चीन की कंपनी को ठेका न मिला तो एलऐंडटी को फायदा! | मेघा मनचंदा और अमृता पिल्लई / नई दिल्ली June 22, 2020 | | | | |
सीमा पर विवाद के कारण अगर शांघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी को दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) अनुबंध नहीं मिलता है तो इससे लार्सन ऐंड टुब्रो को फायदा मिल सकता है क्योंंकि एलऐंडटी इस परियोजना के लिए दूसरी तरजीही बोलीदाता कंपनी है।
पात्र यानी पहले नंबर की बोलीदाता के तौर पर उभरी चीन की कंपनी सीमा पर चले भारत-चीन विवाद के कारण अपात्र घोषित की जा सकती है। सीमा पर झड़प का असर दोनों पड़ोसी देशों के बीच आर्थिक गठजोड़ पर दिख सकता है। नैशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (एनसीआरटीसी) ने हाल में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के लिए बोली पर नजर डाली है। एलऐंडटी और एनसीआरटीसी ने हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं की है कि क्या भारतीय कंपनी को फायदा मिलेगा। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने हालांकि कहा कि जब सबसे कम बोली स्थापित हो जाती है तो परियोजना के विजेता को इसे देने में दो से चार हफ्ते लग जाते हैं। इस मामले में अभी फैसला नहीं हो पाया है।
एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, यह कहना जल्दबाजी होगी कि पहले नंबर की बोलीदाता दूसरे नंबर की बोलीदाता की जगह लेगी क्योंंकि ये परिस्थितियां सामान्य नहीं हैं। हमें निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए समय चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या दूसरी सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी को पहली सबसे कम बोली के लिए कहा जाएगा ताकि उसे परियोजना दी जा सके, एक अधिकारी ने कहा, ये चीजें मामले दर मामले के आधार पर निर्धारित होते हैं। 82 किलोमीटर लंबी दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस परियोजना में 5.6 किलोमीटर लंबे टनल (न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद अंडरग्राउंड टनल) के लिए शांघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी के तौर पर उभरी है। हालांकि दोनों देशोंं के बीच जारी सीमा विवाद के चलते स्वदेशी जागरण मंच ने चीन की तरक बोली जीते जाने का विरोध किया है। आरआरटीएस का क्रियान्वयन केंद्र, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों की संयुक्त कंपनी एनसीआरटीसी करेगी।
यूरोप व उत्तर अमेरिका के उपनगरीय ट्रेन नेटवर्क मॉडल पर आधारित आरआरटीएस की योजना की शुरुआत केंद्र सरकार ने दिल्ली-अलवर कॉरिडोर के साथ की है, जिस पर 375.39 अरब रुपये का निवेश होगा। परियोजना रिपोर्ट की मंजूरी के बाद इसे छह साल में पूरा करने की योजना है। इसकी फंडिंग केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और फंडिंग एजेंसियां करेगी। इस कॉरिडोर की लंबाई 180.50 किलोमीटर है, जिसमें एलिवेटेड हिस्सा 124.5 किलोमीटर होगा जबकि अंडरग्राउंड कॉरिडोर 56 किलोमीटर। कुल 19 स्टेशन - नौ अंडरग्राउंड व 10 एलिवेटेड होंगे।
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