सभी का कर्ज पुनर्गठन नहीं! | रघु मोहन और अभिजित लेले / मुंबई June 28, 2020 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एकबारगी ऋण पुनर्गठन योजना में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को राहत शायद ही मिल सके। इस योजना में पात्रता के लिए कोविड-19 के असर को आधार बनाया जा सकता है।
विमानन, आतिथ्य और खुदरा क्षेत्रों की कंपनियों को नई योजना का लाभ लेने की इजाजत मिल सकती है मगर रियल्टी, इस्पात, बिजली और दूरसंचार कंपनियों को बाहर रखे जाने के आसार हैं। एक सूत्र ने कहा, 'यह देखना होगा कि दबाव महामारी की वजह से है या नहीं वरना योजना का दुरुपयोग होने की आशंका रहेगी।'
सूत्रों ने कहा कि एकबारगी ऋण पुनर्गठन की योजना आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की शुक्रवार को हुई बैठक के एजेंडे में नहीं थी। मगर दो निदेशकों ने इसका जिक्र किया था। सबसे बड़ी चिंता यह है कि बैंकिंग नियामक द्वारा वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अगस्त 2008 में किए गए एकबारगी ऋण पुनर्गठन से बैंकों ने ऋणों की एवरग्रीनिंग की थी यानी ऋण चलते ही रहे थे। इस वजह से केंद्रीय बैंक को स्थिति ठीक करने के लिए छह साल बाद परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) करने को बाध्य होना पड़ा था। अब जो बात बोली नहीं जा रही, वह यह है कि एक्यूआर के फायदों को बरबाद नहीं किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ बैंक अधिकारी नई ऋण पुनर्गठन योजना के बारे में कुछ जानते ही नहीं हैं। उन्होंने बताया, 'बैंकों की मांग है कि विशेष मामलों को निपटाने के लिए उन्हें व्यापक छूट दी जाए। लेकिन पिछले अनुभवों को मद्देनजर रखते हुए आरबीआई कुछ खास रियायतें ही दे सकता है। यह योजना ऐसी नहीं होगी, जिसमें सभी क्षेत्रों की चिंताएं दूर की जाएंगी।'
रियल्टी, इस्पात और बिजली ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें पहले ही सरकारी मदद मिल चुकी है। रियल्टी क्षेत्र के लिए केंद्र ने नवंबर 2019 में 25,000 करोड़ रुपये का एक वैकल्पिक निवेश फंड बनाया था ताकि जिन डेवलपरों की योजनाएं अधूरी हैं, उन्हें मदद मिल सके और वे मकान खरीदने वालों को मकान दे सकें। इस फंड का प्रबंधन एसबीआईकैप वेंचर कर रही है। परियोजनाओं के व्यावसायिक कार्य को पूरा करने की तारीख एक साल बढ़ाई गई है। पिछले साल अक्टूबर में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने चीन, मलेशिया और दक्षिण कोरिया से आयातित फ्लैट हॉट रोल्ड स्टेनलेस-स्टील उत्पादों पर डंपिंग रोधी शुल्क की समाप्ति की समीक्षा शुरू की थी। बिजली क्षेत्र में वितरण कंपनियों को भी 90,000 करोड़ रुपये की तरलता मुहैया कराई गई है।
इस बार पुनर्गठन की योजना के बेहतर क्रियान्वयन की उम्मीद है क्योंकि बड़े ऋणों पर आरबीआई की सेंट्रल रिपॉजिटरी ऑफ इन्फॉर्मेशन, ट्रांसयूनियन सिबिल, बेहतर आंतरिक निगरानी और ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के बेहतर कानूनी ढांचे आदि से सूचनाओं के खुलासे में सुधार हुआ है।
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