'मध्यस्थता की राह तलाशें हिंदुजा बंधु' | |
देव चटर्जी / मुंबई 06 26, 2020 | | | | |
एसपी हिंदुजा परिवार और तीन हिंदुजा बंधुओं के बीच विवाद का निपटारा सिर्फ बातचीत से हो सकता है, न कि अदालत में जो पहले ही तीन न्यायाधिकार क्षेत्रों में है। यह कहना है कॉरपोरेट वकीलों का। इन वकीलोंं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि तीन न्यायाधिकार क्षेत्रों में समूह की विभिन्न कंपनियों का जटिल होल्डिंग ढांचा वर्षों तक कई कानूनी संघर्ष को जन्म दे सकता है।
हिंदुजा बंधुओं गोपीचंद, प्रकाश और अशोक हिंदुजा ने वीनू हिंदुजा से बातचीत शुरू करने का कोई संकेत नहीं दिया है, लेकिन भारत के अग्रणी वकीलों ने कहा कि मध्यस्थता से दोनों पक्षकारों को मदद मिलेगी क्योंकि चारो भाइयों की तरफ से हस्ताक्षरित पत्र अन्य कानूनी दस्तावेजों से ऊपर नहीं हो सकता और एसपी हिंदुजा की पंजीकृत वसीयत की वैधता को चुनौती नहीं दे सकता।
ए फिरोज ऐंड कंपनी बनाम सीआईटी बॉम्बे के फैसले में बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है, किसी कागज पर लिखे कुछ निश्चित अधिकार व दायित्व स्वत: ही किसी व्यक्ति के अधिकार व दायित्व नहीं हो जाते। वरिष्ठ वकील राजीव बंसल ने कहा, पत्र पर हालांकि चारों भाइयों के हस्ताक्षर हैं, लेकिन यह कानूनी तौर पर लागू कराए जाने योग्य दस्तावेज नहीं हो सकता।
ब्रिटिश न्यायालय में तीनों हिंदुजा बंधु जुलाई 2014 में चारों भाइयों की तरफ से हस्ताक्षरित पत्र पर निर्भर हैं, जिसमें कहा गया है कि भाई एक दूसरे को निष्पादक नियुक्त कर सकते हैं और किसी एक भाई के नाम वाली परिसंपत्ति चारों भाइयों की होगी। इस पत्र में यह भी कहा गया है कि जीपी, पीपी और एपी क्रियान्वयन के लिए सभी कदम उठाने के लिए अधिकृत हैं। ब्रिटिश उच्च न्यायालय ने हालांकि जुलाई 2014 के पत्र को खारिज कर दिया और बीमार एसपी
हिंदुजा की बेटी वीनू को लिटिगेंट फ्रेंड नियुक्त कर दिया।
वकीलों ने कहा कि विविध कारोबार वाले हिंदुजा समूह का मुख्यालय लंदन में है और विवाद 2 जुलाई, 2014 को लिखे पत्र की वैधता को लेकर है। बंसल ने कहा, अगर इस पत्र में लिखी बातों को सही मान लिया जाता है तो भी यह तभी प्रभावी होगा जब किसी एक भाई की मृत्यु हो जाएगी। लेकिन भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 या 1956 के तहत पंजीकृत कंपनियों से संबंधित विवाद के मामले में इसे भारतीय अदालतें ही लागू करा ससकती हैं। इसकी जानकारी भी नहीं है कि पत्र पर कहां हस्ताक्षर हुए और इसमें जिक्र नहीं है कि हिंदुजा बंधुओं के आवास कहां थे ताकि पता चल पाए कि इस मामले में किस अदालत का न्यायाधिकार क्षेत्र होगा। एसपी व जीपी ब्रिटिश नागरिक हैं, वहीं पीपी मोनाको के और एपी भारतीय नागरिक हैं।
वरिष्ठ कॉरपोरेट वकील एच पी रनीना ने कहा, हिंदू अविभाजित परिवार की अवधारणा मिथक साबित हो रही है क्योंकि कारोबारी परिवारों के बीच परिसंपत्तियों को लेकर विवाद हो रहा है। उन्होंने कहा, उत्तराधिकार की योजना स्पष्ट होनी चाहिए और जितनी जल्दी संपत्तियों का विभाजन हो जाए, उतना ही बेहतर होता है। लंबी कानूनी लड़ाई से फायदा सिर्फ और सिर्फ वकीलों को होगा।
कई कानूनी याचिका
अपनी मां और बहन के साथ वीनू हिंदुजा, एसपी हिंदुजा की संपत्तियों पर नियंत्रण चाहती है और ब्रिटिश अदालतोंं के अलावा उन्होंने जर्सी और स्विटजरलैंड की अदालतों का भी रुख किया है ताकि एसपी की परिसंपत्तियों का मालिकाना हक मिल जाए। ब्रिटिश अदालत के आदेश में वीनू हिंदुजा की तरफ से दाखिल अन्य मुकदमे का संदर्भ दिया गया है।
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