है ताकि श्रमिकों पर उनकी निर्भरता कम हो सके। हालांकि इसमें कुछ दिक्कतें भी रहती हैं और ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करने वाले किसानों की तादाद ज्यादा नहीं है। पंजाब के पूर्व कृषि आयुक्त बलविंदर सिंह सिंधु ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सीधे बुआई करने में खरपतवार और गीलेपन का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण रहता है, यही वजह है कि कई सालों से इसके चलन के बावजूद पंजाब में किसी भी साल डीएसआर के तहत रकबा 10 लाख हेक्टेयर से अधिक नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश लगभग 200 किलोमीटर दूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली जिले के किसान विश्वजीत श्रमिकों की उपलब्धता के संबंध में चिंतित नहीं हैं क्योंकि कोविड-19 ने मजदूरों की प्रचुरता सुनिश्चित कर दी है। लौटने वाले प्रवासी विश्वजीत के लिए वरदान साबित हुए हैं क्योंकि उन्होंने कम से कम अस्थायी रूप से तो श्रमिकों की इस कमी को हल कर ही दिया है जिसका सामना विश्वजीत को वर्ष की इस अवधि में आम तौर पर करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उम्मीद जगाई है। राज्य के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कृषि श्रमिकों की प्रचुरता है और बुआई सुचारू रूप से चल रही है। किसानों के लिए उर्वरक और बीजों के स्टॉक की पर्याप्त उपलब्धता है। हालांकि विश्वजीत इस महामारी के संबंध में सामान्य अनिश्चितता के बारे में चिंतित है। उन्होंने कहा कि अब इसका संक्रमण गांवों में पहुंच रहा है और किसानों को इसके संपर्क में आने का भय है। किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार ने कहा कि हालांकि खरीफ के रकबे में इजाफा होने की संभावना है, लेकिन कोविड-19 के परिणामस्वरूप कृषि में काम आने वाली सामग्री की खरीद के लिए पूंजी की कमी के रूप में निश्चित रूप से रुकावटें पैदा होंगी और ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण की दर बढ़ेगी।
