देश में निर्माण क्षेत्र और पूंजीगत वस्तुओं से जुड़ी कंपनियों के लिए कामगारों को काम पर रखना इतना चुनौतीपूर्ण कभी नहीं रहा जितना अब है। उन्हें काम पर रखने के लिए वॉक इन, कॉल सेंटर, प्रिंट विज्ञापन और डेटा आधारित मोबाइल ऐप कभी भी इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए विकल्प नहीं रहे। उन्हें जब भी जरूरत होती थी तब वे ठेकेदारों के माध्यम से कामगारों को जुटा लेती थीं लेकिन अब कोविड-19 की वजह से दुनिया में हर विकल्प को नए सिरे से देखा जा रहा है। इन कंपनियों में बड़ी तादाद में कामगारों की आवश्यकता होती है लेकिन कोविड-19 की वजह से बड़ी तादाद में प्रवासी श्रमिक अपने घर वापस चले गए हैं। हालांकि स्थानीय स्तर पर मौजूद कामगारों को काम पर रखने का एक विकल्प जरूर है। 15 जून को मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) ने क्षेत्रीय अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया। इस विज्ञापन में कहा गया है कि प्राधिकरण को सैकड़ों और हजारों की तादाद में राजमिस्त्री, बढ़ई, फिटर, वेल्डर और इलेक्ट्रिशियन की जरूरत है। प्रवासी मजदूरों के अपने राज्य वापस लौटने से पहले तक एमएमआरडीए के पास मुंबई की कई मेट्रो साइटों पर 10,000 से ज्यादा कामगार थे। एमएमआरडीए के अधिकारियों का कहना है कि यह विज्ञापन, स्थानीय श्रमिकों को काम पर बुलाने की राज्य के मुख्यमंत्री की अपील के अनुरूप ही है। भर्ती की प्रक्रिया की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'विज्ञापन को लेकर प्रतिक्रिया अच्छी रही है और इसका मकसद स्थानीय श्रमिकों को रोजगार देना है। हमारे यहां क्लर्क के पदों के लिए पात्रता रखने वाले लोगों ने भी इन पदों के लिए आवेदन दिया है। ज्यादातर महाराष्ट्र के सुदूर इलाकों के लोग इसके लिए दिलचस्पी दिखा रहे हैं।' एमएमआरडीए अपवाद नहीं है, भारतीय कंपनियां भी अब यह प्रयोग कर रही हैं कि वे किस तरह से कामगारों की भर्ती करें क्योंकि प्रवासी श्रमिकों को पूरी तरह नजरअंदाज करना व्यावहारिक नहीं है। उदाहरण के लिए, इंजीनियरिंग समूह लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) का ऐप्लिकेशन लगभग 15 लाख श्रमिकों के डेटा से लैस है। इस डेटा में कौशल क्षमता, गांव के पते सहित संपर्क का पूरा ब्योरा भी शामिल है। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि ये वे लोग हैं जिन्होंने न केवल पहले कंपनी के साथ काम किया है बल्कि नए सिरे से नामांकन भी किया है। एलऐंडटी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी एस एन सुब्रमण्यन ने कहा कि इससे एक फायदा यह मिला कि कोई अपने दफ्तर से ही कारपेंटर को बुला सकता है। कुछ अन्य कंपनियों ने कॉल सेंटर (श्रमिकों की भर्तियों के लिए कॉल करने और कॉल रिसीव करने के लिए) की सेवाएं लेने के विकल्प की बात भी की है जिसका फैसला बाद में किया जाएगा। एक बड़े समूह जिसकी एक निर्माण सहयोगी कंपनी भी है, उसके एक अधिकारी ने बताया, 'हमने अपनी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से एक के लिए कॉल सेंटर बनाने पर विचार किया है। हालांकि, हमने बाद में इसके विपरीत फैसला किया क्योंकि इससे फर्जी भर्ती घोटाले और अन्य मुद्दे बन सकते हैं।' सहयोगी कंपनी भी अब विभिन्न परियोजना स्थलों पर वॉक-इन की घोषणा के लिए प्रिंट विज्ञापन देने पर पर विचार कर रही है। सड़क निर्माण कंपनियां भी लोगों को काम देती हैं और इस वक्त उन्हें कामगारों की कमी से जूझना पड़ रहा है। चूंकि सड़क परियोजनाएं लोकेशन आधारित हैं इसलिए ये कंपनियां अब स्थानीय स्तर पर लोगों की भर्ती कर रही हैं। एक सड़क निर्माण कंपनी के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'मजदूरों की कमी है। अब जहां की परियोजना है उसके आधार पर ही हम स्थानीय लोगों को काम पर रख रहे हैं। मौजूदा स्थानीय कामगारों के साथ हम मॉनसून से पहले के काम को प्राथमिकता दे रहे हैं।' जिन राज्यों में श्रमिकों का पलायन शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है, वे राज्य भी श्रमिकों को वापस लाने के लिए जूझ रहे हैं। उदाहरण के तौर पर हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने मंगलवार को घोषणा की कि निर्माण क्षेत्र में लगे और राज्य में लौटने वाले प्रत्येक प्रवासी कामगार को 1,500 रुपये दिए जाएंगे। यह निर्णय श्रम कल्याण बोर्ड की बैठक में विभिन्न उद्योग निकायों द्वारा की गई मांगों के बाद लिया गया था जो कर्मचारियों की भारी कमी से जूझ रहे थे ।
