देश में कोविड-19 की दवा के बाजार में प्रतिस्पर्धा तेज होने वाली है। रेमडेसिविर (गिलियड कंपनी की इंजेक्शन से दी जाने वाली दवा) के बाद अब गोली के रूप में ली जाने वाली ऐंटीवायरल दवा फैविपिराविर की कीमतों में भी गिरावट देखने को मिल सकती है क्योंकि कई कंपनियां इसे बाजार में उतारने की तैयारी कर रही हैं। अनुमान है कि जल्द ही इसकी कीमत में 40 फीसदी की कमी आ सकती है। सूत्रों के मुताबिक ग्लेनमार्क द्वारा फैबिफ्लू बाजार में उतारे जाने के बाद ल्यूपिन और टॉरंट समेत कई बड़ी कंपनियां अपने-अपने ब्रांड के तहत फैविपिराविर को बाजार में उतार सकती हैं। स्ट्राइड्स फार्मा ने पहले ही देश के औषधि महानियंत्रक से देश में इस औषधि के बायोइक्विवैलेंस (एक ही दवा के जेनेरिक और ब्रांड संस्करण के प्रभाव की समानता) का अध्ययन करने की इजाजत ले ली है। सिप्ला और बीडीआर फार्मा जल्दी ही मिलकर यह दवा बाजार में पेश करने वाली हैं। हैदराबाद की ऑप्टिमस फार्मा करीब 10 देशों को यह दवा निर्यात करने की तैयारी में है और वह घरेलू बाजार के लिए भी निर्माण करने की तैयारी में है। हरिद्वार की सिनोकेम फार्मा भी खाने वाली ऐंटीवायरल दवा पेश करने वाली है। ल्यूपिन और टॉरंट ने इस विषय में कोई पुष्टि नहीं की है। वहीं सूत्रों का कहना है कि सिप्ला-बीडीआर की फैविपिराविर दवा, ग्लेनमार्क की 103 रुपये प्रति टैबलेट वाली दवा से कम से कम 30 फीसदी सस्ती होंगी। हालंाकि सिप्ला ने इसकी पुष्टि नहीं की है। अधिकांश कंपनियां अनुबंध के जरिये दवा का निर्माण करवा करइन्हें अपने ब्रांड नाम से बेचेंगी। ग्लेनमार्क बद्दी में अपनी दवा बना रही है जबकि बीडीआर इसे सिप्ला के लिए बनाएगी। औषधि उद्योग की अंदरूनी जानकारी रखने वालों के अनुसार एक महीने के भीतर करीब 50 ब्रांड यह दवा बाजार में उतारने वाले हैं। ऑप्टिमस फार्मा के निदेशक प्रशांत रेड्डी कहते हैं कि उनका प्रस्ताव भारतीय औषधि महानियंत्रक के पास पड़ा है। उन्होंने कहा कि जरूरी आंकड़े प्रस्तुत कर दिए गए हैं और अब विषय विशेषज्ञ समिति इसकी समीक्षा करेगी। उन्होंने कहा कि मांग हुई तो कंपनी एक बैच में 10 लाख टैबलेट बना सकती है और एक महीने में ऐसे 10 बैच बन सकते हैं। कंपनी का इरादा अपने ब्रांड की दवा का निर्यात करने और भारत में घरेलू कंपनियों के साथ साझेदारी करने का भी है। ये कंपनियां अपनी विपणन तकनीक की मदद से दवा को खुदरा बाजार में बेचने में मदद करेंगी। विश्लेषकों का कहना है कि इस दवा का बाजार 200 से 300 करोड़ रुपये का हो सकता है क्योंकि हर मरीज को 3,500 रुपये का 34 टैबलेट का कोर्स (ग्लेनमार्क की दर) करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सूत्रों के अनुसार दवा के दाम कम होना तय है और यह मरीजों के हित में भी होगा। क्योंकि अगर किसी परिवार में चार लोग बीमार पड़े तो उन्हें 14,000 रुपये केवल इसी दवा पर खर्च करने होंगे। माना जा रहा है कि जल्दी ही कीमत घटकर 60 रुपये प्रति टैबलेट तक आ जाएगी। रेमडेसिविर के दामों को लेकर भी कंपनियों में जंग छिड़ चुकी है। भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा के कारण दाम में कमी होना आम बात है। नोवार्टिस की डायबिटीज की दवा विल्डाग्पिटिन का पेटेंट समाप्त होने के बाद भारत में इसके दाम तेजी से घटे और 25 से 28 रुपये प्रति टैबलेट वाली यह दवा अब 5 रुपये प्रति टैबलेट मूल्य पर बिक रही है।बेड की जानकारी नहीं होने पर नाराज दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस बात पर नाराजगी जताई कि केंद्र और आप सरकार के अधिकारी इस बात की पुष्टि नहीं कर रहे हैं कि दिल्ली के अस्पताल बेड की उपलब्धता की वास्तविक जानकारी दे रहे हैं या नहीं। अदालत ने दोनों सरकारों को अपने प्रशासन को 'मजबूत' बनाने और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा। अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब इस मामले में सहायता के लिए नियुक्त वकील (एमिकस क्यूरी) ने सूचित किया कि आरएमएल, जीटीबी, अपोलो और सरोज अस्पताल, बेड की उपलब्धता की जानकारी को अद्यतन नहीं कर रहे हैं। भाषा
