भारतीय शेयर बाजार ने अब उत्तर अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में अपने प्रतिस्पद्र्धी बाजारों को प्रदर्शन के मामले में पीछे छोड़ दिया है। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स पिछले एक महीने के दौरान 9 प्रतिशत तक उछल गया है, जबकि इसी अवधि में डाऊ जोंस में महज 3 प्रतिशत तेजी दर्ज हुई है। इसी दौरान यूनाइटेड किंगडम का मानक सूचकांक एफटीएसई 100 में 2.1 प्रतिशत, फ्रांस के सीएससी 40 सूचकांक में 7.3 प्रतिशत और जर्मनी के डीएएक्स इंडेक्स में 6 प्रतिशत तेजी देखी गई है। इसके उलट पिछले एक वर्ष के दौरान सेंसेक्स विकसित बाजारों के शेयर सूचकांकों से कमजोर रहा है। उदाहरण के लिए पिछले वर्ष जून से सेंसेक्स में 11.3 प्रतिशत कमी आई है, जबकि इसके मुकाबले न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के डाऊ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 0.6 प्रतिशत तेजी रही है। इसी तरह, जर्मनी के डीएक्स में 1.6 प्रतिशत तेजी दर्ज हुई है। भारतीय बाजार तीन वर्ष की अवधि में भी अमेरिकी बाजारों से प्रदर्शन के मामले में कमजोर रहा है। पिछले तीन वर्ष के दौरान सेंसेक्स में 12.3 प्रतिशत तेजी दिखी है, जबकि डाऊ जोन्स 20.3 प्रतिशत बढ़त हासिल करने में कामयाब रहा है। हालांकि पिछले एक महीने में भारतीय बाजारों में आपेक्षिक तेजी को विशेषज्ञ अधिक तवज्ज्जो नहीं दे रहे हैं। डाल्टन कैपिटल एडवाइजर्स के निदेशक यू आर भट्ट ने कहा,'पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय बाजार में तेजी जरूर आई है, लेकिन इसके पीछे तकनीकी कारण है। देश में कोविड-19 के बढ़ते मामले के मद्देनजर कंपनियों की आय कमजोर रहेगी। लिहाजा मौजूदा तेजी को अधिक तूल नहीं दिया जा सकता।' कुछ विशेषज्ञों की नजर में विकसित बाजारों में मौद्रिक प्रसार के प्रभाव से भारत जैसे तेजी से उभरते बाजारों में तेजी दिख रही है।
